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मनोरंजन

शोमैन से लेकर खान स्टार्स तक, कुछ ऐसी रही बॉलीवुड सितारों की पॉलिटिक्स

शोमैन से लेकर खान स्टार्स तक, कुछ ऐसी रही बॉलीवुड सितारों की पॉलिटिक्स
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दीपिका पादुकोण के जेएनयू छात्रों को समर्थन करने के फैसले ने बॉलीवुड और पॉलिटिक्स के कनेक्शन को एक नए स्तर पर ले जाने का काम किया है. आमतौर पर बॉलीवुड सितारों से  पॉलिटिकल और विवादित सामाजिक मुद्दों पर राय की उम्मीद नहीं की जाती रही है लेकिन पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया कल्चर ने सब कुछ बदल दिया है. आम छात्रों की तरह ही बॉलीवुड के कई सितारे भी सड़कों पर प्रोटेस्ट दर्ज करा रहे हैं और सोशल मीडिया पर खुलकर राय दे रहे हैं. हालांकि अब भी फैंस शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान की चुप्पी से हैरान हैं.

कुछ सालों पहले तक पीएम मोदी के क्रिटिक रहे दोनों सितारे मोदी के सत्ता में आने के बाद से काफी बैलेंस होकर बयान दे रहे हैं क्योंकि इससे उनकी फिल्मों के बायकॉट होने का खतरा मंडराने की संभावनाएं बढ़ी हैं. जानने की कोशिश करते हैं कि अब तक बॉलीवुड का पॉलिटिकल इतिहास कैसा रहा है.
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60 के दशक में पृथ्वीराज कपूर पहले ऐसे अभिनेता बने जिन्होंने पार्लियामेंट में नॉमिनेटेड मेंबर के तौर पर एंट्री ली थी. वे कांग्रेस सपोर्टर थे. वहीं आगे चलकर उनके बेटे भी नेहरू के बेहद खास रहे. राज कपूर की फिल्मों में नेहरूवियन सोशल्जिम दिखता रहा और वे उस दौर में भारत के अलावा रूस में भी लोकप्रिय रहे. जब नेहरू ने स्टालिन से मुलाकात की थी तो वे लगातार नेहरू से राज कपूर और उनकी फिल्म आवारा के बारे में पूछते रहे थे.

हालांकि राज कपूर सुभाष चंद्र बोस को भी काफी पसंद करते थे और उन्होंने नेताजी की इंडियन नेशनल आर्मी के लिए पैसा भी इकट्ठा किया था. उनकी एक बार  आरएसएस के प्रमुख गोलवलकर से बहस भी हो गई थी. दरअसल जेल से छूटने के बाद वहां मौजूद उनके कुछ समर्थकों ने कुछ आपत्तिजनक नारे लगाए और भीड़ ने हंगामा किया तो राज कपूर ने गोलवलकर को अनुशासन को लेकर पाठ पढ़ा दिया था.
वही एक्ट्रेस जोहरा सहगल की एक किताब के अनुसार, उस दौर में एक भीड़ ने राज कपूर के थियेटर प्ले के खिलाफ प्रदर्शन किया था. इस प्ले का नाम पठान था और ये हिंदूवादी संगठन चाहता था कि इस प्ले से सभी मुसलमानों को हटाया जाए. प्रोटेस्ट करने वाली भीड़ पहचान नहीं पाई थी कि वहां कौन मुस्लिम है और राज कपूर ने अपने प्ले को जारी रखा था.
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1947 से लेकर 1964 तक देश के पीएम जवाहरलाल नेहरु बने रहे. इस दौरान उन्होंने कई पॉलिटिकल रुप से एक्टिव फिल्ममेकर्स से अपनी करीबी रखी. पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर महबूब खान, दिलीप कुमार, नरगिस दत्त जैसे कई सितारे कांग्रेस के करीबी रहे. इस दौर में भारतीय सेना के लिए भी इन सितारों ने कई बार फंड्स जुटाए लेकिन इसी दौर में पॉलिटिक्स बेहद सक्सेसफुल एक्टर्स के लिए करियर का दूसरा ऑप्शन बनना भी शुरु हो चुकी थी. नरगिस बॉलीवुड की पहली बड़ी एक्ट्रेस रहीं जिन्होंने एक्टिंग के बाद राजनीति में सफल पारी खेली. इसके अलावा 70 के दशक में भी कई सितारों ने एक्टिंग के बाद राजनीति को अपना करियर चुना. नरगिस के पति सुनील दत्त को इंडस्ट्री का सबसे सफल राजनेता कहा जा सकता है. जब उनकी मौत हुई उस समय वे मनमोहन सिंह सरकार में स्पोर्ट्स और यूथ मिनिस्टर थे.
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इसी दौर में बलराज साहनी जैसे कलाकार भी रहे जिन्होंने 40 के दशक में दो पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री हासिल की और गांधी की सलाह के बाद बीबीसी में काम किया. फिर एक्टिंग में भी हाथ आजमाया और कैरेक्टर एक्टर के तौर पर 90 से अधिक फिल्मों में काम किया. उन्होंने गर्म हवा, काबुलीवाला, दो बीगा जमीं और धरती के लाल जैसी शानदार मीनिंगफुल फिल्मों में काम किया. वे उस दौर में एक्टर होने के साथ साथ पॉलिटकली काफी एक्टिव थे. अमिताभ बच्चन बलराज साहनी को अपने आप से काफी बेहतर एक्टर मानते थे.

