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आर्या रिव्यू: सुष्मिता का कमाल-डायरेक्टर का मायाजाल और धर्म संकट!

लॉकडाउन के दिनों में एक और वेब सीरीज़ की एंट्री हुई है. इस बार ये सीरीज़ कुछ खास है क्योंकि सुष्मिता सेन ने करीब दशक के बाद पर्दे पर वापसी की है. सुष्मिता की इस सीरीज़ की चर्चा उनकी वापसी, कहानी और उनके किरदार की वजह से है. क्या ये सीरीज़ शानदार है या फिर सुष्मिता की वापसी दमदार नहीं है, जानते हैं...

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सुष्मिता सेन
सुष्मिता सेन

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‘’...पहले क्यों नहीं संभाला तूने धंधा?’’

‘’...क्योंकि पहले धंधा मर्द संभालते थे, अब बचे नहीं’’.

लॉकडाउन के दिनों में एक और वेब सीरीज़ की एंट्री हुई है. इस बार ये सीरीज़ कुछ खास है क्योंकि सुष्मिता सेन ने करीब दशक के बाद पर्दे पर वापसी की है. डिज्नी-हॉटस्टार की नई वेब सीरीज़ आर्या में सुष्मिता सेन लीड रोल में हैं, जो कि डच सीरीज़ पोनेज़ा का हिन्दी रूपांतरण है. सुष्मिता की इस सीरीज़ की चर्चा उनकी वापसी, कहानी और उनके किरदार की वजह से है. क्या ये सीरीज़ शानदार है या फिर सुष्मिता की वापसी दमदार नहीं है, जानते हैं...

क्या है आर्या?

राजस्थान के एक अमीर परिवार की कहानी दिखाने वाली आर्या में कुल नौ एपिसोड हैं, हर एपिसोड करीब 50 मिनट का है. यानी डायरेक्टर ने वक्त लिया है पूरी कहानी दिखाने के लिए. कहानी कुछ इस तरह है कि राजस्थान में रहने वाली एक फैमिली है, तेज़ (चंद्रचूड़ सिंह), अपने दोस्त-साले के साथ मिलकर अफ़ीम का काम करते हैं साथ में कुछ गैरकानूनी काम भी करते हैं.

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तेज़ की पत्नी आर्या (सुष्मिता) एक डॉन की बेटी हैं, जिन्होंने इस काम की शुरुआत की थी. अब तेज़ घर जमाई हैं और आर्या का भाई इस काम को बढ़ाना चाहता है. कोकेन की एंट्री होती है, इस लड़ाई-झगड़े में तेज़ की मौत हो जाती है.

उसके बाद कर्जदार आर्या को परेशान करते हैं, जिसकी वजह से वो इस काम को संभालती है. उसके सामने कई तरह की परेशानियां हैं, जो काम को संभालना, परिवार को संभालना और लगातार सामने आ रही मुश्किलों से लड़ना है. शायद इतनी ही स्टोरी बताना बेहतर होगा, वरना मज़ा खराब हो जाएगा.

आर्या की खासियत क्या है?

लॉकडाउन के दौरान और उससे पहले OTT प्लेटफॉर्म पर वेब सीरीज़ और फ़िल्मों की भरमार है. हिन्दी यानी बॉलीवुड ने कुछ खुश होकर यहां रिलीज़ की तो कुछ ने मजबूरी में रिलीज़ किया. लेकिन, कुछ ही डायरेक्टर या प्रोडक्शन हाउस वेब सीरीज़ के असली खेल को समझ पाए हैं. जो उसे फिल्मों से अलग बनाता है.

वेब सीरीज़ की खासियत ये है कि वो आपको किरदार और कहानी पकाने का मौका देती है. आर्या में उसका बखूबी इस्तेमाल किया गया है, शायद डायरेक्टर (राम/संदीप/विनोद) इसकी कीमत समझ गए. सीरीज़ में हर किरदार को जगह दी गई है, आर्या यानी सुष्मिता सेन पर पूरा फोकस है क्योंकि वो लीड हैं.

