निर्देशकः संजय लीला भंसाली
कलाकारः रितिक रोशन, ऐश्वर्य रॉय बच्चन, आदित्य राय कपूर
सार्थक और भव्य सिनेमा बनाने में संजय लीला भंसाली की काबिलियत पर कभी किसी को शक नहीं रहा. तभी तो हिंदी फिल्मों की पहली पंगत के कलाकारों के बायोडाटा में उनका नाम प्रमुखता से जुड़ता आया है. पिछली फिल्म सांवरिया में दोस्तोएवस्की की रचना ह्वाइट नाइट्स को एक पॉपुलर फ्रेम में न बांध पाने का मलाल उन्हें होगा ही. पर अपनी ताजा फिल्म गुजारिश में वे इच्छामृत्यु जैसे बहुचर्चित और संवेदनशील विषय को रोचक अंदाज में पेश करने में कमोबेश कामयाब रहे हैं.
14 साल से पूरी तरह लकवाग्रस्त, एक पुराना, संपन्न जादूगर ईथन (रोशन) अदालत में अपनी इच्छा से मौत की अर्जी लगाता है, जिस पर बीच-बीच में बहस होती है. अंत में तर्क और हालात उसके हक में जाते दिखते हैं. कहानी में दो और अहम किरदार हैं: 12 साल से अपना लाखों का सावन दांव पर लगाकर सेवा करती नर्स सोफिया (ऐश्वर्य) और ईथन से जादू सीखने आया उसके दुश्मन जादूगर यासिर का बेटा उमर (आदित्य). नीले-काले कलर टोन वाली गुजारिश अपने पूरे विजुअल स्ट्रक्चर में खासी नर्म और ड्रामेटिक है.
ईथन की नाक खुजाती, पीठ के फफोलों पर मरहम लगाती सोफिया दर्शकों और फिल्म के एहसास को एक सतह पर ले आती है.{mospagebreak}
घाघरा पहनकर डोलती सोफिया को 'नजदीक' से देखने की ईथन की बड़ी इच्छा है. बिस्तर से लुढ़क पड़ने पर वह कोफ्त में सोफिया से कहता भी हैः ''मैं गिरा भी और कुछ देख भी न सका.'' एक कल्पनाशील दृश्य में ईथन की मादक सिसकियों का सोफिया तुरंत उसी अंदाज में जवाब देती है. ऐश्वर्य का अभिनय इसमें शबाब पर हैः मीठे गुलगुले गुलकंद की बजाए सरसों के पत्तों-सी ताजगी का एहसास कराता-सा.
एक दिन की सुहागन बनने पर वह अंदर से उसे आसमान की परी जैसा नाचते हुए देखा जा सकता है. लेकिन इस सबके बावजूद फिल्म के ताने-बाने में एक लय का अभाव है. दृश्यों का अटपटा तारतम्य पकड़ ढीली कर देता है. गोवा में फिल्मांकन की भव्यता तो है पर उस भव्यता के जरूरी टेक्सचुअल जमीन कई बार नहीं बनती.
जादुई तरकीबों के बावजूद पूरी रचना में वह जादू प्रवेश नहीं करता. दर्द का अर्थ खोलने के लिए गुरुदत्त को भी एक अदद एस.डी. बर्मन, साहिर और मु. रफी की जरूरत पड़ती ही थी. ईथन का दर्द परदे पर पिघलाने में भंसाली भी यहां अकेले पड़ गए दिखते हैं.
-शिवकेश