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कंगना अब आई अपने असली रंग में

मात्र पंद्रह साल की कच्ची उम्र में एक हिमाचली लड़की ने चंडीगढ़ में अपनी कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी. अपनी उम्मीदों, अरमानों की झेली समेटे बहती हवा की मानिंद वह दिल्ली आ गई. यहां उसका कोई गॉडफादर नहीं था. लेकिन इरादे मजबूत थे और वह कड़ी मेहनत के लिए तैयार थी.

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कंगना रनौत
कंगना रनौत

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मात्र पंद्रह साल की कच्ची उम्र में एक हिमाचली लड़की ने चंडीगढ़ में अपनी कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी. अपनी उम्मीदों, अरमानों की झेली समेटे बहती हवा की मानिंद वह दिल्ली आ गई. यहां उसका कोई गॉडफादर नहीं था. लेकिन इरादे मजबूत थे और वह कड़ी मेहनत के लिए तैयार थी.

थिएटर ग्रुप अस्मिता उसके लिए पहला पड़ाव था. उसने मॉडलिंग में भी हाथ आजमाने शुरू किए और सफलता ने उसका सफर आगे बढ़ाया. फिर 2004 में ऐसा दिन भी आया जब उसे मॉडलिंग और एक्टिंग में से एक को चुनना था. उसने बॉलीवुड को अपनी मंजिल के रूप में चुना और अब फिल्म जगत में वह खास मुकाम पा चुकी है.

यह लड़की और कोई नहीं तनु वेड्‌स मनु की चुलबुली और बेबाक कंगना रनौत है. कंगना के गुरु वरिष्ठ रंगकर्मी अरविंद गौड़ उसकी कड़ी मेहनत के कायल हैं, ''उसकी लगन और  मेहनत देखकर मैं दंग था. मुझे यकीन हो गया था कि यह वाकई अच्छा काम करेगी.''

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मुंबई रवाना होने से पहले कंगना ने गौड़ को सात दिन की वर्कशॉप के लिए कहा था. यह वर्कशाप सिर्फ कंगना के लिए ही थी, जिसमें वह सुबह नौ से शाम छह बजे तक जी जान लगाकर एक्टिंग के गुर सीखती.

मुंबई में स्ट्रगल के दिन चल रहे थे. 2005 में एक दिन वह अपने एक दोस्त के साथ एक कॉफी हाउस में थीं. जहां निर्देशक अनुराग बसु की नजर उन पर पड़ी. बसु ने उन्हें देखा और अपनी अगली फिल्म गैंगस्टर में बतौर नायिका लेने का मन बना लिया. {mospagebreak}

कंगना की उम्मीदों,अरमानों को पंख लग गए. कंगना कहती है, ''गैंगस्टर नहीं चलती तो मुझे पता नहीं था आगे क्या करना है. फिल्म हिट रही और मेरा कॅरियर आगे बढ़ा.'' बड़े बैनर, बड़ी फिल्में कंगना के साथ जुड़े. अभिनय प्रतिभा को पहचान मिलते ही कंगना के किरदार भी बदलने लगे. महेश भट्ट की फिल्म वो लम्हे में शिज़ोफ्रेनिक अदाकारा के तौर पर उनके रोल को काफी सराहा गया, फिर लाइफ इन ए मेट्रो में प्रेम की तलाश में भटकने वाली एक लड़की ने भी उन्हें इंडस्ट्री में खास पहचान दिलाई.

कभी खुद मॉडल रही कंगना को एक सुपरमॉडल का बेहद दिलचस्प किरदार निभाने का मौका 2008 में मधुर भंडारकर की फैशन फिल्म में मिला. हालांकि शुरू में प्रियंका चोपड़ा और मुग्धा गोडसे का नाम सुनकर वे थोड़ी संशय में आ गईं भंडारकर बताते हैं, ''मैंने उनसे यही कहा कि वह रोल की लंबाई नहीं किरदार की ताकत पर गौर करें. उन्होंने मुझ्में यकीन दिखाया और 10 मिनटों में ही भूमिका स्वीकार कर ली.''

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फैशन में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया.