बलराज साहनी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की यूथ विंग के पहले प्रेसीडेंट थे.  उन्होंने 1972 में जेएनएयू में ऐतिहासिक स्पीच भी दी थी. उन्होंने पंजाबी में कई किताबें लिखी थीं. इसके अलावा उन्होंने सोवियत यूनियन और पाकिस्तान की यात्रा पर भी दो किताबें लिखी थी जो काफी लोकप्रिय हुई थीं. उन्होंने एक फिल्म का डायरेक्शन भी किया लेकिन ये फ्लॉप साबित हुई हालांकि वे देव आनंद की बाजी जैसी बेहतरीन फिल्म का स्क्रीनप्ले भी लिख चुके हैं. बलराज साहनी नेहरु की काफी प्रशंसा करते थे जो सीपीआई को बर्दाशत नहीं था. 1972 में इंदिरा गांधी द्वारा पाक को बांग्लादेश से अलग करने के फैसले का साहनी ने सपोर्ट किया था जिसके बाद बलराज को सीपीआई से निकालने का फैसला किया गया था. उन्हें ये खबर देने कुछ लोग पहुंचे थे और वे इस फैसले से काफी सदमे में आ गए थे क्योंकि वे कुछ समय पहले अपनी बहन की मौत से भी काफी परेशान थे. उन्होंने मरते वक्त अपनी पत्नी से कार्ल मार्क्स द्वारा लिखी गई दास कैपिटल की प्रति अपने पास रखवाई थी. वे बॉलीवुड में काम करने वाले वर्कर्स के हकों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार से लगातार मांग करते थे.
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कांग्रेस को पसंद करने वाले एक्टर्स के अलावा कई ऐसे सितारे थे जो रैडिकल लेफ्टिस्ट थे जिनमें मृणाल सेन, सत्यजीत रे और ऋत्विक घटक जैसे डायरेक्टर्स को लिया जा सकता है. इन बंगाली डायरेक्टर्स ने कई ऐसी फिल्मों का निर्देशन किया जो समाज की रियलिस्टिक समस्याओं को दिखाती थी और इटालियन न्यू वेव सिनेमा के अंतर्गत सिनेमा को पावरफुल माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया. कुछ कलाकारों ने सिनेमा को मनोरंजन के माध्यम के तौर पर सीमित करने के बजाए इसे एक आर्टिस्टिक पॉलिटिकल माध्यम के तौर पर देखा और अपनी सामाजिक चेतनाओं से भरी फिल्मों को लोगों के सामने रखा.
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इसके बाद 70 के दशक में कमर्शियल और आर्ट और मीनिंगफुल फिल्मों के बीच अंतर बढ़ता रहा. नसीरुद्दीन और ओम पुरी उस दौर में कई ऐसी फिल्मों में नजर आए जो समाज के हाशिए पर मौजूद लोगों की कहानी कहतीं. दोनों ही सितारे समय समय पर सत्ता के खिलाफ बयान देते रहे और अपने आर्ट के सहारे पावरफुल पॉलिटिकल मैसेज देते रहे और बीते दौर में आर्टहाउस और पैरेलल सिनेमा के स्टार अभिनेता कहलाए. 
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80 के दौर में एक समय ऐसा आया जब पॉलिटिक्स बेहद लोकप्रिय फिल्म सितारों के लिए करियर का दूसरा ऑप्शन बनने लगा. जया प्रदा, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, सुनील दत्त, विनोद खन्ना, मिथुन जैसे कई सितारों ने बॉलीवुड के साथ ही साथ राजनीति में भी हाथ आजमाया हालांकि ये सितारे देश के विवादित मुद्दों को लेकर सड़कों पर कम ही उतरे और केवल अपने आपको मेंबर ऑफ पार्लियामेंट तक सीमित रखा.

