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मनोरंजन

वी. शांताराम: वह निर्देशक जिसने सबसे पहले बनाईं प्रयोगवादी फिल्में

वी. शांताराम: वह निर्देशक जिसने सबसे पहले बनाईं प्रयोगवादी फिल्में
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ख्यात फिल्मकार वी. शांताराम 18 नवंबर, 1901 को कोल्हापुर में जन्मे थे. वी शांताराम उन हस्तियों में थे, जिनके लिए फिल्में मनोरंजन के साथ सामाजिक संदेश देने का माध्यम थी. अपने लंबे करियर में उन्होंने प्रयोगधर्मिता को भी बढ़ावा दिया.
वी. शांताराम: वह निर्देशक जिसने सबसे पहले बनाईं प्रयोगवादी फिल्में
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शांताराम की सर्वाधिक चर्चित फिल्म दो आंखें बारह हाथ है, जो 1957 में प्रदर्शित हुई. यह एक साहसी जेलर की कहानी है, जो छह कैदियों को बिल्कुल नए तरीके से सुधारता है. अपनी अनूठी कथा, पृष्ठभूमि के कारण यह फिल्म आज भी लोगों को बांध लेती है. इस फिल्म को राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक सम्मान दिया गया था. साथ ही इसने बर्लिन फिल्म महोत्सव में सिल्वर बियर सहित कई विदेशी पुरस्कार जीता.
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दादा साहब फाल्के सहित कई सम्मानों से नवाजे गए शांताराम का मूल नाम राजाराम वानकुर्दे शांताराम था. शांताराम ने नाममात्र की शिक्षा पायी थी. उन्होंने 12 साल की उम्र में रेलवे वर्कशाप में अपेंट्रिस के रूप में काम किया था. कुछ समय बाद वह एक नाटक मंडली में शामिल हो गए. फिल्म निर्माण की कला उन्‍होंने बाबूराव पेंटर से सीखी. उन्होंने 1925 में आयी सवकारी पाश में किसान की भूमिका निभायी थी. बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म नेताजी पालकर थी. बाद में उन्होंने अपने बैनर राजकमल कला मंदिर की स्थापना की. कहा जाता है कि उन्होंने अपने स्टूडियो में आधुनिक सुविधाएं जुटायी थीं.
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डॉ. कोटनिस की अमर कहानी, झनक झनक पायल बाजे, नवरंग, दुनिया ना माने जैसी अपने समय की बेहद चर्चित फिल्मों में शांताराम ने फिल्म निर्माण से जुड़े कई प्रयोग किए. उन्होंने फिल्मों के मनोरंजन पक्ष से कोई समझौता किए बिना नए प्रयोग किए जिनके कारण उनकी फिल्में न केवल आम दर्शकों बल्कि समीक्षकों को भी काफी भायी. शांताराम ने हिंदी फिल्मों में मूविंग शॉट का प्रयोग सबसे पहले किया. उन्होंने बच्चों के लिए 1930 में रानी साहिबा फिल्म बनायी. चंद्रसेना फिल्म में उन्होंने पहली बार ट्राली का प्रयोग किया.
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गीत और संगीत शांताराम की फिल्मों का एक और मजबूत पक्ष होता था. उनकी फिल्मों में जहां कहानी बेहद सधे हुए तरीके से आगे बढ़ती थी, वहीं गीत और संगीत उनमें चार चांद लगाते. मिसाल के रूप में 'झनक झनक पायल बाजे' को देखा जा सकता है. एक फिल्मकार के रूप में वह अपनी फिल्मों के संगीत पर विशेष ध्यान देते और उनका जोर इस बात पर रहता कि गानों के बोल आसान और गुनगुनाने योग्य हो.
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