भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की मुहिम के चलते देश भर में राष्ट्रीय झंडा तिरंगा की मांग अचानक बढ़ गई है.
रामलीला मैदान पर हजारों की संख्या में लोग अन्ना के साथियों स्वामी अग्निवेश, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी का भाषण सुनने के लिए डटे रहे.
झंडों का कारोबार करने वालों के चेहरों पर रौनक छा गई है. दर्जियों की पूछ भी बढ़ गई है.
आम दिनों में सियासी दलों का झंडा बेंचकर अपनी दाल-रोटी चलाने वालों में अन्ना के आंदोलन से अच्छा कारोबार होने की उम्मीद पैदा हो गई है.
दिल्ली के लक्ष्मी नगर में झंडा बेचने वाले राजेश तलवार के अनुसार, 'तिरंगे की मांग इस कदर बढ़ गई हैं कि हमारा स्टॉक खत्म हो गया है.
तिरंगे व्यापारी के अनुसार, मंगलवार को ही दो हजार झंडों की बिक्री हो गई. पांच हजार झंडे और तैयार करने का आर्डर मिला है.
झंडा व्यवसायी गुरजीत सिंह के पास स्टॉक में जितने तिरंगे झंडे थे, वह मंगलवार सुबह ही बिक गए.
इंदौर के इदरीस का कहना है कि स्वतंत्रता दिवस के दिन तो उन्होंने तिरंगे की ब्रिकी की ही, मंगलवार को भी वह बेहद व्यस्त दिखे.
एक दर्जन से ज्यादा दर्जी दिन रात झंडों की सिलाई करने में जुटे हैं
लखनऊ, पटना, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलूर, मुंबई, पुणे और चेन्नई आदि शहरों में भी तिरंगे की मांग बेहद बढ़ गई है.
व्यापारियों को उम्मीद है कि अगर अन्ना का आंदोलन लंबा चलता है तो उनके धंधे में तेजी आएगी.
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की मुहिम के चलते देश भर में राष्ट्रीय झंडा तिरंगे की मांग अचानक बढ़ गई है. इस वजह से झंडों का कारोबार करने वालों के चेहरों पर रौनक छा गई है.
आम दिनों में सियासी दलों का झंडा बेंचकर अपनी दाल-रोटी चलाने वालों में अन्ना के आंदोलन से अच्छा कारोबार होने की उम्मीद पैदा हो गई है.
जयपुर में झंडा बेचने वालों के यहाँ 'तिरंगे की मांग इस कदर बढ़ गई हैं कि उनका तिरंगे का स्टॉक बरकरार रखने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ रही है.
रोजाना अच्छी खासी संख्या में झंडों की बिक्री हो रही है और इन्हें तैयार करने के आर्डर भी मिल रहे हैं. तिरंगे झंडों के विक्रेताओं का कहना है की झंडे की इस कदर मांग उन्होंने पहले कभी नहीं देखी.
व्यापारियों को उम्मीद है कि अगर अन्ना का आंदोलन लंबा चलता है तो उनके धंधे में तेजी आएगी. झंडों और बैनरों की मांग और बढ़ेगी.
अन्ना के समर्थन में हर वर्ग हर तबके के लोग जुड़ रहे हैं. इसमें राजनीतिक पार्टियों के साथ विभिन्न सामाजिक और व्यावसायिक संगठन, स्कूल-कालेज की सहभागिता भी हो रही है.
यही नहीं युवाओं का रुझान इस आंदोलन में देखा जा रहा है. बड़ी उम्र के लोगों के साथ युवा भी झंडे खूब खरीद रहे हैं.
अन्ना हजारे के आंदोलन ने सालों बाद तिरंगे की डिमांड में उछाल ला दिया है.
गांधी टोपी और तिरंगे की बिक्री केवल राष्ट्रीय पर्व पर होती थी, मगर इस साल 15 अगस्त के बाद भी दोनों चीजों की बंपर बिक्री हो रही है.
लोग अपने शरीर पर भी तिरंगा बनवा रहे हैं.
मेरठ गांधी आश्रम से रोजाना भारी मात्रा में झंडों की सप्लाई भी हो रही है.
अन्ना हजारे के आंदोलन में रामलीला मैदान में तिरंगा लहराती किरण बेदी.
लोग बड़ी मात्रा में तिरंगे झंडे ले रहे हैं. इसमें प्लास्टिक और कपड़े दोनों के झंडे शामिल हैं.
गांधी आश्रमों में छोटे तिरंगे झंडों की भी मांग बढ़ी है.
इतनी तिरंगों की मांग और बिक्री 15 अगस्त और 26 को भी नहीं होती है.
कई सामजिक संगठनों ने 1,000 तिरंगे तक के अग्रिम बुकिंग करा रखी है.
अन्ना के आंदोलन के लंबा चलने के कारण और लोगों की अधिक मांग के कारण तिरंगे की मांग अभी बहुत है.
