हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर का आज आज जन्मदिन है. इस महान कलाकार को याद करते हुए
हुए आइए तस्वीरों में जानें उनके फिल्मी सफर के बारे में:
हिंदी सिनेमा को शो बिजनेस का चेहरा देने वाले राजकपूर ने चालीस के दशक में फिल्म 'आग' से अपने सिने करियर की शुरुआत की थी.
उसके बाद बरसात, आवारा, श्री-420, चोरी-चोरी, जिस देश में गंगा बहती है, संगम, मेरा नाम जोकर और बॉबी सरीखी कई सुपरहिट फिल्में दीं.
अस्सी के दशक में भी प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली जैसी फिल्मों के जरिये उन्होंने खुद को बखूबी साबित किया.
शायद 'जोकर' थीम पर फिल्म बनाने का उनका विचार 1955 से ही था पर बना पाये वे 1970 में. पर बॉक्स आफिस पर उनकी यह फिल्म टिक नहीं सकी और उन्हें अत्यंत मायूसी हुई.
उनकी इस फिल्म के प्रति महत्वाकांक्षा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1955 में प्रदर्शित उनकी फिल्म श्री 420 में नर्गिस के सामने वे अपने रोल में कहते हैं कि "खा गई न तुम भी कपड़ों से धोखा" और ब्लेक बोर्ड पर जोकर का चित्र बना देते हैं.
मेरा नाम जोकर उनकी सर्वाधिक महत्वाकांक्षी फिल्म थी जो कि 1970 में प्रदर्शित हुई और जिसके निर्माण में 6 वर्षों से भी अधिक समय लगा.
राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी सफलतम फिल्मी जोड़ियों से एक थी, उन्होंने फिल्म आह, बरसात, आवारा, श्री 420, चोरी चोरी आदि में एक साथ काम किया था.
अपने द्वारा निर्देशित अधिकतर फिल्मों में राज कपूर ने स्वयं हीरो का रोल निभाया.
राज कपूर ने 1948 से 1988 तक की अवधि में अनेकों सफल फिल्मों का निर्देशन किया जिनमें अधिकतम फिल्में बॉक्स आफिस पर सुपर हिट रहीं.
1948 में उन्होंने पहली बार फिल्म 'आग' का निर्देशन किया और वह अपने समय की सफलतम फिल्म रही.
24 साल की उम्र में ही अर्थात 1948 में उन्होंने अपनी स्टूडियो, आर.के. फिल्म्स, की स्थापना कर लिया था और उस समय के सबसे कम उम्र के निर्देशक बन गये थे.
केदार शर्मा ने राज कपूर के भीतर के अभिनय क्षमता और लगन को पहचाना और उन्होंने राज कपूर को सन् 1947 में अपनी फिल्म नीलकमल, जिसकी नायिका मधुबाला थी, में नायक का काम दे दिया.
राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर को विश्वास नहीं था कि राज कपूर कुछ विशेष कार्य कर पायेगा, इसीलिये उन्होंने उसे सहायक या क्लैपर ब्वॉय जैसे छोटे काम में लगवा दिया था.
राज कपूर बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियो में सहायक का काम करते थे. बाद में वे केदार शर्मा के साथ क्लैपर ब्वाय का कार्य करने लगे.
राज कपूर के फिल्मी सफर की शुरुआत 1935 में हुई. जब उनकी उम्र केवल 11 वर्ष थी, फिल्म इंकलाब में अभिनय किया था.
राज कपूर की फिल्मों की कहानियां आमतौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती थीं और अपनी ज्यादातर फिल्मों के मुख्य नायक वे खुद होते थे.
सिने माहौल में पैदा हुए और पले बढ़े राज कपूर को बचपन से ही इस माध्यम के प्रति सम्मोहन था और सिर्फ 23 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी पहली फिल्म आग बना दी.
राज कपूर अभिनय, निर्देशन, निर्माण के अलावा कहानी, पटकथा, संपादन, गीत, संगीत जैसे पक्षों के भी पारखी थे.
राज कपूर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. आजादी के बाद देश को प्रगति की राह में आगे बढ़ाने के लिए नेहरू की समाजवादी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए सामाजिक संदेशों के साथ मनोरंजक फिल्में बनाने वाले शोमैन राज कपूर संपूर्ण फिल्मकार थे.
राज कपूर को 1987 में दादा साहेब फाल्के पुरष्कार प्रदान किया गया था.
फिल्म बरसात से राज कपूर ने अपनी फल्मों के गीत संगीत के लिये एक प्रकार से एक टीम बना लिया था जिसमें उनके साथ गीतकार शैलेन्द्र तथा हसरत जयपुरी, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर जयकिशन शामिल थे.
रूस में तो उनकी फिल्मों के हिंदी गाने भी अत्यंत लोकप्रिय रहे हैं विशेषकर फिल्म आवारा और श्री 420 के.
राज कपूर को भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता है. राज कपूर की फिल्मों ने सोवियत रूस, चीन, आफ्रीका आदि देशों में भी प्रसिद्धि पाई.
राज कपूर को सिने प्रेमी दर्शकों के साथ ही साथ फिल्म आलोचकों से भी भरपूर प्रशंसा मिली. वे चार्ली चैपलिन के प्रशंसक थे और उनके अभिनय में चार्ली चैपलिन का पूरा पूरा प्रभाव पाया जाता था.
इस दृश्य के फिल्मांकन हो जाने के बाद जब उसे राज कपूर को दिखाया गया तो दृश्य उन्हें पसंद नहीं आया और एक बार फिर से लाखों रुपये खर्च करके राज कपूर ने बांध बनवाया तथा उस दृश्य को फिर से शूट किया गया.
इस फिल्म के के क्लाइमेक्स में बाढ़ का दृश्य था जिसे फिल्माने के लिये अपने खर्च से नदी पर बांध बनवाया और नदी में भरपूर पानी भर जाने के बाद बांध को तुड़वा दिया जिससे कि बाढ़ का स्वाभाविक दृश्य फिल्माया जा सके.
बॉबी फिल्म की सफलता के बाद राज कपूर ने अपनी अगली फिल्म सत्यम शिवम सुन्दरम बनाई जो कि फिर एक बार हिट हुई.
अपनी इस फिल्म में उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर और नई कलाकार डिंपल कापड़िया को मुख्य रोल दिया और दोनों ही बाद में सुपर हिट स्टार साबित हुये.
किसी प्रकार से अपनी निराशा से मुक्ति पाकर राज कपूर ने फिल्म बॉबी के निर्माण व निर्देशन में जुट गये. बॉबी सन् 1973 में प्रदर्शित हुई जो बॉक्स आफिस पर सुपर हिट हुई.
देश के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार सहित कई सम्मानों से नवाजे गए राजकपूर का दो जून 1988 को निधन हो गया.
हिना के निर्माण के दौरान राज कपूर की मृत्यु हो गई और उस फिल्म को उनके बेटे रणधीर कपूर ने पूरा किया.