बॉलीवुड की एेसी कई फिल्में हैं, जिन्होंने बॉलीवुड का मान बढ़ाया है. बात चाहे कहानी की हो या अदाकारी की या फिर समाज को कोई संदेश देने की इन फिल्मों ने अपना काम बखूबी किया है. आगे की स्लाइड्स में देखते हैं ऐसी ही फिल्में:
सुनील दत्त और नर्गिस की फिल्म 'मदर इंडिया' बॉलीवुड की उन चुनिंदा फिल्मों में से है, जिसे आज भी याद किया जाता है. फिल्म में एक मां को दिखाया गया है, जो अपने पति की गैर मौजूदगी में अपने बच्चों का ख्याल रखती है. साल 1957 में इसे बेस्ट फिल्म का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था. ये ऐसी पहली फिल्म है, जिसे ऑस्कर के लिए नॉमिनेट किया गया. ये उस समय की सबसे महंगी फिल्म थी और सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाली फिल्म बनी थी.
कंगना रनोट की फिल्म 'क्वीन' ने सब तरफ से तारीफें बटोरी थी. इस फिल्म ने सबको उम्मीद, ताकत और खुशी के सही मायने बताए थे. कंगना की एक्टिंग की हर ओर चर्चा हुई. यही नहीं, महानायक अमिताभ बच्चन ने तो उन्हें फूल और हाथ से लिखी एक चिट्ठी भी भेजी.
आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित फिल्म 'लगान' को भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय दर्शकों की भी खूब वाहवाही मिली. फिल्म को एकाडमी अवॉर्ड में बेस्ट फॉरन लैंग्वेज फिल्म का नॉमिनेशन मिला था. इसके साथ ही फिल्म ने उस साल आठ नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीते थे.
धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर बनी राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' ने भारत को गौरांवित किया. इसका मुख्य किरदार फरहान अख्तर ने निभाया था, जिन्होंने एक खिलाड़ी के कैरेक्टर में ढलने के लिए कड़ी मेहनत की थी.
शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ने इस साल 1000 सप्ताह पूरे किए. ये बॉलीवुड की सबसे लंबी चलने वाली फिल्म है.
'रंग दे बसंती' ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार के ऊपर थी, जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाना चाहता था. आमिर खान फिल्म में मुख्य भूमिका में थे. इसे फिल्म फेयर के साथ ही 2007 इंटरनेशनल इंडियन फिल्म अकादमी अवॉर्ड जीता. इसके अलावा भी फिल्म को कई अवॉर्ड और कई अहम नॉमिनेशन मिले.
फिल्म के लेखक और निर्देशक आशुतोष गोवारिकर थे. फिल्म में शाहरुख खान और गायत्री जोशी ने मुख्य भूमिका निभाई थी. अधिकांश समीक्षकों का मानना है कि 'स्वदेस' में शाहरुख खान ने अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस दी थी.
फिल्म 'शोले' बेहतरीन कलाकार, अदाकारी और सिनेमैटोग्राफी का नमूना है. इसे बॉलीवुड की महान फिल्मों में माना जाता है. ये फिल्म पांच साल तक मुंबई के थिएटर में चलती रही.
'शिप ऑफ थीसेस' के लेखक और निर्देशक आनंद गांधी थे. 61वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में इसे बेस्ट फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला था. ये साल 2012 में टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी.
'मुगल-ए-आजम' को आज भी याद किया जाता है. फिल्म न सिर्फ अपनी स्टोरी लाइन के लिए जानी जाती है, बल्कि ये पहली ऐसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म है, जिसे डिजीटली कलर किया गया. इसे एक नेशनल फिल्म अवॉर्ड और तीन फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले थे. 1961 फिल्म फेयर अवॉर्ड में फिल्म ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए बेस्ट फिल्म, बेस्ट सिनेमैटोग्राफी और बेस्ट डॉलॉग का खिताब अपने नाम किया.
फिल्म 'लंचबॉक्स' लेखक और निर्देशक रितेश बत्रा थे. फिल्म ने कई अवॉर्ड जीते, कई अवॉर्ड के लिए नॉमिनेशन मिले. फिल्म में मुख्य किरदार इरफान खान और निमरत कौर ने निभाया था. फिल्म में दो अजनबी एकदूसरे से खत लिखकर बात करते थे.
'दो बीघा जमीन' का के निर्देशक बिमल रॉय थे. फिल्म में एक रिक्शेवाले की परेशानी को दर्शाया गया है, जो अपनी जमीन बचाने के लिए और कर्ज चुकाने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करता है. पहले फिल्म फेयर अवॉर्ड में इसे बेस्ट फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला था. 7वें कान फिल्म फेस्टिवल में इसे बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला था.
'आंखों देखी' फिल्म का निर्देशन रजत कपूर ने किया था. इस फिल्म में एक आम आदमी के जीवन को बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया था. साल 2014 में ये 8वें एनुअल मोसैक इंटरनेशनल साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल की ओपनिंग फिल्म थी.
फिल्म 'तारे जमीं पर' के निर्माता-निर्देशक आमिर खान थे. इसे साल 2008 में बेस्ट फिल्म का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला था.
'उड़ान' की कहानी 17 साल के बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे स्कूल से निकाल दिया जाता है और उसे घर पर अपने कठोर पिता के साथ रहना पड़ता है. इस फिल्म को कान फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया था.