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देश रो रहा है. उस दिन भी रो रहा था जब एक नई गायिका के रूप में लता मंगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों गीत गाया था. खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू थे. लता का यह अमर गीत लिखा था कवि प्रदीप ने. प्रदीप का यह गीत लता के सुरों में अमर हुआ और आजतक पसंद किया जाता है.
लेकिन आज जब देश और दुनिया लता के लिए रो रही है, लता जी शायद स्वर्ग के किसी हिस्से में कवि प्रदीप के साथ बैठी होंगी. उन्हें उनके इस गीत के लिए बधाई देती. उन्हें आज उनके जन्मदिन की बधाई देती. प्रदीप के इस गीत के कारण आज तीनों अमर हैं- लता जी, कवि प्रदीप और इन दोनों का गाया-लिखा यह गीत भी.
लता मंगेशकर के निधन के शोक में डूबे देश के लिए ये जानना भी जरूरी है कि आज कवि प्रदीप की जयंती भी है. वही कवि प्रदीप जिन्होंने वो गीत लिखा जिसे गाए बिना देशभक्ति का कोई कार्यक्रम मुकम्मल नहीं होता. आज भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए एक गजब का संयोग बना है. आज कला की देवी मां सरस्वती को विदाई दी जा रही है, आज से लता मंगेशकर हमारे बीच नहीं रहीं और आज ही के दिन 107 साल पहले देशभक्ति के जज्बे को जगाने वाले कवि प्रदीप का जन्म हुआ था.
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को मध्य प्रदेश के बड़नगर में हुआ था. उनका निधन 11 दिसंबर 1998 को मुंबई में हुआ. कवि प्रदीप बचपन में रामचंद्र नाराणय द्विवेदी के नाम से जाने जाते थे.
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दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है
कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से हुई. लेकिन उन्हें असली ख्याति 1943 की हिट फिल्म किस्मत के गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है' से मिली. इस गीत ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया. इस गीत को समझकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार इतनी बौखलाई कि इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा.
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सिगरेट के पैकेट पर उतरा अमर गीत
लता मंगेशकर और कवि प्रदीप की जोड़ी जिस वजह से अमर हुई वो गीत थी ऐ मेरे वतन के लोगों... इस गीत की कहानी भी संयोग की कहानी है. दरअसल 1962 में भारत चीन की लड़ाई के बाद के बाद सेना के जवानों को आर्थिक मदद देने के लिए फिल्म इंडस्ट्री ने एक चैरिटी शो आयोजित किया. ये शो 27 जनवरी 1963 को होने वाला था. इस शो में तत्कालीन पीएम नेहरू और राष्ट्रपति राधाकृष्णन आने वाले थे.
इस कॉन्सर्ट के लिए दिग्गज कलाकारों को बुलाया गया. इसमें, महबूब खान, नौशाद, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और सी. रामचंद्र जैसे नाम शामिल थे. सी रामचंद्र संगीतकार तो उम्दा थे लेकिन इस मौके के लिए उन्हें कोई गाना नहीं मिल रहा था. ऐन मौके पर वे देशभक्ति गीतों के लिए मशहूर हो चुके कवि प्रदीप के पास पहुंचे. कहा जाता है कि ऐन मौके पर कवि प्रदीप ने उन्हें ताना मारा और कहा कि ‘फोकट का काम हो तो आते हो’. लेकिन वे गीत लिखने के लिए राजी हो गए.
फिर कवि प्रदीप एक दिन मुंबई में माहिम में बीच के किनारे टहल रहे थे और वहीं उन्होंने एक शख्स से कलम उधार मांग कर सिगरेट के पैकेट पर गीत लिखा ऐ मेरे वतन के लोगों...
हालांकि 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली में जब ये कॉन्सर्ट हुआ तो इस कार्यक्रम में कवि प्रदीप को ही नहीं बुलाया गया था.
आज प्रदीप भी नहीं हैं और अब लता जी भी नहीं रहीं. लेकिन यह विचित्र संयोग हमें हतप्रभ तो करता ही है. दोनों के शरीर हमारे साथ न हों लेकिन उनका यह सांस्कृतिक योगदान आने वाली पीढ़ियों तक को प्रभावित करता रहेगा.