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अरुणाचलम 'पैडमैन' तो ये हैं पैडगर्ल्स, केले के छिलके से बनाया सैनेटरी पैड

पैडमैन के बाद अब पैडगर्ल्स सामने आई हैं. गुजरात के मेहसाणा की इन स्कूल गोइंग गर्ल्स ने केल के छिलके से किफायती सैनेटरी पैड्स तैयार किए हैं.

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पैडगर्ल्स राजवी और ध्रुवी पटेल
पैडगर्ल्स राजवी और ध्रुवी पटेल

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अक्षय कुमार की पैडमैन इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है. अक्षय इसमें अरुणाचलम मुरुगननाथम की भूमिका निभा रहे हैं, ज‍िन्होंने किफायती सैनेटरी पैड्स बनाकर लाखों महिलाओं की जिंदगी बदल दी. अब उनकी ही तरह गुजरात के महेसाणा की दो युवतियां सामने आई हैं, जिन्होंने इसी तरह ऑर्गेनिक तरीके से सैनेटरी पैड्स का निर्माण किया है. इन्हें पैडगर्ल्स का नाम दिया गया है.

मेहसाणा जिले की रहने वाली राजवी और ध्रुवी पटेल ने जो पैड्स तैयार किए हैं, उसकी खास बात यह है कि इन्हें पूरी तरह से ऑर्गेनिक तरीके से तैयार किया गया है. यानी कि ये स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के काफी अनुकूल हैं. राजवी पटेल का कहना है कि ये पूरा पैड केले के छिलके से बनाया गया है, जो कि पूरी तरह इको फ्रेंडली है. आमतौर पर सैनेटरी नैपकिन प्लास्ट‍िक कवर के होते हैं, जो कि डिकम्पोज नही हो सकते. ये एक साल में पूरी तरह डिकम्पोज हो जाते हैं.

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राजवी और ध्रुवी दोनों आनंद निकेतन स्कूल में क्लास नौवीं की छात्रा हैं. दोनों लड़कियों ने अपनी इस सोच से खूब अंजाम तक पहुंचाया. अपने इस रिसर्च वर्क को अंजाम देने के लिए पहले पूरा रिसर्च किया. फिर वडोदरा कि एक कपंनी से केले के छिलके के धागे मंगवाकर, उसे प्रोसेस कर एक पूरा पेपर बनाया. धागों के इस पेपर को कॉटन में रख उसे सैनेटरी नैपकिन तैयार किया गया. दोनों के जरिए तैयार किए गए इस प्रोजेक्ट को इतना पसंद किया गया कि अब दोनों लड़कियों को पैडगर्ल के तौर पर ही जाना जाता है.

ध्रुवी पटेल का कहना है कि लोगों को ये इतना पसंद आया कि अब सभी लोग हमें पैडगर्ल्स कहने लगे हैं. ध्रुवी और राजवी के इस प्रोजेक्ट में कतनी क्षमता है, उसे भी जांचा गया. इस नैपकिन को महेसाणा की सिविल अस्पताल के गायनेक बोर्ड में दिया गया, जहां उसे काफी अच्छा रिस्पोन्स मिला है. अब स्कूल इस ईको फ्रेंडली पैड को स्कूल में बनाने का प्लान्ट लगाने ने वाली है, ताकि उससे तैयार पैड ग्रामीण महिलाएं और छात्राएं उपयोग कर सकें. 

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इसकी कीमत भी ज्यादा नहीं है. गरीब महिलाएं भी आराम से इसे खरीद सकेंगी. इसकी कीमत 2 से 3 रुपए तक है. जो गांव की गरीब महिलाएं केले के पेड़ से निकले धागों के जरिए खुद भी बना सकती हैं.

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