दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सिल्क स्मिता 80 के दशक में बी-ग्रेड फिल्मों की सुपरस्टार थी. अपनी कामुक अदाओं और अंग प्रदर्शन के जरिये उन्होंने दर्शकों को दीवाना बना दिया था. उनकी जिंदगी में सब कुछ तेजी से घटा और 36 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. सिल्क की जिंदगी से प्रेरित होकर ‘द डर्टी पिक्चर’ बनाई गई है जो सिल्क के जन्मदिन 2 दिसंबर 2011 को रिलीज हुई, सिल्क से प्रेरित होने की वजह से फिल्म देखते समय यही लगता है कि हम सिल्क की जीवन-यात्रा देख रहे हैं.
11 नवंबर 2011 को प्रदर्शित हुई फिल्म 'रॉकस्टार' की कहानी उस लोकप्रिय बात को आधार बनाकर लिखी गई है जिसके मुताबिक यदि कलाकार के दिल को ठेस पहुंची हो. उसके जीवन में कोई दर्द हो तो उसकी कला निखर कर सामने आती है.
हिंदी कॉमेडी फिल्मों के सुपरहिट निर्देश डेविड धवन के बेटे रोहित धवन की पहली फिल्म 'देसी ब्वायज' 25 नवंबर 2011 को प्रदर्शित हुई. इस फिल्म ने में अक्षय कुमार, जान अब्राहम और दीपिका पादुकोण ने दर्शकों को हंसाने का पूरा प्रयास किया है और वे अपनी कलाकारी से इस प्रयास में काफी हद तक सफल भी हुए हैं.
26 अक्टूबर 2011 को प्रदर्शित हुई फिल्म 'रॉ-वन' शाहरूख खान की ऎसी महत्वाकांक्षी योजना थी जिस पर उन्होंने दिल खोलकर पैसा बहाया, इस उम्मीद के साथ कि यह फिल्म बच्चों को पसन्द आएगी. फिल्म का कथानक भी उन्होंने बच्चों के इर्द गिर्द रखा. रॉ-वन में जिस तरह से पैसा बहाया गया, उस हिसाब से इस फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स हॉलीवुड की फिल्मों का मुकाबला नहीं कर पाएं लेकिन इसके बावजूद हम दिल खोलकर तारीफ करना चाहेंगे शाहरूख खान की, जिन्होंने इस तरह की फिल्मों का निर्माण भारत में होना सम्भव किया.
9 सितंबर 2011 को प्रदर्शित हुई निर्देशक अली अब्बास जाफर की यशराज बैनर तले बनी फिल्म ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ एक जानी-पहचानी कहानी होने के बावजूद कुछ हंसी-मजाक का माहौल बनाने में ये फिल्म जरूर कामयाब साबित हुई. फिल्म की कहानी में कुश बने इमरान खान पेशे से बॉलीवुड फिल्म में एक अस्सिटेंट डायरेक्टर हैं जिसका लंदन में रहने वाला भाई यानी अली जाफर उसे अपने लिए एक अच्छी सी दुल्हन ढूंढने का काम सौंपता है.
31 अगस्त 2011 को प्रदर्शित हुई 'बॉडीगार्ड’ एक प्रेम कहानी है. फिल्म का संगीत काफी उम्दा है. इस फिल्म में ‘तेरी मेरी, मेरी तेरी प्रेम कहानी’ सबसे मधुर गीत है. आई लव यू, देसी बीट्स और टाइटल ट्रेक भी सुनने लायक हैं; ‘बॉडीगार्ड’ में वो सब कुछ है जो सलमान खान के प्रशंसक चाहते हैं.
1 जुलाई 2011 को प्रदर्शित हुई ‘मर्डर 2’ को विशेष फिल्म्स की ही पिछली फिल्मों को देख कर तैयार किया गया. फिल्म में एक सीरियल किलर है जो जवान लड़कियों की हत्या करता है. इस खलनायक का पात्र ‘संघर्ष’, ‘सड़क’ और ‘दुश्मन’ जैसी फिल्मों के खलनायकों की याद दिलाता है. सड़क के खलनायक की तरह वह किन्नर है, संघर्ष के खलनायक की तरह अंधविश्वासी है और ‘दुश्मन’ के विलेन की तरह वह लड़कियों को क्रूर तरीके से मौत के घाट उतारता है. यही नहीं बल्कि कुछ दृश्य भी महेश भट्ट की पिछली फिल्मों की याद दिलाते हैं.
काफी विवादों के बाद 1 जुलाई 2011 को प्रदर्शित हुई 'डेल्ही बेली' की ओपनिंग बहुत शानदार रही. विवादित गाना भाग भाग डीके बॉस संगीत प्रेशर की जुबान पर चढ़ गया. कुछ लोगों ने इसे अश्लीलता की श्रेणी में भी रखा. कुल मिलाकर इस फिल्म ने दर्शकों का काफी मनोरंजन किया.
हिन्दी फिल्मों में 90 के दशक में कुछ ऐसी फिल्में बना करती थीं जिसमें एक अकेला इंसान सिस्टम को बदलने के लिए कई-कई गुण्डों को अकेला खत्म कर देता था. अभिनय और ड्रामे का यह मेल हाल के सालों में कहीं गुम सा हो गया था पर राहुल शेट्टी के निर्देशन में 22 जुलाई 2011 को प्रदर्शित 'सिंघम' ने पुराने दौर की एक्शन फिल्मों की याद दिलाई, जिसमें नया तड़का लगाया गया. किस तरह एक वर्दी वाला हीरो जनता के दर्द को देखकर अकेले ही पूरी व्यवस्था से लड़ता है यही सिंघम की कहानी थी.
3 जून 2011 को प्रदर्शित हुई निर्देशक अनीस बज्मी की फिल्म ‘रेडी’ सलमान के उन जबरदस्त चाहने वालों के लिए थी, जो इस बात को नजरअंदाज कर जाएं कि इस निहायत बकवास और बेस्वाद फिल्म की कोई पृष्ठभूमि नहीं है जिसके बारे में बात की जा सके. सलमान की करिश्माई उपस्थिति का इस फिल्म में इस्तेमाल नहीं किया जा सका. कुल मिलाकर इस फिल्म को औसतन ही कहा जा सकता है.
आम इंसान को इंसाफ नहीं मिलने की कहानी पर बॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन 7 जनवरी 2011 को प्रदर्शित हुई ‘नो वन किल्ड जेसिका’ इसलिए प्रभावित करती है कि यह एक सत्य घटना पर आधारित थी. ‘नो वन किल्ड जेसिका’ उन फिल्मों से इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें कोई ऐसा हीरो नहीं है जो कानून हाथ में लेकर अपराधियों को सबक सीखा सके. यहाँ जेसिका के लिए एक टीवी चैनल की पत्रकार देशवासियों को अपने साथ करती है और अपराधी को सजा दिलवाती है.
शादी हिंदी फिल्मों का एक सफल और लोकप्रिय विषय रहा है. यश चोपड़ा और सूरज बड़जात्या की फिल्मों में हम सच और कल्पना के मेल से सदैव विवाह का एक आदर्श रूप देखते आए हैं, लेकिन 25 फरवरी 2011 को प्रदर्शित हुई आनंद एल राय की फिल्म 'तनु वेड्स मनु' में उत्तर भारत में लड़की दिखाने के रिवाज से बारात के आगमन तक को बिना किसी लाग-लपेट के असली रंग में पेश किया, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. इस फिल्म के कुछ गानों ने भी काफी धमाल मचाया.