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मनोरंजन

बॉलीवुड में भी हैं 'वुमन ऑन टॉप'

बॉलीवुड में भी हैं 'वुमन ऑन टॉप'
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बड़े पर्दे पर पिक्चर सिर्फ हीरो से चलती है. वही एक्शन करता है. वही तालियों और सीटियों का हकदार है. गलत. सरासर गलत. हां, पुरुष प्रधान समाज में यही मान्यता रही है. पर अब जमाना बदल रहा है. जहां सोसाइटी में लड़कियां अकेले अपने दम पर हर छोटा बड़ा काम करने का दमखम रखती हैं, वहीं वो अकेले अपने दम पर पिक्चर भी हिट करवा सकती हैं. मिर्च मसाला (1987) से लेकर बैंडिट क्वीन (1994), लज्जा (2001), मातृभूमि (2003), जागो (2004), डोर (2006), इंग्लिश विंग्लिश (2012), क्वीन (2014), गुलाब गैंग (2013), मर्दानी (2014), फैशन (2008), सात खून माफ (2011) और जुबैदा (2001) जैसी न जाने कितनी हिंदी फिल्में हैं जहां हीरोइनों को किसी हीरो की जरूरत नहीं पड़ी. आज 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे पर हम आपको दिखाते हैं बॉलीवुड की 8 सबसे ज्यादा पॉपुलर वुमन सेंट्रिक फिल्में:
बॉलीवुड में भी हैं 'वुमन ऑन टॉप'
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मदर इंडिया (1957): महबूब खान की निर्देशित यह सुपरहिट फिल्म इस सूची में हमेशा से ही टॉप पर रही है. आजादी के बाद के भारत की तस्वीर के साथ साथ इस फिल्म में एक महिला को अपने अंदर की शक्ति से रूबरू होते दिखाया गया था.
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भूमिका (1977): यह कहानी एक फीमेल एक्ट्रेस के जीवन पर आधारित थी. न्यू इंडियन सिनेमा मूवमेंट से जुड़ी यह पहली हिंदी फिल्म थी.
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अर्थ (1982): यह कहानी उस हाउसवाइफ के दर्द पर आधारित थी जिसका पति एक एक्ट्रेस के लिए उससे बेवफाई कर जाता है. एक आजाद और सफल जिंदगी तलाशने की उस महिला की कोशिश के साथ साथ फिल्म ने घरेलू हिंसा पर भी रोशनी डाली.
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दामिनी (1993): यह फिल्म एक ऐसी लड़की पर आधारित थी जो अपने ही अमीर ससुराल वालों से लड़ जाती है, क्योंकि उसके देवर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक नौकरानी का बलात्कार किया है. उस नौकरानी को इन्साफ दिलाने की मुहिम में उसे किस किस मुसीबत का सामना करना पड़ा यह सब इस कहानी में देखने को मिला.
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चांदनी बार (2001): मधुर भंडारकर की यह फिल्म एक महिला सेक्स वर्कर की जिंदगी पर आधारित थी. इसमें उस महिला की पूरी जद्दोजहद दिखाई गयी कि कैसे वो अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी देने के लिए उन्हें वैश्यावृति‍ की दुनिया से दूर रखती है. इसके लिए तब्बू को नेशनल अवार्ड दिया गया था.
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नो वन किल्ड जेसिका (2011): एक लड़की के साथ हुए अन्याय और हिंसा का बदला लेने के लिए एक महिला पत्रकार के बेहतरीन प्रयासों को इस फिल्म में दिखाया गया.
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द डर्टी पिक्चर (2011): 'फिल्में सिर्फ 3 चीजों से चलती हैं: एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट' यह डायलाॅग बोलती विद्या बालन फिल्म के लिए नेशनल अवाॅर्ड खींच कर ले गईं. फिल्म एक बेहतरीन एक्ट्रेस और उसकी जिंदगी के स्ट्रगल पर आधारित थी
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कहानी (2012): यह एक ऐसी फिल्म थी जो विद्या बालन ने बिना किसी हीरो के सपोर्ट के अकेले ही सुपरहिट साबित कर दी. एक प्रेग्नेंट लेडी का किरदार निभाते हुए आत्मविश्वास के साथ अपने गुमशुदा पति को खोजने की कोशिश इस कहानी का केंद्र थी.
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