चीयरलीडर्स के नाम से तो अब हर कोई परिचित है. क्रिकेट में मात्र ट्वेंटी-ट्वेंटी के खेलों मे ही चीयरलीडर्स का प्रयोग होता है. इसकी शुरूआत दक्षिण अफ्रीका से हुई थी. दक्षिण अफ्रीका में आयोजित पहले ट्वेंटी ट्वेंटी विश्वकप के दौरान चीयरलीडर्स का प्रयोग शुरू हुआ था.
टी-ट्वेंटी क्रिकेट में चीयरलीडर्स की शुरुआत के बाद बहुत विवाद हुआ था लेकिन अब ये क्रिकेट का अहम और जायकेदार हिस्सा बनती जा रही हैं.
कई कंपनियां तो अपने विज्ञापनों और ब्रांड प्रमोशन के लिए भी चीयरलीडर्स का उपयोग कर रही हैं.
दिल्ली की मेल टुडे अखबार ने तो अपने ब्रांड प्रमोशन के लिए कपिल देव की बॉलिंग करती तस्वीर के बैकग्राउंड में चीयरलीडर्स को दर्शाया है.
वोडाफोन और हिंदुस्तान लीवर कंपनी ने तो इन चीयरलीडर्स पर आधारित अपने विज्ञापन तक बना डाले.
दो साल पहले जब अखबारों के हेडलाइन में यह खबर आयी की ‘टी-ट्वेंटी में चीयरलीडर्स करेंगी दर्शकों का मनोरंजन’ तब लोगों के मन में यह अनायास ही आने लगा कि यह चीयरलीडर्स है क्या चीज.
लेकिन जैसे ही यह मालूम चला कि ये चीयरलीडर्स वो कुछ सुंदरियां होंगी जो कम कपड़ों में क्रिकेट के हर चौके-छक्के और विकेट गिरने (कहने का मतलब वो हर पल जिसमें कोई-कोई ना कोई टीम सेलिब्रेट करे) पर मोहक अंदाज में दर्शकों का मनोरंजन करेंगी तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
और फिर जब टेलीविजन स्क्रीन पर खूबसूरत चीयरलीडर्स को दिखाया जाने लगा तो लोगों की निगाहें टिकना तो लाजिमी था.
बंगलोर में जब विजय माल्या की वेरसिटी चीयरलीडर्स ग्रुप की सुंदरियों ने सड़क पर परेड की तो लोग उन्हें देखने को मचल उठे. आईपीएल 2008 में माल्या ने अमेरिका व्हाइटचीफ ग्रुप की चीयरलीडर्स को मैचों के दौरान मनोरंजन के लिए बुलाया तो 2009 में वेरसिटी ग्रुप की चीयरलीडर्स को बुलाया गया.
लेकिन, बात सिर्फ विजय माल्या की बंगलोर रॉयल चैलेंजर्स की अमेरिकी सुंदरियों की नहीं है. कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक शाहरुख खान ने भी एक रिएलिटी शो ‘नाइट्स एंड एजल्स’ के जरिए छह खूबसूरत बालाओं को अपनी चीयरलीडर बनाया. इनमें दो स्कूली लड़कियां भी थीं. इसी तरह, चेन्नई सुपर किंग्स की चीयरलीडर्स भी तमिल चैनल पर एक कांटेस्ट के जरिए चुनी गई.
दक्षिण अफ्रीका में हुए आईपीएल-2 में किसी भी टीम के खिलाड़ी और दर्शक चीयरलीडर्स की हौसलाफसाई से दूर न रहें, इसके लिए सभी फ्रेंचाइजी ने खासे इंतजाम किए थे.
आईपीएल के पहले सत्र मे चीयरलीडर्स की भाव-भंगिमाओं पर खासा बवाल मचा था. दिल्ली डेयरडेविल्स ने बीच सत्र में अपनी चीयरलीडर्स को वापस भेज दिया था.
एक विदेशी चीयरलीडर ने आरोप लगाया था कि भारतीय दर्शक बहुत फब्तियां कसते हैं. दो अश्वेत चीयरलीडर्स ने अपने फ्रेंचाइजी पर ही आरोप लगाया कि उन्हें सिर्फ इसलिए मौका नहीं मिला क्योंकि वो अश्वेत हैं. इसके अलावा, नैतिकता के झंडाबरदार सड़क पर भी उतर आए थे.
चीयरलीडर्स के डांस को अश्लील पाए जाने पर फ्रेंचाइसी मालिकों को सजा की बात भी कही गई थी. इस सबका नतीजा ये हुआ था कि चीयरलीडर्स की पोशाकों की लंबाई को बढ़ाया गया था. उन्हें सख्त हिदायत दी गई थी कि कहीं कोई ऐसा ‘डांस’ नहीं करें, जो शालीनता की सीमा लांघता हो. महाराष्ट्र में तो चीयरलीडर्स पर ही पाबंदी लगा दी गई थी.
आईपीएल के दूसरे सत्र में फ्रेचाइजी मालिकों को पहले सत्र की तरह बवाल का सामना नहीं करना पड़ा. विदेशी मुल्क में चीयरलीडर्स अपनी अदाओं और जलवों का भरपूर प्रदर्शन किया.
