मलयालम इंडस्ट्री के लिए ये साल अभी से ऐतिहासिक हो गया है. 7 साल बाद इंडस्ट्री को अपनी नई टॉप फिल्म मिली है. टोविनो थॉमस स्टारर '2018' 5 मई को थिएटर्स में रिलीज हुई थी. तीन हफ्ते बाद फिल्म का वर्ल्डवाइड कलेक्शन 150 करोड़ के बहुत करीब पहुंच चुका है. मलयालम सिनेमा में पहली बार कोई फिल्म इस आंकड़े तक पहुंची है. फिल्म को मिले शानदार रिस्पॉन्स, और दूसरी भाषा के फैन्स की डिमांड के बाद मेकर्स ने इसे पैन इंडिया रिलीज करने का फैसला किया. इस शुक्रवार '2018' हिंदी, तेलुगू, कन्नड़ और तमिल में डबिंग के साथ रिलीज हो रही है.
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री, साउथ की बाकी तीनों इंडस्ट्रीज के मुकाबले बॉक्स ऑफिस पर थोड़ी कम मजबूत है. जहां बाकी इंडस्ट्रीज को 500-1000 करोड़ वाली फिल्में मिल चुकी हैं, वहीं इस साल तक 140 करोड़ का आंकड़ा मलयालम इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ी कामयाबी था. '2018' ने इसे ब्रेक किया और अब पैन इंडिया रिलीज के साथ बड़ी कामयाबी के लिए निशाना साध रही है. लेकिन फिल्म के रास्ते में एक बड़ी दिक्कत नजर आ रही है- कम स्क्रीन काउंट.
'2018' को सभी जगह बहुत शानदार रिव्यू मिले हैं और फिल्म का पहला मलयालम ट्रेलर आने के बाद से ही देशभर के दर्शक इसे डबिंग के साथ रिलीज करने की डिमांड कर रहे थे. लेकिन आज जब फिल्म बाकी भाषाओं में रिलीज हो रही है तो इसे लेकर जनता में अवेयरनेस बहुत कम है. और जिन्हें '2018' की हिंदी रिलीज के बारे में पता भी है, उनके लिए भी फिल्म देखना एक बड़ा टास्क होने वाला है. क्या इस फिल्म को पिछली फ्लॉप पैन इंडिया फिल्मों का नुक्सान भुगतना पड़ रहा है?
बहुत कम हैं '2018' के हिंदी शोज
ऑनलाइन टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म्स पर एक नजर डालते ही पता चलता है कि '2018' (हिंदी) के शोज बहुत गिने चुने हैं. हिंदी फिल्मों में बड़े मार्केट दिल्ली और मुंबई में ही फिल्म शोज मनमुताबिक टाइम के हिसाब से मिलना मुश्किल है. सिर्फ दिल्ली में तो '2018' (हिंदी) के शोज सिर्फ दो लोकेशन पर नजर आ रहे हैं और इन दोनों थिएटर्स में फिल्म का एक-एक शो है. दिल्ली के साथ NCR को भी जोड़ लें तो फिल्म 10-12 लोकेशन पर दिखाई जा रही है. इनमें से सिर्फ एक लोकेशन पर इसके दिन में 4 शोज हैं, जबकि बाकी सभी जगह एक-एक ही शोज दिखते हैं. और ये एक-एक शोज भी अधिकतर दोपहर में हैं, जबकि शाम के शोज में फिल्मों को दर्शक ज्यादा मिलते हैं और इससे वर्ड ऑफ माउथ बेहतर होता है.
मुंबई में भी कहानी ऐसी ही है और करीब 10 लोकेशन पर फिल्म के लिए ऑनलाइन बुकिंग अवेलेबल है. यहां भी अधिकतर लोकेशंस पर फिल्म का एक ही शो दिख रहा है. मुंबई और दिल्ली NCR में '2018' के ऑरिजिनल मलयालम वर्जन का स्क्रीन काउंट भी, हिंदी वर्जन से बहुत कम नहीं है. जयपुर, अहमदाबाद में तो फिल्म का हिंदी वर्जन अभी अवेलेबल ही नहीं है, जबकि मलयालम वर्जन के एक-एक शोज हैं. चंडीगढ़ और लखनऊ में फिल्म के किसी भी वर्जन का कोई शो अवेलेबल नहीं है.
'2018' (हिंदी) के टोटल स्क्रीन काउंट को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन ऑनलाइन बुकिंग का सीन इशारा करता है इसे 40 के आसपास ही स्क्रीन्स मिली हैं. अपनी इंडस्ट्री के लिए सबसे कमाऊ फिल्म बन चुकी '2018' को, हिंदी में दिखाने के लिए इतनी सुस्ती हैरान करने वाली है.
क्यों कम है स्क्रीन काउंट?
