क्या ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ सरीखे सुपरहिट आइटम गीत ‘मसाला’ खेमे के समकालीन हिन्दी फिल्मकारों के हाथ लगे किसी धांसू फॉर्मूले की उपज हैं, जिसमें विवाद उत्प्रेरक की भूमिका निभाते हैं या ये नगमे अपनी-अपनी फिल्म की पटकथा की स्वाभाविक लय से वाकई मेल खाते हैं.
अलग-अलग विवादों की पृष्ठभूमि में गुजरे साल मीडिया और दर्शकों के मानस में खासी जगह जुगाड़ने वाले इन गीतों पर बहस अभी खत्म नहीं हुई है. हिन्दी फिल्मों के फ्लैशबैक में जाएं, तो पता चलता है कि गीतकार अपनी रचनाओं में जूली, मारिया, मोनिका, प्रिया और किरण समेत अलग-अलग स्त्री नामों का गाहे-बगाहे इस्तेमाल करते रहे हैं. मगर जानकारों के मुताबिक तब ऐसे गीतों पर उतना हल्ला नहीं मचा, जितना बवाल पिछले दिनों ‘शीला’ और ‘मुन्नी’ के शीषर्क बोलों वाले फिल्मी आइटम गीतों पर काटा गया.
उत्तर प्रदेश की एक महिला ने तो बाकायदा इन दोनों गीतों के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का दरवाजा खटखटाया और गुहार लगायी कि इन पर फौरन रोक लगा दी जाये, क्योंकि ये कथित तौर पर शिष्टता और नैतिकता के खिलाफ हैं.{mospagebreak}
बहरहाल, ‘शीला की जवानी’ शीषर्क वाले गीत को अपनी अल्हड़ आवाज देने वाली सुनिधि चौहान का कहना है, ‘‘इस गीत के बोल फिल्म की पटकथा के हिसाब से लिखे गये हैं, न कि किसी महिला की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिये. लिहाजा इस सिलसिले में किसी विवाद को तूल देना उचित नहीं है.’’
युवा पार्श्व गायिका ने हाल ही में मीडिया को बताया कि फिल्म ‘तीस मार खां’ के गीत ‘शीला की जवानी’ की सफलता के बाद अब वह किसी प्रस्तुति के लिये स्टेज पर जाती हैं, तो प्रशंसक उन्हें ‘शीला’ बुलाते हैं और इस बात का उन्हें बुरा नहीं लगता.
इस बीच, मशहूर शायर और गीतकार राहत इंदौरी ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ जैसे गीतों के मौजूदा चलन को बाजार से जोड़ते हैं. उन्होंने अपने बेलाग अंदाज में कहा, ‘‘देखिये, आज बाजार हर क्षेत्र में हावी हो गया है. जहां बाजार आ जाता है, वहां स्तरीयता को तलाश नहीं किया जाता. फिल्मी गीतों को लेकर जितना विवाद खड़ा किया जायेगा, फिल्म से जुड़े लोगों को उतना फायदा होगा.’’{mospagebreak}
चुनौतीपूर्ण किरदारों की अदायगी के लिये प्रसिद्ध शबाना आजमी का इस मामले में अंदाज-ए-बयां कुछ और है. ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ जैसे गीतों की सफलता के बारे में पूछे जाने पर इस फिल्म अभिनेत्री ने इंदौर प्रेस क्लब में कहा था, ‘‘एक लोकतांत्रिक पद्धति में हमें यह तय करने का कोई अधिकार नहीं है कि लोग क्या देखना-सुनना चाहते हैं या वे किस तरह की किताबें पढ़ना चाहते हैं.’’ बकौल शबाना फिल्म ‘दबंग’ की कामयाबी ने फिल्मकारों को यह बात फिर समझा दी कि देश में दर्शकों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसकी कतई अनदेखी नहीं की जा सकती.
फिल्म समीक्षक श्रीराम ताम्रकर ने कहा कि ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘शीला की जवानी’ जैसे गीत फिल्म निर्माण की फॉर्मूला सोच की उपज हैं और फिल्मकारों ने इन्हें मार्केटिंग के औजार की तरह इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा, ‘‘मीडिया में भी दोनों गानों को जरूरत से ज्यादा प्रचार मिला. फिल्मी गीतों के बोलों में महिलाओं के नामों का इस्तेमाल पहले भी होता रहा है, लेकिन तब इन पर इतना बवाल नहीं मचा.’’ ताम्रकर ने कहा कि इन दिनों एक अदद आइटम गीत के बूते पूरी फिल्म का बेड़ा पार करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन जैसे ही कोई नया शिगूफा सामने आयेगा, इस फॉर्मूले का दम निकल जायेगा.