करीब चार दशक से फिल्म उद्योग को अपना योगदान दे रहे गीतकार एवं पटकथा लेखक जावेद अख्तर का कहना है कि आजकल के निर्देशक परंपरागत फिल्म निर्माण से दूर जा रहे हैं और इस तरह अपनी खासियत खो रहे हैं.
अख्तर (67) ने कहा, ‘भारतीय सिनेमा में कोई दिक्कत नहीं है, ये फिल्म निर्माता हैं जिन्हें समस्याएं हैं. वे लोग परंपरा से दूर जा रहे हैं क्योंकि उन्हें इससे परेशानी है.’
उन्होंने कहा, ‘फिल्में बनाने वाले लोग अंग्रेजी गाने सुनते हैं, उनकी रूचि खाने पीने की ऐसी चीजों, कपड़ों और फिल्मों में है जो भारतीय नहीं है.’ अख्तर ने कहा, ‘इसतरह, हम उनसे भारतीय फिल्म बनाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?’ उन्होंने ‘सीआईआई मीडिया एवं मनोरंजन सम्मेलन, 2012’ में भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष विषय पर यह बात कही.
अख्तर ने कहा कि आजकल फिल्में अंतरराष्ट्रीय प्रारूप में बन रही है. छोटी और बगैर गीत की, जिससे संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है.
उन्होंने कहा कि आजकल गाने पृष्ठभूमि में बजाये जाते हैं फिल्म में कहीं भी शामिल नहीं किए जाते. फिल्में छोटी बन रही हैं. भारतीय फिल्में अपनी पहचान खो रही हैं. गाने भारतीय फिल्मों का अभिन्न हिस्सा रहा है. अपनी फिल्मों से इन्हें निकाल देना वैसा ही है जैसे गीत नाटिका से गाने को निकाल देना. वे उस चीज को हटा रहे हैं जो भारतीय फिल्मों की खासियत है. हालांकि, प्रख्यात फिल्म निर्देशक और सात बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता श्याम बेनेगल का मानना है कि युवा निर्देशक अपनी फिल्मों के जरिए उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं.
बेनेगल (77) ने कहा कि उन्हें लगता है कि युवा निर्देशक बहुत उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं. हमारे पास दिवाकर बनर्जी, आनंद गांधी जैसे निर्देशक हैं जो कुछ अलग तरह से फिल्में पेश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘नए निर्देशकों का कार्य बहुत रोचक है. उनके पास दर्शकों को बांध कर रखने की क्षमता है और यह बात मायने रखती है.’ शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी का मानना है कि देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है लेकिन उन्हें आगे ले जाने वाला कोई नहीं मिलता.
सिप्पी ने कहा, ‘ऐसे कई प्रतिभावान फिल्म निर्माता हैं जो बड़ा मौका मिलने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य से उनकी परियोजना का वित्तीय रूप से समर्थन करने वाला कोई नहीं है.’