अल सुबह ढाक की ताल, धुनाची की धूप की वो सुगंध, मां के श्रृंगार के लिए फूल चुनकर माला बनाना, दोस्तों संग पंडाल का लुत्फ उठाना.. उफ्फ.. ये किन यादों में खो गई मैं... लेकिन मेरी इन बातों से कोई बंगाली ही रिलेट कर पाएगा. क्योंकि एक बंगाली के लिए दुर्गा पूजा मात्र फेस्टिवल नहीं बल्कि इमोशन होता है, ये कहना है टीवी की जानी-मानी एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्य का..
दुर्गा पूजा को लेकर देवोलीना भट्टाचार्य हमेशा से उत्साहित रही हैं. बकौल देवोलीना उनके लिए यह मात्र फेस्टिवल नहीं बल्कि एक इमोशन है.
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आजतक से बातचीत के दौरान वे हमें दुर्गा पूजा और उनसे जुड़ी कई मीठी यादें शेयर करती हैं. देवोलीना कहती हैं, एक बंगाली से पूछ लें कि दुर्गा पूजा के क्या मायने हैं. हमारे लिए पूजा नहीं बल्कि एक इमोशन होता है. बंगाली होने की वजह से मैं भी दुर्गा पूजा को लेकर एक्साइटेड रहती हूं. पूरे साल पूजा का इंतजार होता है.
शिवली फूल से माला बनाया करती थी
देवोलीना बताती हैं, बचपन में नए कपड़े खरीदना, दोस्तों संग एक पंडाल से दूसरे पंडाल घूमने का मजा ही कुछ और होता था. बचपन की बहुत सी यादें हैं. मुझे याद है, जब छोटी थी, तो हमारे यहां शिवली फूल हुआ करते हैं, वो ही सुबह-सुबह पांच बजे उठकर इकट्ठा करने जाती थी ताकि फ्रेश मिले. उसी की माला बनाकर हम सप्तमी व अष्टमी के दिन मां को चढ़ाया करते थे.
बचपन की यादें इमोशनल कर देती हैं
उस समय एक बंदूक आया करती थी, जिसमें पटाखे हुआ करते थे. जिसे फोड़ते थे, तो उसमें से आवाजें निकलती थी. वो हमारा फेवरेट खिलौना होता था. हम सभी बच्चे उसी में खुश हो जाया करते थे. यहां से वहां जाकर मिठाई खाना और घूमना बस यही काम होता था.
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मुंबई में वो बात नहीं होती
वर्क कमिटमेंट की वजह से कई बार मुंबई में रहना पड़ता है. यहां वो पूजा वाली बात नहीं होती है. जबकि यहां भी पंडाल बनते हैं लेकिन वो मजा नहीं आता, जो कोलकाता और असम में होता है.
नौ साल बाद जा रही हूं घर
इस बार मेरी पूजा की तैयारी यही है कि मैं अपने घर जा रही हूं. मैं इस इमोशन को बयां नहीं कर सकती. मैं लगभग नौ साल के बाद अपने होमटाउन में पूजा के वक्त रहूंगी. सालों बाद हम परिवार वाले एक साथ होंगे. मैं अपने कजिन, दोस्तों के साथ दोबारा उन यादों में खोने को तैयार हूं और जो खुशी मैं महसूस कर रही हूं, उसे जाहिर कर पाना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है.
कितनी बार शूटिंग करते हुए दुर्गा पूजा बिताया है
जब साथिया करती थी, तो उस वक्त हर दिन मैं शूटिंग पर होती थी. तब तो पूजा का पता ही नहीं चल पाता था. मैंने कितनी दुर्गा पूजा शूटिंग सेट पर गुजारी हैं. इससे बड़ा दर्द और क्या हो सकता है. फिर मैंने डिसाइड किया कि भले सालभर छुट्टियां न लूं लेकिन सप्तमी से नवमी तक मैं घर पर ही रहकर पूजा करूंगी. जिसे मैं अब फॉलो कर रही हूं.