ऋचा शर्मा 39 वर्ष
आंतरिक आक्रोश को महसूस कर उसे फिल्म ताल के गीत नी मैं समझ गई और सिंघम के मौला-मौला में जिस तरह ऋचा ने स्वर दिया है, अब तक ऐसा चुनिंदा गायक ही कर पाए हैं. भक्ति गीत गाते हुए बड़ी हुई हरियाणा के फरीदाबाद के एक मंदिर के पुजारी की बेटी ऋचा की आवाज को दिल्ली के गंधर्व महाविद्यालय में और निखरने का मौका मिला.
स्वर के कई रंगः इसे नैसर्गिक प्रतिभा और उनकी आवाज का दम ही कहा जाएगा जिसके बल पर उन्हें फिल्म कांटे का माही वे और साथिया का छलका-छलका जैसे दमदार एकल गीत मिले तो जुबैदा, हेरा-फेरी, कल हो न हो और ओम शांति ओम जैसी अलग तेवर वाली फिल्मों और पटियाला हाउस के अव्वल अल्लाह से लेकर फुल वॉल्यूम के थैंक्यू जैसे गीतों में उनकी आवाज की विविधता देखने को मिली.
''मैं पारंपरिक ब्राह्मण परिवार से हूं जहां हम सुबह पांच बजे से ही उठकर भजन और जाप किया करते थे. इस तरह संगीत के बीज बचपन में ही पड़ चुके थे.''
वे एक ऐसी गायिका हैं जो सिर्फ जनता ही नहीं कलाकारों की भी प्रिय हैं.
हंसराज हंस, पंजाबी गायक