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मनोरंजन

पर्दे पर शाहरुख-काजोल की एक और प्रेम कहानी

पर्दे पर शाहरुख-काजोल की एक और प्रेम कहानी
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शाहरुख 'माई नेम इज खान' में रिजवान खान बने हैं जिसे एस्परजर सिंड्रोम है. यह दिमागी बीमारी ऑटिजम का ही एक रूप है लेकिन यह उससे कुछ अलग है. इसे हाई फंक्शन ऑटिजम भी कहते हैं क्योंकि इसमें लैंग्वेज और इंटेलिजेंस की कोई कमी नहीं होती. फिल्म में ऐसा ही शाहरुख खान के साथ भी है वो इस बीमारी से पीड़ित रहने के बावजूद बहुत ही इंटेलिजेंट हैं लेकिन वो लोगों को समझ नहीं पाते.
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दिमागी बीमारी होते हुए भी एस्परजर से पीड़ित बच्चा बहुत इंटेलिजेंट होता है. कितने बच्चों में यह बीमारी होती है इसका कोई स्पष्ट डेटा नहीं है फिर भी यह अनुमान है कि 150 में से एक बच्चा इससे पीड़ित हो सकता है. भारत में तो हालात ज्यादा खराब हैं क्योंकि बहुत लोगों को इसकी जानकारी नहीं है और वक्त रहते इसका पता नहीं चलता.
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एस्परजर सिंड्रोम से पीड़ित रोगी को हालांकि भाषा को समझने में दिक्कत नहीं होती पर दूसरों की बातों में छिपे दूसरे अर्थ को नहीं समझ पाते. यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो जेनेटिक भी हो सकता है. एस्परजर का पता तब चलता है जब बच्चा दूसरे बच्चों से घुलने मिलने लगता है. इसमें सुधार के लिए बिहेवियर थेरपी का सहारा लिया जाता है. हाल में आई स्टडी कहती हैं कि अगर जल्द इसका पता चल जाए तो बच्चा रिकवर कर सकता है, लेकिन पर्सनैलिटी पर इसका कुछ असर तो जिंदगी भर रहता ही है.
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फिल्म की कहानी की शुरुआत शाहरुख के बचपन से होती है जो एस्परजर से पीड़ित एक मुस्लिम बने हैं. उनकी परवरिश मां की देखरेख में मुंबई के बोरिवली इलाके में होती है. बड़े होकर वो सैन फ्रांसिस्को चले जाते हैं और अपने भाई और भाभी के साथ रहते हैं. वहां उन्हें मंदिरा (काजोल) से इश्क हो जाता है. बाद में वो शादी कर लेते हैं और अपना बिजनेस शुरू करते हैं.
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अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद रिजवान खान और मंदिरा को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और वो अलग हो जाते हैं.
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मंदिरा को वापस पाने के लिए रिजवान अमेरिका में लंबी यात्रा पड़ निकल पड़ते हैं.
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‘माइ नेम इज खान’ एक एस्परजर सिंड्रोम से पीड़ित युवा की कहानी है जो अपनी प्रेमिका को वापस पाने की जद्दोजहद में संघर्ष करता है.
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1 फरवरी 2010 को शाहरुख और काजोल ने न्यूयार्क स्टाक एक्सचेंज के नैस्डेक में ओपनिंग बेल बजाया. उन्हें फाक्स सर्चलाइट पिक्चर्स ने माइ नेम इज खान के प्रोमोशन के लिए यहां आमंत्रित किया था.
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‘माइ नेम इज खान’ को करन जौहर ने निर्देशित किया है.
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लगभग 12 सालों के बाद शाहरुख खान, काजोल और करन जौहर एक साथ काम कर रहे हैं.
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फिल्म की पटकथा शिबानी भाटिया ने लिखी है जबकि इसे हीरू यश जौहर और गौरी खान इसके निर्माता हैं.
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1 फरवरी 2010 को शाहरुख और काजोल ने न्यूयार्क स्टाक एक्सचेंज के नैस्डेक में ओपनिंग बेल बजाया. उन्हें फाक्स सर्चलाइट पिक्चर्स ने माइ नेम इज खान के प्रोमोशन के लिए यहां आमंत्रित किया था.
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‘माइ नेम इज खान‘ बालीवुड की ऐसी पहली फिल्म है जिसे अमेरिका में फाक्स सर्चलाइट पिक्चर्स डिस्ट्रीब्यूट करेगी. करन जौहर ने फाक्स के साथ एक बिलियन डॉलर का करार किया है.
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फाक्स भारत में फाक्सस्टार के नाम से जबकि दुनियाभर में फाक्स सर्चलाइट के नाम से मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती है.
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शाहरुख खान पिछले एक साल में कई विवादों और समस्याओं से घिरे रहे हैं. 14 अगस्त 2009 को एक इवेंट में भाग लेने जब शाहरुख नेवार्क एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उन्हें इमिग्रेशन ऑफिस में घंटों पूछताछ से जूझना पड़ा. खान ने बाद में बताया कि उनसे वहां आने के कारण से संबंधित पूछताछ लगभग दो घंटे चली.
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जब इंडियन प्रीमियर लीग-3 के लिए हुई नीलामी में किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी का चयन नहीं किया गया तो शाहरुख ने इसकी भी आलोचना की. हालांकि शाहरुख खुद अपनी टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए नीलामी में शामिल थे. बाद में शिवसेना ने भी शाहरुख की जमकर खिंचाई की. पार्टी में शाहरुख के खिलाफ लगातार विरोध होता रहा और उनकी फिल्म ‘माइ नेम इज खान’ को भारत के किसी भी सिनेमा घर में प्रदर्शित नहीं करने देने की मांग उठी.
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करन जौहर की फिल्म ‘माइ नेम इज खान’ को मुंबई के 63 सिनेमाघरों में एक साथ रिलीज किया जा रहा है. महाराष्ट्र सरकार ने इन सिनेमाघरों की सुरक्षा का जिम्मा राज्य रिजर्व पुलिस की तीन बटालियन को सौंप दिया. कई गिरफ्तारियां की गई हैं और सभी पुलिसकर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई है.
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60वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय बर्लिन फिल्म समारोह में ‘माइ नेम इज खान’ का प्रीमियर किया जाना है. भारत सहित दुनिया के 40 देशों में इस फिल्म को 12 फरवरी को रिलीज किया जा रहा है. इन देशों में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और मध्य-पूर्वी यूरोपीय देश शामिल हैं.
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