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अमिताभ बच्चन ने 70 के दशक में स्टारडम हासिल करने के बाद 80 के दशक में कांग्रेस पार्टी जॉइन की थी. अमिताभ और राजीव गांधी करीबी दोस्त थे. हालांकि बोफोर्स घोटाले के सामने आने के बाद अमिताभ का राजनीति से लगाव कम होता गया और उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया. इसके बाद वे समाजवादी पार्टी से भी जुड़े लेकिन यहां भी उन्हें राजनीति रास नहीं आई. अब वे अपने प्रोफेशनल जीवन में सिर्फ फिल्मों में काम करते हैं

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80-90 का दौर ऐसा था जब सिनेमा कई स्तर पर बदल रहा था. इस दौर में महेश भट्ट जैसे कलाकार भी हुए जिन्होंने फिल्मों से लेकर आध्यात्म को भी एक्सप्लोर किया और सत्तारुढ़ पार्टी के खिलाफ अपने आर्ट के एक्सप्रेशन से विरोध दर्ज कराते रहे.एक्टर विनोद खन्ना के साथ मिलकर दोनों ने ओशो के आश्रम में कुछ समय भी बिताया था. ओशो के साथ पांच साल गुजारने के बाद विनोद वापस मुंबई लौट आए थे और  वे चार बार एमपी और यूनियन मिनिस्टर रहे. उन्होंने कई ऐसी फिल्में भी बनाई जो उस दौर में टैबू मानी जाती रहीं. महेश ने ऑफबीट सिनेमा के अलावा कमर्शियल सिनेमा में भी हाथ आजमाया वही सईद मिर्जा, श्याम बेनेगल जैसे पॉलिटिकली एक्टिव डायरेक्टर्स मेनस्ट्रीम सिनेमा से दूर आर्ट सिनेमा में रमे रहे.
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शबानी आजमी के पेरेंट्स कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से ताल्लुक रखते थे. स्मिता और शबाना एक्टर्स होने के अलावा सोशल एक्टिविस्ट भी रही हैं. ये दोनों सितारे 70-80 के दशक में पैरेलल सिनेमा की टॉप एक्ट्रेसेस मानी जाती रहीं. वे सांप्रदायिकता के खिलाफ प्रोटेस्ट करती रही हैं. उन्होंने कश्मीरी माइग्रेंटस को लेकर भी आवाज उठाई है. शबाना ने साल 2019 के आम चुनावों में कन्हैया कुमार को सपोर्ट किया था. शबाना ने जेएनयू लीडर सफदर हाशमी की कांग्रेस नेता द्वारा मौत की जबरदस्त आलोचना की थी और उन्होंने दिल्ली में एक फिल्म फेस्टिवल में सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी
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90 के दशक के स्टार्स मसलन अजय देवगन, सैफ अली खान, सलमान खान, अक्षय कुमार, शाहरुख खान ज्यादातर मुद्दों पर नॉन पॉलिटिकल रहे हैं और इसी दौर में ही इंडस्ट्री विवादित मुद्दों को लेकर भी काफी चर्चा में रही. मसलन 93 में हुए मुंबई ब्लास्ट्स और सांप्रदायिक हिंसा के बीच बॉलीवुड के सितारों ने अमन का पैगाम देते सॉन्ग में स्पेशल अपीयरेंस दिया था लेकिन कोई भी बड़ा बॉलीवुड मेनस्ट्रीम स्टार स्ट्रॉन्ग पॉलिटिकल समझ का परिचय देते हुए सत्ता के खिलाफ खड़ा नहीं दिखा. आमिर खान जरुर नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ नजर आए थे और उस दौर में गुजरात के सीएम मोदी की आलोचना भी की थी लेकिन आमिर खान ने साफ कहा था कि वे पॉलिटिक्स में कदम नहीं रखना चाहते हैं और मोदी के पीएम बनने के बाद से आमिर और शाहरुख सरकार के खिलाफ अपनी ओपिनियन का दंश झेल चुके हैं.
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सोशल मीडिया कल्चर ने फैंस और स्टार्स को ऐसा प्लेटफॉर्म  दे दिया है जिसके चलते आज प्रभावशाली हस्तियां अपनी बात को दुनिया के सामने खुलकर रख पा रही हैं. यही कारण है कि सरकार के खिलाफ या सपोर्ट में आज के दौर में कई हस्तियां साफ देखी जा सकती हैं.  आज के दौर में परेश रावल, अनुपम खेर. किरण खेर, रवीना टंडन, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे सितारे पीएम मोदी को पसंद करते हैं वही अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू, अनुभव सिन्हा, स्वरा भास्कर, हुमा कुरैशी, ऋचा चड्ढा, श्वेता त्रिपाठी, राजकुमार राव, विकी कौशल जैसे कई सितारों ने समय-समय पर सरकार की गलत नीतियों की आलोचना की है. दीपिका पादुकोण जैसी सुपरस्टार एक्ट्रेस का जेएनयू प्रोटेस्ट में समर्थन देना बॉलीवुड के इतिहास में वॉटरशेड मोमेंट भी साबित हो सकता है.
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