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ऑस्कर जीतने का बनता चांस, अगर 'लापता लेडीज' नहीं ये फ‍िल्म होती रेस में, फ़्रांस भी हुआ था इम्प्रेस

ये पहली बार नहीं है कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने जिस फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए देश की ऑफिशियल एंट्री चुना हो, वो शॉर्टलिस्ट तक ना हुई हो. मगर सिनेमा लवर्स का मानना है कि भारत के पास इस साल एक ऐसी फिल्म मौजूद थी जिसका चांस ऑस्कर में बहुत अच्छा था.

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'All We Imagine As Light' और 'लापता लेडीज' के पोस्टर
'All We Imagine As Light' और 'लापता लेडीज' के पोस्टर

इंडियन सिनेमा फैन्स के लिए बुधवार की सुबह एक निराशाजनक खबर लेकर आई. ऑस्कर अवॉर्ड्स की 'इंटरनेशनल फीचर फिल्म' कैटेगरी के लिए शॉर्टलिस्ट हुई 15 फिल्मों की लिस्ट अनाउंस हुई और इसमें भारत की ऑफिशियल एंट्री 'लापता लेडीज' का नाम नहीं था. डायरेक्टर किरण राव की फिल्म 'लापता लेडीज', जिसने जनता को खूब एंटरटेन और इम्प्रेस किया था. वो फिल्म, जिसे देखने के बाद बहुत सारे लोगों का पहला रिस्पॉन्स ही था कि इसे ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए भेजा जाना चाहिए. 

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हालांकि, ये पहली बार नहीं है कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने जिस फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए देश की ऑफिशियल एंट्री को चुना हो, वो शॉर्टलिस्ट तक ना हुई हो, नॉमिनेशन मिलना तो बहुत दूर की बात है. मगर इस बार सिनेमा लवर्स की निराशा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उनका मानना है कि भारत के पास इस साल एक ऐसी फिल्म मौजूद थी जिसका चांस ऑस्कर में बहुत अच्छा था- डायरेक्टर पायल कपाड़िया की 'All We Imagine as Light'. 

All We Imagine As Light से एक तस्वीर (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

फिल्म फेडरेशन पर उठे सवाल 
'लापता लेडीज' के ऑस्कर्स रेस से बाहर होते ही फिल्म लवर्स ने 'All We Imagine as Light' को ऑफिशियल एंट्री ना बनाने के लिए फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की आलोचना शुरू कर दी. डायरेक्टर हंसल मेहता ने इस बात की तरफ इशारा किया कि कैसे फेडरेशन की चुनी फिल्मों के ऑस्कर की रेस से बाहर होने का 'स्ट्राइक रेट शानदार' है. 

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ग्रैमी अवॉर्ड विनर रिकी केज ने लिखा ''लापता लेडीज' एक बहुत अच्छी बनी, एंटरटेनिंग फिल्म है (मैंने इसे एन्जॉय किया), लेकिन ये 'बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म' कैटेगरी में इंडिया को रिप्रेजेंट करने के लिए बिल्कुल गलत चॉइस थी.' उन्होंने आगे कहा कि हमें हर साल इस कैटेगरी में जीत मिलनी चाहिए लेकिन हम 'मेनस्ट्रीम बॉलीवुड' के बुलबुले में रहते हैं और उन फिल्मों से आगे नहीं देख पाते जो हमें एंटरटेनिंग लगती हैं. 

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने लिखा कि 'लापता लेडीज' के मुकाबले 'All We Imagine as Light' ऑस्कर में भेजने के लिए बेहतर चॉइस होती. राइटर असीम छाबड़ा ने लिखा, 'इंडिया की 'लापता लेडीज' बाहर हो गई और 'All We Imagine as Light'? अच्छा उसे तो फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भेजा ही नहीं था!'

एक अन्य यूजर ने लिखा, 'हैरानी की बात नहीं है. ये (लापता लेडीज) एक क्यूट फिल्म है, लेकिन मेरी राय में ये ग्लोबल स्टैण्डर्ड पर फिट नहीं है. 'All We Imagine as Light' बेहतर होती.' 

