दिल्ली के सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में हुए इंडिया टुडे माइंड रॉक्स समिट 2013 में मंच पर आए दिल्ली गैंगरेप पीड़िता ज्योति पांडे के मां-बाप. गुल पनाग जब मंच पर इन दोनों से मिलने पहुंची तो अपने आंसू रोक नहीं पाईं.
मंच पर पहुंची गुल पनाग ज्योति के मां-बाप से मिल कर सिसक सिसक कर रोने लगीं.
ज्योति की मां ने गुल पनाग को दिलासा भी दिया. इंडिया टुडे माइंड रॉक्स समिट-2013 में एक अहम प्रगतिशील कदम की नींव रखी गई. हो सकता है कि बहुत जल्द दिल्ली गैंगरेप की शिकार हुई बहादुर ज्योति की तस्वीर दुनिया के सामने आए. खुद ज्योति की मां ने इसकी वकालत की है.
'क्राइम, नॉट एज सेशन' का अंत आंसू और संकल्प के साथ हुआ. मंच पर मौजूद थे ज्योति के माता-पिता, जिन्होंने देश को धन्यवाद दिया और ये वादा लिया कि जब तक देश की हर बेटी सुरक्षित नहीं हो जाती, हमारी लड़ाई रुकनी नहीं चाहिए. वहां मौजूद सभी जनता की आंखों से भी आंसू छलक पड़े.
गुल पनाग ने कहा, जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन एक्ट 2001 इस सोच के साथ बना था कि नाबालिगों के पास सही फैसला लेने और भविष्य का सोचने की पूरी क्षमता नहीं होती. मगर इसमें भी अलग-अलग श्रेणी का फेर है. यह दिमागी मैच्योरिटी की बात है. मुझे लगता है कि किसी भी मसले में सजा इस तरह की होनी चाहिए कि लगे न्याय हुआ है.
इस मौके पर किरण बेदी ने कहा कि जैसे हम दूसरे वीरों की तस्वीर देखते हैं, वैसे ही हमें ज्योति की तस्वीर भी देखनी चाहिए. इस पर ज्योति की मां ने भी सहमति जताते हुए कहा, 'मेरी बेटी का मुंह क्यों छिपाया जाए. उसने कोई गलत काम नहीं किया. मुंह वे छिपाएं जिन्होंने ये घिनौना काम किया. देश ने जैसे मेरी बेटी का साथ दिया. वैसे ही सबका साथ दे, ताकि लड़ाई कमजोर न होने पाए.'
ज्योति के पिता बोले, बेटी के विषय में कुछ भी कहें थोड़ा है. उसने जो लड़ाई लड़ी आपने देखी, अस्पताल में जूझते हुए बयान दिए. मगर अब ये लड़ाई आपको लड़नी है. और ये मशाल तब तक जलनी है, जब तक दिल्ली से, देश से ये दरिंदगी का अंधरा खत्म हो जाए. और जो ऐसे हादसे का शिकार होकर जिंदा हैं, लड़ाई लड़ रही हैं, उनके लिए समाज को जागना होगा. उनका पुर्नवास सुनिश्चित करना होगा.
गुल पनाग ने कहा, बात होती है सुधार की. मुझे एक रिपोर्ट याद आती है, जिसके मुताबिक एक नाबालिग अपराधी ने छह साल की बच्ची से रेप किया. उसे टुकड़े-टुकड़े कर काट डाला. तीन साल बाद वह जेल से आ गया और पीड़ित परिवार के पास जाकर बोला, मैं वापस आ गया हूं और अब तुम्हारी दूसरी बेटी के साथ भी यही करूंगा. अब आप बताइए कानून ने कितना सुधार दिया उस लड़के को.
उन्होंने कहा, यूएस में एक कंसेप्ट है, लेजिस्टेटिव वेबर. जिसमें रेप मर्डर जैसे अपराध में अगर अपराधी की नीयत स्थापित हो चुकी है तो सजा देते वक्त उसकी उम्र का ख्याल नहीं किया जाता.
गुल पनाग ने इस दौरान कहा, एक क्रिमिनल को कभी ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वह क्राइम करेगा और उम्र के चलते बाहर आ जाएगा और उसका रिकॉर्ड भी बेदाग रहेगा.
गुल पनाग ने कहा, सबसे पहले पुरुष प्रधान सोच को मिटाना है. हम सब जानते हैं. उसकी शुरुआत घर, स्कूल समाज से होगी, सब जानते हैं. मगर आपका जस्टिस सिस्टम ही पुरुष प्रधान है. तब क्या होगा. लॉ को क्रिमिनल और विक्टिम के हिसाब से देखना होगा, जेंडर के हिसाब से नहीं.
उन्होंने कहा, हमारे समाज में महिलाओं पर अत्य़ाचार हुआ है. उनके लिए कदम उठाए जाने चाहिए. मगर मैं आरक्षण के झुनझुने के खिलाफ हूं. मसला ये है कि हमें दूसरे दर्जे का नागरिक न समझा जाए. ये वही देश है, जहां औरतों को सती प्रथा के नाम पर जिंदा जलाया जाता था. इसे रोका गया एक कानून के जरिए और ये कानून अंग्रेजों ने आकर बनाया.
किरण बेदी ने कहा कि खतरनाक बाल अपराधियों को फांसी नहीं तो कम से कम उम्रकैद हो, जिससे वो मरें जेल में ही.
किरण बेदी के मुताबिक, पहली जिम्मेदारी है पेरंट्स की, बराबरी से ट्रीट करें, दूसरी टीचर्स की, कि बराबरी का पाठ, उसकी समझ पढ़ाएं. आज हम आपके सामने बैठे हैं, क्योंकि हम बराबरी के जरिय़े आए हैं. आप इंडिया टुडे ग्रुप में देखिए, ये हुआ है. यहां बेटियां संभाल रही हैं सब कुछ. कब होगा जब गुलाब चंद एंड संस की जगह गुलाब चंद एंड डॉटर्स आएगा.
निष्ठा गौतम ने भी अपने विचार रखे और कहा, नाबालिग अपराधों में से 60 फीसदी 16 से 18 के एज ग्रुप ने किया है. इसमें एक और आंकड़ा जोड़ लीजिए. तो 12-16 के भी तीस फीसदी लोग हैं. तो आपको इस उम्र पर गंभीरता से सोचना होगा. आप सहमति से सेक्स के लिए 16 साल की उम्र का नियम बना रहे हैं. मगर जब कोई रेप करता है तो उसके लिए 18 का नियम है. ये कहां का न्याय है.
किरण बेदी ने कहा, मैंने मुजफ्फर नगर दंगों में देखा. बेटियां स्कूल नहीं जा पा रही थीं. मैंने कभी औरतों को दंगा करते नहीं देखा. तो दंगा लगे मगर पुरुषों के लिए. लड़कियों के हाथ में कमान हो, बंदिश न हो उनके लिए. इस तरह से माइंड सेट बदलेगा.