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लेकिन उसके अलावा हर एक किरदार की कहानी को बुना गया है, जो हर किरदार को पढ़ने का मौका देता है. फिर चाहे एसीपी खान की पर्सनल स्टोरी, वीर की गर्लफ्रेंड का किडनैप होने का खतरा, माया की पेंटिंग, ये वो छोटी बातें हैं जो किसी लीड कैरेक्टर से अलग एक साइड कैरेक्टर के डीप में जाने को जगह देती हैं.

शुरुआत के दो एपिसोड आपको स्लो लग सकते हैं, लेकिन तीसरे एपिसोड के बाद कहानी थोड़ी पेस पकड़ती है. कहानी भले ही अमीर परिवार, वेल एडवान्स्ड कल्चर को दर्शाती हो, लेकिन उसमें देसीपना भी है. किस तरह जब कोई महिला बिजनेस संभालती है तो कैसी मुश्किलें आती हैं और उस हर पल को सुष्मिता ने अपने किरदार में जिया है.

किसके काम में कितना दम?

आर्या पूरी तरह से सुष्मिता सेन की सीरीज़ है. वो फिट हैं, सीरीज़ में अच्छी लग रही हैं. लेकिन उन्होंने इस किरदार में पूरी जान फूंक दी है. एक ठहराव के साथ उन्होंने एक्टिंग की है, कई सीन ऐसे भी आते हैं जो वाह बोलने पर मज़बूर कर देते हैं. शायद फिल्में जो सुष्मिता सेन को करने का मौका नहीं दे रही थीं, वो इस सीरीज़ ने दे दिया. यानी टफ किरदार करने का मौका.

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सुष्मिता सेन के अलावा विकास कुमार यानी एसीपी खान का किरदार बेहतरीन है. लगभग हर एपिसोड में वो नज़र आए हैं और एक अच्छे केस की तलाश की कोशिश में स्ट्रगल करता हुआ अफसर उनमें दिखा है. उन्हें पहले आपने CID में देखा होगा (कुछ हदतक वो अभिजीत भी लगते हैं). साथ ही उनकी एक छुपी हुई सच्चाई कि वो गे हैं, उसे भी बताया गया है.

इस सबके बीच सबसे शानदार कैरेक्टर लगता है सिकंदर खेर का, जो पहले एपिसोड से दिखता तो है लेकिन तीसरे या चौथे एपिसोड में बिल्डअप होता है. और आप पहले एपिसोड से इंतजार करते हो कि ये कब पेस पकड़ेगा. डायरेक्टर साहब ने कमी बस इतनी कर दी कि काफी देर में इस कैरेक्टर को पेस दी और जगह भी कम दी.

इसके अलावा सीरीज़ में काफी कैरेक्टर हैं, जिनका रोल है. खासकर तीनों बच्चों के किरदार की काफी अहमियत है और तीनों ने किरदार को सही निभाया भी है. खासकर सबसे छोटे बच्चे यानी प्रत्यक्ष पवार. उनकी किरदार को अच्छा भुनाया गया है, जैसे एक छोटे बच्चे का डर बताया गया है.

कहीं चूक हुई है?

वेब सीरीज़ में अच्छा होने को काफी कुछ है, लेकिन शुरुआत में सीरीज़ पेस पकड़ने में काफी देर कर देती है.अगर कोई ठहराव ना दिखाए तो दो एपिसोड उसके लिए काफी लंबे हो सकते हैं. साथ ही सिकंदर खेर के कैरेक्टर को मजबूत किया जा सकता था. बैकग्राउंड म्यूज़िक कई बार कनेक्ट करने से पीछे छूट जाता है.

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सीरीज़ में भगवत गीता का कनेक्ट लाने की कोशिश की गई, उसे कविता में पिरोया गया. लेकिन वो पूरी तरह से नाकाम रहा, खासकर उसे किसी रैप का लुक देना तो मेरे हिसाब से ब्लंडर ही है.

अंत में बस इतना ही कि चंद्रचूड़ सिंह का किरदार काफी छोटा था. और वो वाकई में शशि थरूर लगते हैं.

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