सदर बाजार के कारोबारियों में इसके चलते काफी उत्साह है. कारोबारियों के मुताबिक अक्सर चुनाव के माहौल में राजनीतिक पार्टियां ही झंडों की मांग करती है और तभी हमारें पास काम बहुत ज्यादा रहता है.
अन्ना के आंदोलन के चलते तिरंगे की बिक्री दो लाख से अधिक हो गई है.
लोग भी प्लास्टिक के तिरंगे की तुलना में कपड़े के तिरंगे को खूब पसंद कर रहे हैं.
इस समय बाजार में 50 रुपये से लेकर 1000 रुपये की कीमत के तिरंगे साइज के हिसाब से उपलब्ध हैं.
कारोबारियों के मुताबिक तिरंगे की बिक्री 4 दिनों के अंदर 1 लाख से अधिक हो गई है.
अक्सर चुनाव के माहौल में राजनीतिक पार्टियां ही झंडों की मांग करती है, लेकिन 16 अगस्त से तिरंगे की बिक्री बढ़ गई है.
मंगलवार को रामलीला मैदान में अन्ना का अनशन सातवें दिन जारी रहा.
रामलीला मैदान में युवा ‘मैं अन्ना हूं’ लिखी हुई टोपी और टी-शर्ट पहन कर आंदोलन का जज्बा बढ़ा रहे हैं.
रामलीला मैदान में लोग 10 रुपये खर्च कर अपने गालों पर तिरंगे बनवा रहे हैं.
गांधी टोपी, राष्ट्रभक्ति गीत और तिरंगा झंडा लोगों का जहां जज्बा बढ़ा रहे हैं वहीं आंदोलन में जोश भी भर रहे हैं.
भ्रष्टाचार के विरोध में जहां अन्ना का आंदोलन जारी है, वहीं लोग अपनी-अपनी तरह से इसमें भूमिका निभा रहे हैं.
कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यालय के सामने लगे पार्टी का झंडा और नेताओं की तस्वीर बेचने वाले स्टॉल में तिरंगा और गांधी टोपी ने जगह बना ली है.
राजनीतिक दलों के सामने लगे उनके झंडे और नेताओं की तस्वीर की बिक्री के लिये लगे स्टॉल में भी गांधी टोपी और तिरंगा झंडे की बहार आ गई है
गांधी टोपी और तिरंगे की बिक्री के मुख्य केन्द्र गांधी आश्रम में दोनों का स्टॉक खत्म है.
जींस कुर्ता पहने और सिर पर गांधी टोपी तथा हाथ में तिरंगा लिये युवाओं को सड़कों पर जुलूस के रूप में देखा जा सकता है.
अन्ना ने फिर बढ़ाया तिरंगे और गांधी टोपी का क्रेज.
दिलचस्प तो यह है कि तिरंगे की बढ़ी मांग के बावजूद इसके विक्रेताओं ने इसकी कीमतें नहीं बढाई हैं.
देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा जो स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर ही दिखाई देता था और आजादी की लडाई की निशानी गांधी टोपी जो नेताओं के सिर से गायब हो गई थी.
तिरंगे को जन लोकपाल के समर्थन में आमरण अनशन कर रहे समाज सेवी अन्ना हजारे ने नई पहचान दिलाई है .
यही वजह है तिरंगा बेचने वाले कम कीमत पर भी लाखों की कमाई कर रहे हैं, यानि नेकी भी और कमाई भी.
आजाद भारत के किसी आंदोलन में शायद ही तिरंगे का इतना इस्तेमाल हुआ हो.
हर भारतीय रामलीला मैदान में तिरंगा लेकर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाना चाहता है.
तिरंगा अन्ना के आंदोलन का एक अहम हथियार बन गया है.
हाथ में तिरंगा उठाने का ये मौका कोई जाने नहीं देना चाहता.
तिरंगे की डिमांड पूरी करने के लिए कारीगर दिन-रात एक कर काम कर रहे हैं.
अन्ना के आंदोलन की वजह से तिरंगे की डिमांड बहुत बढ़ गई.
तिरंगा बनाने में जुटे इन कारीगरों का काम इन दिनों काफी बढ़ गया है.
देश के हर कोने में युवाओं ने तिरंगा उठाकर अन्ना के समर्थन में मोर्चा खोला.
ये अन्ना का जादू ही है जिसमें हर भारतीय खुद को रंग लेना चाहता है.
रामलीला मैदान में अन्ना के समर्थन में तिरंगा लहराती किरण बेदी.
अन्ना के आंदोलन के साथ ही देश में तिरंगे के साथ अन्ना टोपी की भी धूम मची है.
दिल में अन्ना और हाथ में तिरंगा. बस फिर क्या था, इंडिया गेट पर अन्ना के हजारों समर्थकों ने ऐसा जोश दिखाया.
बाबा रामदेव भी अन्ना के आंदोलन से खुद को नहीं रोक सके और थाम लिया तिरंगा.