मुल्तान में पल रहा एक सिख बच्चा. विभाजन के चलते उसे दिल्ली आना पड़ता है लगभग पूरा परिवार गंवाकर. यहां वो बहन के पास रहता है. कोयले की चोरी कर पेट पालता है और फिर शाहदरा की रिफ्यूजी कॉलोनी में रहने वाली एक सिख लड़की बीरा के प्यार में पड़ जाता है. उसको पाने के लिए कुछ बनने की ठानता है और फौज में भर्ती हो जाता है.
यहां से उसकी रेस शुरू हो जाती है. शुरू में एक ग्लास एक्स्ट्रा दूध और परेड न करने के लालच में. फिर इंडिया का ब्लेजर पहनने की चाहत में और आखिर में दुनिया को अपने कदमों तले लाने के चलते, भागकर. ये रेस अहम मोड़ पर आती है 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में, जब वह 400 मीटर रेस के पहले ही राउंड में बाहर हो जाता है. उसे समझ आ जाता है कि सब कुछ इतना आसान नहीं.
इसके बाद तो एक जुनून है, जिसे वह जीता है और जब 4 साल बाद एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स समेत कई मुकाबले जीतकर 1960 के रोम ओलंपिक में पहुंचता है, तो सबकी निगाहें उसी पर टिकी होती है. वर्ल्ड रेकॉर्डधारी जो है वो. पर यहां जीतने के पहले वह फिर उसी स्लेटी शोर के चलते पलटता है और हार जाता है. मगर जिंदगी हार पर खत्म नहीं होती. उस डर को हराता है मिल्खा पाकिस्तान में हुई दौड़ में, जहां उसके सामने है खालिक.
फरहान अख्तर नहीं मिल्खा सिंह ने ही काम किया है इस फिल्म में. एक्टिंग भी नहीं कह सकते क्योंकि उसमें कुछ बनावटीपन आ जाता है, जबकि अख्तर तो जैसे जी रहे थे किरदार को. शीशे के सामने खुद को थप्पड़ मारना हो या ब्लेजर पर हाथ फेरना. मलंग की तरह कैंट में नाचना हो या फिर ट्रैक पर दौड़ना. हर जगह एक दीवाना बना देना वाला उन्माद नजर आता है. उनके अलावा कोच के रोल में दिखे पवन मल्होत्रा और युवराज के पिता योगराज सिंह की एक्टिंग बेहतरीन है.
मिल्खा की बहन के रोल में दिव्या दत्ता भी दुख, सुख और उसके बीच भरे सन्नाटे को खूब शानदार ढंग से दिखाती हैं. सोनम कपूर का छोटा सा रोल है. फूलों के कुर्ते सा सजा और चमकदार. मीसा सफी और रेबेका ब्रीड्स भी कुछ लम्हों की और संतोषजनक नायिका बनती हैं.
प्रसून जोशी काबिले जिक्र हैं उन्होंने इस फिल्म के गाने और स्क्रिप्ट दोनों लिखे हैं. फिल्म की सबसे कमाल चीज है इसकी ओपनिंग. हमें बचपन से पढ़ाया गया कि अगर फ्लाइंग सिख अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी दौड़ में पलटकर न देखते तो जीत जाते. ये हार कचोटती है और इसे सबसे शुरुआत में ही दिखा दिया जाता है. फिर उस हार और उसके पहले की जीत और जिदों की दास्तान सुनाई जाती है. कहानी कई बार फ्लैशबैक में जाती है और हर बार एक नया उत्साह दे जाती है. फिर जब खत्म होती है तो एक जीत के साथ. ये जीत सिर्फ पाकिस्तान में उनके स्टार खिलाड़ी को हराने भर से नही मिलती. ये जिंदगी के सबसे डर को आंखें दिखाकर बेनकाब करने से मिलती है.