आमिर के भानजे का लेबल ही उनके लिए सबसे ज्यादा खुशी का सबब है. और इस हकीकत को उनके कोफ्त की वजह बनते देर नहीं लगती.
अपनी पहली फिल्म के बाद वे फिर से मामू की कंपनी में लौटे तो इस इमेज के साथ कि उनका कॅरिअर बहुत स्लो है और उनकी ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क गईं, जिनसे उनके कॅरिअर को लेकर सवालिया निशान खड़े हो गए.
भानजे की नैया पार लगाने का जिम्मा एक बार फिर मामू के सिर आ गया. अब खुद इमरान को समझ नहीं आ रहा कि वे इस बात पर खुश हों या नहीं. पहले तो वे खुश होकर कहते हैं, ''यह मेरी खुशकिस्मती है कि वे मेरे मामू हैं और मुझे उनका साथ मिला है.''
पर फिर बातों ही बातों में झुंझ्ला भी जाते हैं, ''मैं नहीं जानता कि आमिर खान के साथ मेरी तुलना करने वाले मुझ्से चाहते क्या हैं? कि मैं एक-दो फिल्मों में ही आमिर खान बन जाऊं? यह मेरे लिए या किसी के लिए भी मुमकिन है?''
पर्याप्त भड़क लेने के बाद वे फिर कहने लगते हैं, ''आपके साथ आमिर जैसा शख्स हो तो फिक्र की जरूरत नहीं.'' अमां यार, राजनीति में सीधे-सीधे कब आ रहे हो?