क्यों बेहतर चॉइस थी 'All We Imagine as Light'?
पायल कपाड़िया की फिल्म का प्रीमियर मई में कान्स फिल्म फेस्टिवल में हुआ था. इस प्रतिष्ठित फेस्टिवल में 'All We Imagine as Light' सीधा मेन कॉम्पिटीशन में शामिल थी. और इसने कान्स का दूसरा बेस्ट अवॉर्ड Grand Prix अपने नाम किया. ये फिल्म करीब 30 सालों में पहली भारतीय फिल्म थी जो कान्स के मेन कॉम्पिटीशन में पहुंची. ऑलमोस्ट 70 सालों में ये Grand Prix जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी. 

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इस शानदार अचीवमेंट की वजह से 'All We Imagine as Light' को शुरू से ही जमकर इंटरनेशनल एक्सपोजर मिला. गार्डियन, बीबीसी और साईट एंड साउंड ब्रिटिश मैगजीन समेत इंटरनेशनल प्रेस ने जमकर फिल्म और डायरेक्टर पायल कपाड़िया दोनों की तारीफ की. दुनिया भर के क्रिटिक्स ने 'All We Imagine as Light' को बेहतरीन रिव्यूज दिए. 

ऑस्कर में भेजने के लिए फ्रांस भी था तैयार 
ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि भारतीय डायरेक्टर और कास्ट वाली इस फिल्म को फ्रांस भी ऑस्कर के लिए अपनी ऑफिशियल एंट्री बनाने के लिए तैयार था. दरअसल, 'All We Imagine as Light' के प्रोड्यूसर थॉमस हाकिम और जुलियन ग्राफ ने इसे अपनी फ्रेंच कंपनी से प्रोड्यूस किया था. इस एक टेक्नीकल की वजह से फ्रांस ने इसे तीन अन्य फिल्मों के साथ अपनी ऑफिशियल एंट्री बनाने के लिए शॉर्टलिस्ट भी कर लिया था. 

हालांकि, ये फिल्म फ्रांस के साथ-साथ भारत, इटली, नीदरलैंड्स की कंपनियों की को-प्रोडक्शन थी. फिल्म के इंडियन को-प्रोड्यूसर जीको मैत्रा ने वैरायटी के साथ इंटरव्यू में कहा था, 'फिल्म की थीम्स ग्लोबल हैं, लेकिन ये मुंबई की एक कहानी है और ये मुंबई की और भारत की महिलाओं की कहानी है. ये एक बड़ा सम्मान होगा अगर हम अपने देश को एकेडमी अवॉर्ड्स (ऑस्कर्स) में रिप्रेजेंट कर सकें.' इसलिए मेकर्स ने फिल्म को भारत की तरफ से चुने जाने के लिए सबमिट कर दिया, जिसके बाद फ्रांस इसे ऑस्कर में नहीं भेज सकता था. लेकिन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने भारत की तरफ से ऑस्कर की रेस के लिए 'All We Imagine as Light' की बजाय 'लापता लेडीज' को चुना. 

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ऑस्कर कैम्पेन के हिसाब से भी थी बेहतर फिल्म
ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए किसी भी फिल्म को एकेडमी के सदस्य सीधा वोटिंग से चुनते हैं. ये सदस्य दुनिया भर के फिल्ममेकर्स, फिल्म क्रिटिक्स और फिल्म टेक्नीशियन होते हैं. अवॉर्ड कैम्पेन का सीधा मकसद होता है इन सदस्यों तक अपनी फिल्म पहुंचाना और उन्हें अपने काम से इम्प्रेस करना, ताकि वो फिल्म के लिए वोट करें. 

फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने ऑस्कर के लिए अपनी ऑफिशियल एंट्री अक्टूबर में चुनी. इसलिए मेकर्स के पास कैम्पेन का समय भी कम था. 'लापता लेडीज' ऐसी फिल्म भी नहीं थी जिसे बहुत बड़ा इंटरनेशनल एक्सपोजर मिला हो. इसके मुकाबले 'All We Imagine as Light' मई से ही ग्लोबल एक्सपोजर पा रही थी और इंटरनेशनल मंचों पर जमकर तारीफ बटोर रही थी. 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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कान्स में जीतने के बाद पायल कपाड़िया की फिल्म शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, गॉथम अवॉर्ड्स, न्यू यॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्कल, लॉस एंजेलिस फिल्म क्रिटिक एसोसिएशन, सैन डिएगो फिल्म क्रिटिक्स सोसाइटी और टोरंटो फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन जैसे तमाम प्रतिष्ठित फिल्म कॉम्पिटीशन में अवॉर्ड्स जीत चुकी है. फिल्मों के सबसे बड़े अवॉर्ड्स में से एक गोल्डन ग्लोब में भी इसे नॉमिनेशन मिल चुका है. जाहिर है कि ये फिल्म दुनिया भर के कई बड़े फिल्ममेकर्स और क्रिटिक्स की नजर में थी, इसलिए इसका चांस भी बहुत मजबूत होता. 

