निर्देशकः आनंद राय
कलाकारः आर. माधवन, कंगना रनौत, दीपक डोबरियाल, स्वरा भास्कर
यह एक मनोरंजक फिल्म है. शादी, नाचगाना और इमोशनल ड्रामा जैसे स्थायी मसालों के अलावा इसकी लिखावट में एक ताजगी है.
खासकर जिस तनु (कंगना) पर इस फिल्म की धुरी टिकी है वह किरदार बड़ा गुदगुदाऊ हैः ग्लैमरस, बिंदास, एक मॉडर्न छप्पनछुरी, वह भी कानपुरिया. घूंघट में शर्माना और छाती पर ब्वायफ्रेंड का नाम गुदवाना, सलवार कमीज में कजरा मोहब्बत वाला पर थिरकना और मौके बेमौके चीयर्स करना.
हिंदी क्षेत्र के ऐसे किरदार या इस तरह के रुझन के बारे में पढ़नेसुनने को बहुत मिला है. परदे पर वह कानपुरिया मि.जाज अब उतरा है. किस्सा इतनासा है कि सिगरेट की तरह ब्वॉयफ्रेंड बदलने वाली तनु एनआरआइ मनु (माधवन) के रूप में एक और दूल्हा खारिज करती है.
चाहे अनचाहे वे बारबार टकराते हैं. मनु का दिल आता है और अंत में एक दूजे के. इस बीच वर दिखाई, परिवार मिलन वगैरह चलते रहते हैं. पूरे घटनाक्रम में मनु के दोस्त पप्पी भैया (डोबरियाल) सबसे दिलचस्प किरदार बनकर उभरते हैं. नाम? ''बोलकर बताऊं या करके?''{mospagebreak}
डोबरियाल ने जीवन के बुनियादी अनुभवों के आधार पर अपने यथार्थवादी अभिनय के बूते फिल्म को अपनी मुट्ठी में कर लिया है. माधवन अनुशासित रहे हैं. पर सबसे बड़ा सदमा हैं कंगना रनौत. गैंगस्टर, वो लम्हे, फैशन आदि में उनके किरदार ग्लैमरस पर सोचने वाले ज्यादा थे, बोलते बहुत कम. एक अदद वाचाल तनु ने जबान कीउनकी दबी छिपी कमजोरी का खुलासा कर दिया.
दिल और दिमाग के बीच का टूटता तार आंखों के खालीपन में साफ नजर आता है. सहेली पायल के रोल में स्वरा भास्कर ने हर साझ दृश्य में उनसे बेहतर करके दिखाया है. समझ में आता है कि अभी तक निर्देशकों ने कंगना को ज्यादा संवादों वाले रोल क्यों नहीं दिए? उनके लिए मौका था विद्या बालन (इश्किया) और प्रियंका चोपड़ा (7 खून माफ, कमीने) के बराबर खड़े होने का. तनु को कंगना से कहीं बेहतर अदाकारा की दरकार थी.