इसके बाद निर्माता निर्देशकों के साथ ही दर्शकों की भी कंगना से उम्मीदें बढ़ने लगीं. लेकिन ऐसा लगने लगा कि कंगना कुछ ट्रेजिक और टाइप्ड भूमिकाओं में ही अटक कर रह गई हैं. काइट्‌स में उनकी नाममात्र भूमिका थी. वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई फिल्म तो चली लेकिन उनकी भूमिका कुछ खास नहीं थी. लेकिन कंगना में कुछ अलग करने की छटपटाहट साफ नजर आ रही थी. {mospagebreak}

इस बीच उनकी दो फिल्में नॉक आउट और नो प्रॉब्लम आईं जिनमें वे एकदम अलग किरदार में दिखीं, लेकिन फिल्में कमजोर कहानी के चलते बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं. उन्होंने इन झ्टकों को प्रोफव्शनली लिया. वे कहती हैं, ''किसी भी कलाकार के जीवन में सभी फिल्में हिट नहीं रहती हैं. मैंने सबक सीख लिया है.''

अब उन्होंने अपनी गलती को बखूबी सुधार लिया है. कंगना ने समय की मांग को समझ और तनु बन कर खुद से जुड़ी हर बात बदलकर रख दी. अपने इस नए अवतार के बारे में वे कहती हैं, ''मैं हमेशा से चुलबुली लड़की की भूमिका निभाना चाहती थी. शुरुआत ऐसी नहीं रही.''

उन्हें कॅरियर के शुरू में गंभीर किस्म की भूमिकाएं निभाने का कोई पछतावा नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि इन्हीं रोल से वे अपनी एक खास पहचान बना सकीं. तभी वे कहती हैं, ''पहले मैंने कई किरदार अदा किए तो उनके लिए काफी तैयारी करनी पड़ी थी, लेकिन तनु के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ.''

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कंगना के साथ काम करने वाले निर्देशक हमेशा से उनके अभिनय शैली और प्रोफेशनलिज्‍म को पसंद करते हैं. तभी भंडारकर कहते हैं, ''कंगना का अभिनय बहुत ही सहज और नेचुरल रहता है. वे आसानी से अपने किरदार में उतर जाती हैं, जो हर निर्देशक अपने कलाकार से अपेक्षा रखता है.''{mospagebreak}

अपनी इस खासियत का श्रेय कंगना रंगमंच के अनुभव को देती हैं. और गौड़ के इस उदाहरण से यह साफ भी हो जाता है, ''कंगना में चैलेंज लेने की अद्‌भुत क्षमता है. एक बार मंचन से लगभग घंटे भर पहले पता चला कि हमारे नाटक रक्त कल्याण का एक मुख्य कलाकार नहीं आ रहा है. हम मुश्किल में थे, लेकिन कंगना ने पौने घंटे में दूसरी भूमिका के लिए तैयार हो कर हमें मुश्किल से निकाला. नाटक में ललिताम्बा और दामोदर भट्ट दोनों किरदार उन्होंने बखूबी निभाए.''

नई पीढ़ी की अभिनेत्रियों में खास मुकाम हासिल कर चुकीं कंगना से जुड़े विवाद अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में कंगना के अनिल कपूर, अजय देवगन और सलमान खान के नाम का फायदा लेने और डबल धमाल की सह अभिनेत्री मलिका शेरावत से बातचीत बंद होने के चर्चे आम हुए. जिस पर वे कड़ी प्रतिक्रिया जताती हैं, ''सब बकवास है. मैं इन लोगों के साथ काम कर रही हूं और इससे ज्‍यादा कुछ नहीं.''

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इस पर गौड़ कहते हैं, ''कंगना शुरू से अलग दिखती थी. हमेशा कोई किताब उसके हाथ में रहती, अपने काम से मतलब रखती और उसे कभी भी समय गंवाते हुए नहीं देखा. आज भी वह ऐसी ही है.'' इसी प्रोफेशनल एटीट्‌यूड के चलते लोग उन्हें मूडी तक समझ लेते हैं और गलतफहमी पाल लेते हैं. भंडारकर बताते हैं, ''उन्हें लोगों के साथ खुलने में थोड़ा समय लगता है.''

बॉलीवुड में कदम जमा चुकीं कंगना परिवार को ही अपने सबसे करीब मानती हैं. उन्हें खाना बनाना पसंद है तो वे कविताएं भी लिखती हैं. योग उनके रूटीन में है और आध्यात्मिक किताबें पढ़ना उनका शौक. कंगना के पास आने वाले समय में गेम,रास्कल्स और डबल धमाल जैसी बड़ी फिल्में हैं. भविष्य में वे निर्देशन की कमान भी संभालना चाहती हैं लेकिन इस सब के बीच वे जानती हैं कि सफलता को सिर नहीं चढ़ने देना है और सधे हुए कदमों से ही आगे बढ़ना है.

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