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अब गाने में मजा नहीं आताः आशा भोंसले

भारत-पाक कलाकारों के साथ बने एक संगीतमय रियलिटी शो में शिरकत कर रहीं मशहूर पार्श्व गायिका आशा भोंसले का मानना है कि संगीत में सरहद या मज़हब का भेद नहीं होता और अच्छे कलाकार दाद के हकदार होते हैं.

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आशा भोंसले
आशा भोंसले

भारत-पाक कलाकारों के साथ बने एक संगीतमय रियलिटी शो में शिरकत कर रहीं मशहूर पार्श्व गायिका आशा भोंसले का मानना है कि संगीत में सरहद या मज़हब का भेद नहीं होता और अच्छे कलाकार दाद के हकदार होते हैं.

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पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में मौके देने पर मचे विवाद पर टिप्पणी से इनकार करते हुये आशा ने कहा, ‘मैं इस कार्यक्रम में एक अंपायर की तरह हूं जिसका काम मैदान पर फैसला लेना होता है इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना.’ अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर आशा ने बताया, ‘मैं इतना जरूर कहूंगी कि संगीत कभी अमीर, गरीब, मज़हब और सरहद नहीं देखता. सुर अच्छा लगता है तो हम ताली बजाते हैं.’ अपने सात दशक से अधिक के करियर में 12 हजार से ज्यादा गीत गा चुकीं आशा को अब पार्श्व गायन में मजा नहीं आता. मौजूदा दौर के गीतों के बोल और संगीत पर हावी होती तकनीक से उन्हें गुरेज़ है.

उन्होंने कहा, ‘मैंने गाना बहुत कम कर दिया है. मुझे अब इसमें मजा नहीं आता. सब कुछ कंप्यूटराइज्ड हो गया है. गाने में मधुरता कम होती जा रही है.

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उन्होंने बताया, ‘मुझे किसी ने ‘दिल की झोपड़ी में मशाल जला दे’ जैसा एक गाना ऑफर किया था जो मैंने गाने से इनकार कर दिया. ‘हलकट जवानी’ जैसे गाने में कभी नहीं गा सकती. अब मुझे खुद को साबित नहीं करना है.’

अपने दौर में पॉप, कैबरे, गज़ल, भजन और सभी तरह के गीत गा चुकीं आशा ने कहा कि उस दौर में कैबरे भी अश्लील नहीं होते थे और गाने के बोल को लेकर खास ऐहतियात बरती जाती थी. उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि ‘पिया तू अब तो आजा’ में एक पंक्ति थी ‘जिसके लिये छू लिये हैं मेरे कदम’ और मजरूह सुल्तानपुरी गाना रिकार्ड होने से पहले ही जाने लगे कि बच्चे गाना सुनेंगे तो मै क्या मुंह दिखाऊंगा.’ दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म विभूषण पुरस्कार से नवाजी जा चुकीं आशा ने कहा, ‘मैं भी इस तरह के गाने नहीं गाना चाहती कि अपने पोते पोतियों के सामने मुझे शर्मिंदा होना पड़े. मुझे अब लाइव शो के जरिये श्रोताओं से सीधे जुड़ने में अधिक मजा आता है.

हालांकि उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में भी कई गायक ऐसे हैं जिन्हें सुनकर लगता है कि संगीत जिंदा है. उन्होंने कहा, ‘सुखविंदर, राहत फतेह अली खान, सोनू निगम, शान जैसे गायक इतने मधुर और सुरीले हैं कि उनसे आस बंधती है. उन्हें सुनकर लगता है कि संगीत जिंदा है.’

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मशहूर अंतरराष्ट्रीय फनकारों के अलावा क्रिकेटर बेट्र ली के साथ एलबम कर चुकीं आशा इन दिनों सूफी गज़ल पर काम कर रही हैं और एक साल के भीतर उनका नया एलबम आ जायेगा. मराठी फिल्म ‘माई’ के जरिये अभिनय में पदार्पण कर रही आशा ने यह भी कहा कि उनकी यह पहली और आखिरी फिल्म है. उन्होंने कहा, ‘यह फिल्म करने में मुझे बहुत मजा आया लेकिन यह मेरी पहली और आखिरी फिल्म है.’ उम्र के इस मुकाम पर भी बेहद ऊर्जावान आशा अपने रेस्तरां के व्यवसाय में भी साक्रिय हैं और नवंबर में काहिरा में आशाज की नया आउटलेट खोलने जा रही हैं.

अपनी असीम ऊर्जा के राज के बारे मे पूछने पर आशा ने बताया, ‘इसमें कोई राज नहीं है. मैं बिना काम के रह नहीं सकती. संगीत से जुदा नहीं हो सकती और हर समय गाती रहती हूं. यही मेरी ऊर्जा है.’

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