मलयालम इंडस्ट्री का स्केल छोटा होना भी शायद '2018' के कम स्क्रीन काउंट की वजह है. 'बाहुबली' RRR, 'कार्तिकेय 2' जैसी फिल्मों से जहां तेलुगू फिल्मों को हिंदी डिस्ट्रीब्यूटर हिंदी में आजमा चुके हैं. वहीं KGF, 'कांतारा' और '777 चार्ली' जैसी फिल्मों से कन्नड़, और 'विक्रम' 'पोन्नियिन सेल्वन 1' से तमिल फिल्मों का पैन इंडिया पोटेंशियल भी चेक हो चुका है.
मलयालम इंडस्ट्री ने मामूटी की 'मामंगम' और मोहनलाल की 'मरक्कर' से पैन इंडिया अपील बनाने की कोशिश तो की थी, लेकिन ये दोनों ही फिल्में अपनी घरेलू मार्किट के बाहर बहुत बड़ा कमाल नहीं कर पाई थीं. हिंदी में तो दोनों ही फिल्मों का बिजनेस बहुत ठंडा रहा था. अब जब मलयालम इंडस्ट्री अपनी आजमाई हुई फिल्म '2018' के जरिए हिंदी ऑडियंस तक रीच बढ़ाने की सोच रही है तो शायद पिछली नाकामयाबी भी इसके आड़े आ रही है. लेकिन इस कम स्क्रीन काउंट के पीछे एक और वजह हो सकती है.
पिछली कई पैन इंडिया फिल्में खूब चर्चा के बाद भी हिंदी में अच्छी कमाई नहीं कर पाईं. 'कब्जा' 'विक्रांत रोणा' 'दसरा' और 'विरूपाक्ष' जैसी फिल्में पैन इंडिया रिलीज हुईं, मगर हिंदी में इनकी कमाई निराशाजनक रही. मणिरत्नम की 'पोन्नियिन सेल्वन 1' ने हिंदी में ऑलमोस्ट 23 करोड़ का कलेक्शन किया था और यहां भी हिट थी. लेकिन इसका सीक्वल हिंदी में 16 करोड़ ही कमा सका. शायद पैन इंडिया फिल्मों को मिल रहा ये फीका रिस्पॉन्स भी '2018' के हिंदी वर्जन के रास्ते में रोड़ा बन रहा है.
फायदा भी दिला सकता है कम स्क्रीन काउंट!
तेलुगू फिल्म 'कार्तिकेय 2' की हिंदी रिलीज का फ़ॉर्मूला, '2018' को भी हिंदी में कामयाबी दिला सकता है. निखिल सिद्धार्थ स्टारर 'कार्तिकेय 2' का हिंदी वर्जन पहले दिन 30-40 स्क्रीन्स पर ही रिलीज हुआ था. जब इसके गिने चुने शोज में ही जनता की भीड़ जुटी तो दो दिन में इसका स्क्रीन काउंट 300 तक बढ़ा दिया गया. एक समय ऐसा भी आया जब 'कार्तिकेय 2' का हिंदी वर्जन 1000 से ज्यादा स्क्रीन्स पर चल रहा था. इसी तरह कन्नड़ इंडस्ट्री की '777 चार्ली' भी पहले दिन करीब 300 स्क्रीन्स पर ही रिलीज हुई. लेकिन डिमांड को देखते हुए बाद में इसका स्क्रीन काउंट बढ़ा दिया गया. '2018' के हिंदी डिस्ट्रीब्यूटर भी ऐसे ही किसी कमाल की उम्मीद में होंगे.
'2018' के एक्टर टोविनो थॉमस ने हिंदी रिली से पहले अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी इंडस्ट्री के लिए देश भर की जनता तक अपनी फिल्में पहुंचाना बहुत मुश्किल होता है. उन्होंने कहा था, 'सोच के देखिए, जब हमारी फिल्म रिलीज होती है तो बहुत कम थिएटर्स में रिलीज होती है. मेरी विश है कि ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर मलयालम फिल्में डिस्ट्रीब्यूट करने आगे आएं. हम ये नहीं कह रहे कि वो हमारी फिल्में फ्री में डिस्ट्रीब्यूट करें. वे आएं, हमारी फिल्में देखें और अगर उन्हें पसंद आती हैं तो डिस्ट्रीब्यूट करें.'
'2018' के हिंदी वर्जन के लिए भी कोई खास प्रमोशन नहीं किया गया है. हिंदी ऑडियंस में फिल्म को लेकर अवेयरनेस भी बहुत कम है. ऐसे में मेकर्स की उम्मीद उन दर्शकों से होगी जो इन गिने चुने शोज में फिल्म देखकर अपनी राय बाकियों से शेयर करेंगे. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि मलयालम सिनेमा के लिए ऐतिहासिक बन चुकी '2018' क्या हिंदी दर्शकों का भी दिल जीत पाएगी!