कल्ट फिल्मों की एक निशानी ये भी होती है . उनके डायलॉग, स्टाइल हमारी भाषा और संस्कृति का हिस्सा बन जाते हैं. मसलन, मुगल ए आजम का मुहावरा, प्यार किया तो डरना क्या. या फिर शोले के कई डायलॉग. होली कब है से लेकर कितने आदमी थे तक. और हालिया कल्ट की बात करें तो कुछ बरस पहले आई थ्री ईडियट्स. तोहफा कुबूल करो से लेकर ऑल इज वेल तक. अब हम आपको अगली कल्ट फिल्म 'पीके' से शुरू होने वाले कुछ ट्रेंड्स, शब्दों और तरीकों के बारे में बता रहे हैं.
1. गोलाः हमारी मदर अर्थ का नया नाम. पीके इसे गोला कहता है. धर्मगुरुओँ के आडंबर पर चोट करते हुए वह बोलता है. क्या लगता है आपको. ये एक अंतरक्षि का छोटा सा गोला. उसका एक छोटा सा शहर, उसके छोटे से इंसान आप. आप ईश्वर को बचाएंगे. ईश्वर आपके भरोसे है. सो गाइज एंड गर्ल्स, गोला इज इन. हम उस गोल के वासी हैं, जिसे धरती कहते हैं.
2. ठप्पाः ये मुहर के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है. मगर कुछ ही इलाकों में. अब ये पूरे देश में बोला जाएगा. पीके ये जानना चाहता है कि कोई किस धर्म का है ये कैसे पता चलता है. उसे लगता है कि जरूर भगवान सबके पिछवाड़े पर ठप्पा लगाकर भेजता होगा.
3. फिरकीः कागज का एक खिलौना. जो हम पुस्तक कला की क्लास में बनाना सीखते थे. बांस की डंडी पर लगाया और हवा के सहारे उड़ाया. मगर फिरकी का मतलब मौज लेना भी होता है. खासतौर पर उससे, जिसने आपके दिमाग में चरस बो रखी हो. ये हमें जगदजननी उर्फ जग्गू ने सिखाया.
4. रॉन्ग नंबरः अब तक इसका मतलब अभिधा में होता था. अब धार्मिक बाबाओं के प्रपंचों पर सवाल उठाने में भी होगा. पीके को लगता है कि बाबाजी की नीयत सही है. मगर वह भगवान से बात करने के लिए रॉन्ग नंबर लगा रहे हैं. फिर भक्त भी बाबा से पूछने लगते हैं. कि आप रॉन्ग नंबर क्यों लगा रहे हैं. लोगों को संन्यास की बात कह रहे हैं, खुद महंगी कार, आलीशान आश्रम में रह रहे हैं.
5. पीकेः हम अब तक शराबियों के लिए कई टर्म इस्तेमाल करते रहे हैं. पियक्कड़, दारूबाज, डीडी (डेली ड्रिंकर), शराबी वगैरह वगैरह. शुबहा था कुछ फिल्म से पहले. पीके आया है क्या तो सुना था. पीके है क्या. ये फिल्म में सुना. अखरा नहीं. और अब लगता है कि महफिलबाजों के बीच सोमरस का प्यार पीके है क्या के रूप में सुनाई देगा.
6. गॉड का टैटूः कुछ मतवाले गाल पर भगवान का टैटू लगाए थीम पार्टी में दिख जाएं तो चौंकिएगा मत. उन पर पीके का खुमार है. पीके का फंडा है. भगवान की फोटो इंसान को रोक देती है. पेशाब रुकवानी है, दीवार पर भगवान लगा दो. इसका विस्तार वह गाल पर करता है. गाल पर भगवान का स्टीकर चिपका लो. कोई नहीं मारेगा.
7. ट्रांजिस्टरः लोग इसे नए सिरे से निकाल रहे हैं. बढ़ी दाढ़ी, बेतरतीब बाल, सिगार और गमछे वाले कुछ नशेमन शायर, कवि, कलाकार हो सकता है अब आपको हुमायूं के मकबरे की धूप में रेडियो टांगे भी नजर आ जाएं. ट्रांजिस्टर के सहारे पीके की प्रेम कहानी का एक सिरा पकड़ में आता है. देखें, लोग इस सिरे को कंधे पर कब तक टांगते हैं.
8. गुल्लक खालीः धर्मगुरुओं और मंदिरों के खाते में कुछ वक्त को ही सही डाउनफॉल आ सकता है. पीके बिना आहत किए इन सब पर सवाल उठाता है. जिसने सब को दिया, हम उसे घूस क्यों देते हैं. पीके तो अपनी घूस एक एक कर वापस निकाल लेता है. भगवान को पैसे की क्या जरूरत. जरूरत है जरूरतमंदों को. देना है तो उन्हें दो. तो अब गुल्लक भरेगी. मगर मंदिरों की नहीं. जहां भरनी चाहिए, वहां की.
9. उग्रसेन की बावलीः लोग जाते, लेह लद्दाख. एक सुंदर झील के किनारे तस्वीर खिंचवाते. फिर कहते, ये थ्री ईडियट्स वाली झील है. अब ये चलन दिल्ली शहर में उग्रसेन की बावली के संदर्भ में जी उठेगा. पीके का यहीं बसेरा होता है. मध्यकाल की ये खूबसूरत बावली अब झोला भरभर विजिटर्स पाएगी.
10. भोजपुरीः इस भाषा को अभिजात्य गरीब मजदूरों की भाषा के रूप में देखता आया है. एक ऐसी बोली, जिसे रिक्शेवाले, खैनी खाने वाले बोलते हैं. तो क्या हुआ, जो भोजपुरी बेहद मीठी और समृद्ध भाषा है. जिसमें भिखारी ठाकुर जैसा रंगकर्मी हुआ. जिसे बोलने वाले कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष हैं. उनके लिए भोजपुरी का मतलब गुड्डू रंगीला और पवन सिंह की छिछली गायकी ही है. मगर अब क्या. अब तो उन्हीं के बीच का एक अभिजात्य पीके भोजपुरी भाषा में बात करता है. शायद पहली मर्तबा ऐसा हुआ है, जब शहर की जमीन पर घनी बसी एक फिल्म का मुख्य नायक इस बोली में शुरू से आखिर तक बोले. अब भोजपुरी पब, कैफे या कॉन्वेंट में भी यदा कदा नजर आ सकती है.