फिल्म: रंग रसिया
निर्देशकः केतन मेहता
कलाकारः रणदीप हुडा, नंदना सेन
दो-ढाई साल से अटकी पड़ी यह चर्चित फिल्म पिछले हफ्ते दिल्ली अंतरराष्ट्रीय कला उत्सव में दिखाई गई. यह परदे पर रंगों के उत्सव सरीखी है. यह लाजिमी भी है क्योंकि इसका मजमून राजा रवि वर्मा हैं, जिन्हें आधुनिक हिंदुस्तानी चित्रकला की दुनिया की शीर्ष शख्सियत माना जाता है.
रामायण, महाभारत और दूसरे पौराणिक आख्यानों के स्त्री पात्रों को वे गहरे सौंदर्यबोध के साथ चित्रांकित करते हैं. उन पर देवी-देवताओं की बेदा तस्वीरें बनाने के आरोप में मुकदमा चलता है. अदालती कार्रवाई क्रमशः एक सूत्रधार में विकसित हो जाती है. एक वेश्या की बेटी सुगंधा (सेन) की दैहिक भंगिमाएं रवि वर्मा (हुडा) की प्रेरणा बनती हैं. उससे राग-अनुराग और जीवन के घटनाक्रमों का मेहता ने बेहतरीन मेल कराया है.{mospagebreak}
एक भावपूर्ण दृश्य में सुगंधा को वीणा थमा सरस्वती बनाकर वर्मा पहले उसके पैर पकड़ते हैं, बाद में कूची. नंदना सेन अपने पूरे वजूद, खासकर अनुगूंज भरी आवाज में एक कल्पना-सी लगती हैं. एक भिन्न मिजाज के अभिनेता हुडा रवि वर्मा को काफी करीब ले आए हैं. खासकर क्लाइमैक्स में उन्होंने जान डाली है. लेकिन कुदरती रंगों की शैया पर पिघलते दो वजूदों के विजुअल्स के अनुरूप संगीत नहीं बन सका.
धुनें मेलोडियस हैं पर गीत चालू शब्दावली के, वैसी ही गायिकी. फिल्म खत्म होने के बाद स्मृति में नजर दौड़ाएं तो लगता है कि रवि वर्मा के दर्शन की बजाए जीवन ज्यादा अहम हो गया. इस फिल्म के अगले माह रिलीज होने की संभावना है.