बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिनेमा में किसी भी तरह के बदलाव के धुर विरोधी हैं. अमिताभ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिमी सिनेमा भले ही बॉलीवुड की आलोचना करता रहता हो, पर भारतीय सिनेमा देश को एकसूत्र में पिरोए रखने का एक सशक्त माध्यम है और ऐसे में हमें अपने सिनेमा में बदलाव लाने की कोई जरूरत नहीं है."/> बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिनेमा में किसी भी तरह के बदलाव के धुर विरोधी हैं. अमिताभ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिमी सिनेमा भले ही बॉलीवुड की आलोचना करता रहता हो, पर भारतीय सिनेमा देश को एकसूत्र में पिरोए रखने का एक सशक्त माध्यम है और ऐसे में हमें अपने सिनेमा में बदलाव लाने की कोई जरूरत नहीं है."/> बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिनेमा में किसी भी तरह के बदलाव के धुर विरोधी हैं. अमिताभ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिमी सिनेमा भले ही बॉलीवुड की आलोचना करता रहता हो, पर भारतीय सिनेमा देश को एकसूत्र में पिरोए रखने का एक सशक्त माध्यम है और ऐसे में हमें अपने सिनेमा में बदलाव लाने की कोई जरूरत नहीं है."/>
 

बिग बी नहीं चाहते, बदले भारतीय सिनेमा

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिनेमा में किसी भी तरह के बदलाव के धुर विरोधी हैं. अमिताभ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिमी सिनेमा भले ही बॉलीवुड की आलोचना करता रहता हो, पर भारतीय सिनेमा देश को एकसूत्र में पिरोए रखने का एक सशक्त माध्यम है और ऐसे में हमें अपने सिनेमा में बदलाव लाने की कोई जरूरत नहीं है.

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महानायक अमिताभ बच्चन
महानायक अमिताभ बच्चन

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बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन सिनेमा में किसी भी तरह के बदलाव के धुर विरोधी हैं. अमिताभ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि पश्चिमी सिनेमा भले ही बॉलीवुड की आलोचना करता रहता हो, पर भारतीय सिनेमा देश को एकसूत्र में पिरोए रखने का एक सशक्त माध्यम है और ऐसे में हमें अपने सिनेमा में बदलाव लाने की कोई जरूरत नहीं है.

अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि पश्चिमी सिनेमा और उसके नीति निर्माता अक्सर भारतीय सिनेमा की आलोचना करते हैं, खास तौर पर इसमें शामिल बहुत ज्यादा फंतासियों की. ऐसे में मेरे मन में एक सवाल उठता है कि क्या हमें ‘वैश्विक मानकों’ के पालन के उद्देश्य से अपने सिनेमा को बदलना चाहिए?

अमिताभ ने लिखा है कि मेरा जवाब निश्चित तौर पर ‘ना’ है. अमिताभ ने आगे लिखा है कि नहीं जनाब, भले ही हमारे रास्ते में कितनी भी नकारात्मक चीजें आएं, हम पश्चिम की तुलना में कम संसाधनों से काम चलाएं, पर सिनेमा का हमारा उद्देश्य पश्चिम से बहुत जुदा है.

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उन्होंने लिखा है कि, ऐसे देश में, जहां हर 100 मील की दूरी पर भाषा और संस्कृति बदलती है, यह आश्चर्य की बात है कि केवल सिनेमा ही ऐसा माध्यम है, जो देश के हर नागरिक को एक छत के नीचे ले आता है.

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