श्रीकृष्ण मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव पर विशेष प्रकार के सजावट की गई है. कई जगह श्रीकृष्ण प्रतियोगिता भी आयोजित की गई.
इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का आयोजन किया जाता है.
घरों में जन्माष्टमी पर्व मनाने के लिए बच्चे एकाध दिन पहले से ही सजावट करने में जुटे रहते हैं.
मथुरा के मंदिरों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. मथुरा के कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व देश के अन्य हिस्सों से अधिक महत्व होता है क्योंकि मथुरा में ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर मंदिर है जहां कृष्ण भगवान ने द्वापर युग में जन्म लिया था.
जन्माष्टमी पर मथुरा में देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से बड़ी संख्या में कृष्ण भक्त आते हैं.
पूरे भारत में जन्माष्टमी का उत्सव बड़ी ही धूमधाम से बनाया जाता है. मंदिरों को रंग बिरंगी लाइट और फूलों से सजाया जाता है. भगवान कृष्ण का मनमोहक श्रंगार कर विशेष पोशाक पहनाई जाती है.
महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान, कृष्ण के द्वारा बचपन में लटके हुए छींकों (मिट्टी की मटकियों), जो कि उसकी पहुंच से दूर होती थीं, से दही व मक्खन चुराने की कोशिशों करने का उल्लासपूर्ण अभिनय किया जाता है.
उत्तर प्रदेश के वृन्दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर खर्चीले व रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं.
जन्माष्टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास व प्रार्थना करते हैं. मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया जाता है व प्रकाशित किया जाता है.
हिन्दु पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण का जन्म, मथुरा के असुर राजा कंस, जो उसकी सदाचारी माता का भाई था, का अंत करने के लिए हुआ था.
उत्तर प्रदेश के वृन्दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर खर्चीले व रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं.
कृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है.
दही व मक्खन आदि वस्तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ डालते हैं.
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि के अवजित मुहूर्त में अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया.
दही हांडी का यह खेल युवा मन ही नहीं उम्र की एक दहलीज पर खडे व्यक्तियों में भी ऊर्जा का संचार कर देता है.
युवाओं के लिए तो दही हांडी एकता के बल का एक उत्तम उदाहरण है.
बेहद रोचकता से भरा दही हांडी भी कृष्ण भक्तों को ईश्वर को श्रृद्धा पेश करने का एक तरीका है.
पवित्र रिश्तों और मन की शांति से जुडा दही हांडी का यह खेल आपसी भाईचारे को बढ़ावा देता है.
अकसर हमारे फिल्मी अभिनेता अभिनेत्रियों को हांडी फोड कर ही आकर्षित करते हैं.
एकजुटता और स्नेह से भरपूर दही हांडी के इस खेल को फिल्मों में खूब भुनाया जाता है.
दही व मक्खन आदि वस्तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ डालते हैं.
कृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है.
इस खेल के दौरान भीगा तन मन के सारे मैल को धो डालता है और मन में पसर जाती है इनसानियत.
2010 की जन्माष्टमी पर लगभग पाँच हजार साल बाद दुर्लभ संयोग पडने जा रहा है. 2-3 सितंबर की मध्यरात्रि को जन्माष्टमी को कृष्ण जन्म के समय रोहणी नक्षत्र व अष्टमी तिथि एक साथ है. ऐसा संयोग भगवान के जन्म के समय पर भी पड़ा था. यह सुखद संयोग बुधवार रात ठीक बारह बजे पडेगा.
जन्माष्टमी पर मथुरा में देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से बड़ी संख्या में कृष्ण भक्त आते हैं.
हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महत्व बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, शिवरात्रि महारात्रि है, श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है.
जिनके जन्म के सैंयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है. इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है.