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भोजपुरी फिल्‍में: खराब हो रही पटकथा

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कहीं पैसों की किल्लत के चलते शूटिंग बंद हो रही तो कहीं आशिक मिजाजी या शारीरिक शोषण की खबरें मिलने लगीं.

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भोजपुरी सिनेमा
भोजपुरी सिनेमा

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करीब 3,000 करोड़ रु. के कारोबारी आंकड़े चूम रही और स्वर्ण जयंती मना रही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में ऐसी खबरें अजब पैबंद जैसी लगती हैं. पैसों की किल्लत के चलते शूटिंग बंद हो जाने, आशिक मिजाजी या शारीरिक शोषण जैसी खबरें उन लोगों को तकलीफ में डाल देती हैं जो भोजपुरी फिल्मों से मोहब्बत रखते हैं या इसके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं.

भोजपुरी की सर्वाधिक हिट और उसके मौजूदा दौर की नींव मानी जाती ससुरा बड़ा पइसा वाला के निर्देशक अजय सिन्हा कहते हैं, ''यह तकलीफदेह है क्योंकि पहली बार भोजपुरी सिनेमा अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा दिखने लगा था. ऐसी घटनाएं उसके लिए अच्छी नहीं हैं.''

पर ऐसा हो रहा ही है और इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के मुताबिक, उन लोगों के चलते हो रहा है, जो भोजपुरी सिनेमा की हालिया कामयाबी से प्रभावित होकर यहां आ धमके हैं. इनमें दबंग नेता-ठेकेदार, नवधनाढ्य लोग और ह्नुद्र स्वार्थों वाले शामिल हैं. अधिकांश की नीयत सिनेमाई ग्लैमर का 'सुख' लूटना या कमाई करना है. दरअसल पिछले एक दशक में भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में खासी बढ़ोतरी होने से कई वर्ग इसकी ओर आकर्षित हुए हैं.

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परिवेश और कथानक के चलते ग्रामीण अंचल में शूटिंग के चलते कम खर्च में ग्लैमर हासिल करने का आकर्षण ऐसे नए निर्माताओं की भीड़ बढ़ा रहा है जो थोड़े पैसों, मित्रों के बंगलों या फार्म हाउसों और फिल्मों में अवसर के लिए बिना पैसे काम करने को तत्पर कलाकारों की उमड़ती फौज के सहारे वैतरणी पार करने का ख्वाब देखते हैं.

मुसीबत तब आती है जब पैसों का गणित गड़बड़ाता है. मऊ की घटना इसका उदाहरण है. सिन्हा कहते हैं, ''कई बार अच्छे लोगों को भी फाइनेंसरों के हाथ खड़े कर देने से ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है. इसलिए जरूरी है, प्रोजेक्ट शुरू होते ही सारे कोने दुरुस्त कर लिए जाएं.''

यह बात पैसों के लिए तो सही हो सकती है मगर तब क्या किया जाए जब लोगों की नीयत में ही खोट हो. चार साल पहले गायिका-अभिनेत्री रूपम वर्मा को गोरखपुर में ऐसी ही अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ा जब भोजपुरी फिल्मों के विकास से जुड़े होने का दावा करने वाले एक शख्स ने रात में होटल के कमरे में उनके साथ बदसलूकी की कोशिश की. पुलिस बुलानी पड़ी और सबेरे रूपम ने मीडिया के सामने सारा वाकया पेश किया तो लोग स्तब्ध रह गए.

भोजपुरी फिल्मों की बड़ी स्टार रानी चटर्जी खुद ऐसे बुरे अनुभव झेल चुकी हैं. उन्होंने 4 साल पहले की घटना सुनाई जब वे फिल्म की शूटिंग करने गोरखपुर के आसपास थीं. बकौल रानी, 31 दिसंबर को काम पूरा हो गया मगर प्रोडक्शन से जुड़े लोगों ने उस दिन जाने से रोकने की कोशिशें शुरू कर दीं. कहा गया कि 31 दिसंबर की रात मैं एक स्पेशल शो कर दूं.

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मैंने मना किया तो होटल में मेरा सामान लेने नहीं दिया गया. 4-5 गुंडे भेज दिए गए. किसी तरह स्थानीय संपर्कों की मदद से मैंने एक जगह रात गुजारी और सुबह मां और मेकअप आर्टिस्ट के साथ ट्रेन पकड़कर लौट पाई. अपनी स्पष्टवादिता के लिए मशर और टेली-सीरियल राखी का इंसाफ में कास्टिंग काउच पर एक हंगामी एपिसोड कर चुकीं अभिनेत्री रितु पांडेय के साथ भी कुछ साल पहले ऐसा हुआ जब वे महाराजगंज के फरेंदा में शूटिंग कर रही थीं.

रितु कहती हैं, ''हमें एक होटल से दूसरे होटल तक घुमाया गया और  एक समय पर सामान रोक लिया गया.'' भोजपुरी फिल्म में हीरो बनने की कोशिश कर चुके एक प्रभावशाली राजनेता के दखल के बाद वे लोग लौट पाए. वे साफ कहती हैं, ''भोजपुरी में कई ऐसे तत्व घुस आए हैं जो लड़कियों के शारीरिक और कलाकारों के आर्थिक शोषण की बुनियाद पर ही प्रोजेक्ट गढ़ते हैं.'' पर उन्हें इस बात की तकलीफ भी है कि इन सबके खिलाफ आवाज उठाने पर कई बार मीडिया उन्हें प्रचार का हथकंडा करार देने लगता है.

यह मुसीबत सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं है. कई फिल्मों में काम कर चुके नवोदित अभिनेता विशाल त्रिपाठी की मानें तो यह खतरा पुरुष कलाकारों के सामने भी है.

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मुंबई में एक ऑडिशन के दौरान महिला निर्माता ने उनके सामने ऐसा प्रस्ताव रखा कि वे हतप्रभ रह गए. ''मैं पूरी रात सो नहीं पाया.'' कुछ समय बाद वे फिर  ऐसे ही एक अनुभव से गुजरे जब स्थानीय नेता से निर्माता बने मुंबई के एक शख्स ने भी उन्हें काम देने के बदले यही कीमत चुकाने की अपेक्षा की.

तीन भोजपुरी फिल्मों का निर्देशन कर चुके शैलेष श्रीवास्तव इन परिस्थितियों को बहुत अचरज भरा नहीं मानते. बकौल शैलेष, ''अच्छे और बुले लोग हर जगह हैं सो यहां भी हैं.''

आखिर यह कैसे रुकेगा? बकौल रानी चटर्जी, ''कम काम करें, पर अच्छे लोगों के साथ करें.'' रितु भी कहती हैं, ''यह सच है कि मैं कुछ और पाना चाहती थी पर समझैते की कीमत पर कतई नहीं.'' पर अजय सिन्हा धैर्य रखने की सलाह देते हैं, ''जिम्मेदारी अच्छे लोगों की है कि वे जेनुइन बने रहें अपने स्तर को न गिरने दें वरना इंडस्ट्री के पैर उखड़ जाएंगे. वे ठीक बने रहे तो गलत लोगों के पांव उखड़ जाएंगे.'' यह सच है, मगर तब तक अनहोनियां न हों तो और अच्छा है.

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