क्रिकेट में चीयरलीडर्स कितना अहम हिस्सा बन चुकी हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आईपीएल सीजन-3 में जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में राजस्थान और पंजाब टीम के बीच आईपीएल-3 मैच के दौरान चीयरलीडर्स के नाच पर लगी रोक के बावजूद मैच में यह नजारा बखूबी देखने को मिला.
इंडियन प्रीमियर लीग में सभी फ्रेंचाइजी टीमों की अपनी अपनी चीयरलीडर्स हैं. ये चीयरलीडर्स चौके-छक्के से लेकर टीम के विकेट झटकने तक जश्न के हर लम्हे में उनकी हौसलाफजाई करती हैं. इन चीयरलीडर्स की अपनी अलग यूनिफॉर्म है, जिससे पता चलता था कि वो किस टीम से जुड़ी हैं.
टी-20 वर्ल्ड कप के दौरान आईसीसी ने प्रायोजित चीयरलीडर्स की फौज खड़ी कर दी. एक निजी कंपनी का लोगो लगाए चीयरलीडर्स हर मौके पर ठुमके लगाती दिखीं. फिर, चाहे सिक्सर युवराज ने मारा हो या आफरीदी ने या, विकेट मुरली ने चटकाए हों या भज्जी ने. वैसे, जानकारों का मानना है कि ये रंग टेलीविजन के दर्शकों के लिए ज्यादा है.
अब देश में क्रिकेट की ही तरह अन्य भारतीय खेलों में भी चीयरलीडर्स का प्रयोग किया जा रहा है. इंडियन प्रीमियर लीग के साथ ही तालकटोरा में शुरू होने वाली राष्ट्रमंडल मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में दर्शकों को आकर्षित करने के लिए आईपीएल की तर्ज पर चीयरलीडर्स को शामिल किया जाएगा. परसेप्ट लिमिटेड के संयुक्त प्रबंधन निदेशक शैलेंद्रसिंह ने कहा कि मुक्केबाजी को लोकप्रिय बनाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है. ये चीयरलीडर्स बाउट के दौरान नजर आएंगी, इसके लिए विदेशी चीयरलीडर्स बुलाई गई हैं.
इसी तरह लखनऊ में आयोजित एक कबड्डी के टूर्नामेंट में चीयरलीडर्स को बुलाया गया परिणाम उत्साहवर्धक दिखा.
दुनिया में चीयरलीडर्स द्वारा किसी टीम का उत्साह बढ़ाने का इतिहास करीब 110 वर्ष पुराना है.
सबसे पहले अमेरीका की प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के एक थामस पीबेल्स को यह सूझा कि क्यों ना मिनेसोटा विश्वविद्यालय के खिलाफ फुटबॉल टीम का उत्साहवर्धन के लिए चीयरलीडिंग का प्रयोग किया जाए.
लेकिन चीयरलीडर्स का सबसे पहला व्यवस्थित प्रयोग मिनेसोटा विश्वविद्यालय ने 1898 में किया था. यह ऐसा प्रयोग था जिससे टीम का उत्साह बढ़ाने के लिए चीयरलीडर्स का प्रयोग किया गया और साथ ही दर्शकों का भी मनोरंजन हुआ.
सबसे पहले जॉनी केम्पबेल नामक एक विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय का चीयरलीडर्स बना था. बाद में 6 लोगों की एक टीम बनाई गई. इस विश्वविद्यालय की चीयरलीडर्स टीम यूनीफ़ॉर्म पहनती थी और नृत्य का प्रशिक्षण भी लेती थी.
शायद यकीन करना मुश्किल हो लेकिन 1923 तक चीयरलीडर्स सिर्फ पुरूष ही होते थे और महिलाओं के लिए चीयरलीडिंग करना उपयुक्त नही माना जाता था.
लेकिन उसके बाद समय बदलता गया और चीयरलीडिंग मे महिलाओं का अधिक प्रयोग होने लगा.
आज 97 फीसदी चीयरलीडर्स महिलाएँ ही होती हैं. आज बास्केटबाल, आइसहॉकी, रग्बी, अमरीकन फुटबॉल और अब ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट में चीयरलीडर्स का प्रयोग होता है.
लेकिन आज भी कॉलेजियट लेवल के चीयरलीडर्स में पुरूषों की संख्या करीब 50 फीसदी होती है.
चीयरलीडिंग का जन्म तो अमेरिका में हुआ और यह अभी भी पूरी तरह से अमेरिकी गतिविधि ही बना हुआ है. अमेरिका में तकरीबन 15 लाख लोग चीयरलीडिंग का हिस्सा हैं.
हालांकि अब पूरी दुनिया में इसके प्रसार को देखते हुए कई चीयरलीडर्स ग्रुप बाहर के देशों में भी फैलने लगे हैं. एक अनुमान के मुताबिक अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, कोलंबिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, हॉलैंड, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन में करीब एक लाख चीयरलीडर्स पलायल कर चुके हैं.