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क्या है पायल कपाड़िया की फिल्म की कहानी 
'All We Imagine as Light' केरल से आई दो महिलाओं प्रभा और अनु की कहानी है, जो मुंबई में लाइफ बनाना चाहती हैं. मुंबई शहर तमाम फिल्मों की कहानी का हिस्सा रहा है मगर जिस नजर से ये फिल्म इस शहर को दिखाती है, वैसे इसे बहुत कम एक्स्प्लोर किया गया है. एक बिल्कुल अलग कल्चर से आई महिलाओं की नजर से 'All We Imagine as Light' महिलाओं के प्रति असमानता, हिन्दू-मुस्लिम प्रेम कहानी और अनजान शहर में प्रवासियों के संघर्ष को जिस तरह दिखाती है, उसे फिल्म देखने वालों ने खूब सराहा है. 

पायल कपाड़िया के डायरेक्शन के साथ-साथ कनि कुसरुती और दिव्या प्रभा के काम को भी इंटरनेशनल मंच पर खूब तारीफ मिली है. मगर यहां भारत में रिलीज के लिए इस फिल्म को खूब स्ट्रगल करना पड़ा. फिल्म को लंबे समय तक भारत में डिस्ट्रीब्यूटर ही नहीं मिल रहे थे. सितंबर में 'बाहुबली' स्टार राणा दग्गुबाती, पायल कपाड़िया की फिल्म से जुड़े और इसे डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए आगे आए. इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में भारत का नाम ऊंचा कर रही ये फिल्म फाइनली 22 नवंबर को इंडिया में रिलीज हुई. मगर इसे बेहद लिमिटेड स्क्रीन्स मिलीं. 

ऊपर से दिसंबर की शुरुआत में ही 'पुष्पा 2' रिलीज होने से इस फिल्म मिल रहीं स्क्रीन्स और भी कम हो गईं. पायल कपाड़िया का ऑफिशियल एक्स अकाउंट ऐसी पोस्ट से भरा पड़ा है जिसमें वो लोगों को हर शहर में अपनी फिल्म चला रहे एक-एक थिएटर की जानकारी दे रही हैं. किसी भी शहर में एक और नया थिएटर मिलते ही वो लोगों तक जानकारी पहुंचा रही हैं. रिलीज के वक्त तो कुछ थिएटर्स में उनकी फिल्म गलत क्वालिटी में भी दिखाई जा रही थी, जिसके बारे में उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट भी लिखा. 

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ये सारी बातें बताती हैं कि अगर भारत की तरफ से 'All We Imagine as Light' को ऑस्कर में भेजा जाता तो देश का चांस मजबूत होता. लेकिन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया को पायल कपाड़िया की फिल्म को इसलिए नहीं चुना क्योंकि फेडरेशन के सदस्यों को इसमें 'भारतीयता की कमी' नजर आई. फेडरेशन के प्रेजिडेंट रवि कोट्टाकरा ने एक इंटरव्यू में द हॉलीवुड रिपोर्टर इंडिया से कहा था, 'ज्यूरी ने कहा वो इंडिया में घट रही एक यूरोपियन फिल्म देख रहे हैं, ना कि इंडिया में घट रही इंडियन फिल्म.' उन्होंने आगे कहा कि 'लापता लेडीज' को इसलिए चुना गया कि इसके प्लॉट में एक भारतीयता है. 

हर कॉम्पीटीशन के ल‍िए ज्यूरी के अपने पैमाने होते हैं कि वो विनर में क्या देखना चाहते हैं. ऑस्कर अवॉर्ड्स दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म अवॉर्ड्स हैं और एक ऑस्कर जीतने पर किसी देश के सिनेमा को कितना एक्सपोजर मिलता है, ये हम RRR की जीत के वक्त देख चुके हैं. ऐसे में सवाल ये है कि किसी कॉम्पिटीशन में कैसी एंट्री भेजी जाए... जो ज्यूरी के पैमानों पर खरी उतरती है वो, या जो हमें जंचती है वो? देखना है की इस सवाल का जवाब फिल्म फेडरेशन अगली बार कैसे देती है और वो जवाब देश को ऑस्कर दिला पाता है या नहीं! 

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