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'गुडिया' के दर्द में डूबे अमिताभ को याद आई पिता की 'खोई गुजरिया'

अमिताभ ने ट्वीट में लिखा कि मीडिया ने प्रतीक रूप में जिस लड़की का नाम 'गुडि़या' लिखा है उसे देखकर उन्‍हें अपने पिता हरिवंश राय बच्‍चन की लिखी एक कविता खोई गुजरिया याद आ गई.

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सदी के महानायक अमिताभ बच्‍चन को 'दिल्‍ली की गुड़िया' के दर्द ने अपने पिता की लिखी 'खोई गुजरिया' की याद दिला दी. अमिताभ ने ट्वीट में लिखा कि मीडिया ने प्रतीक रूप में जिस लड़की का नाम 'गुडि़या' लिखा है उसे देखकर उन्‍हें अपने पिता हरिवंश राय बच्‍चन की लिखी एक कविता खोई गुजरिया याद आ गई.

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अमिताभ लिखते हैं कि एक छोटी लड़की जो मेले में खो गई है, उसकी मां अपनी बच्‍ची को ढूंढते हुए यह गाना गा रही है. वह अपनी कविता द्वारा दूसरों को आगाह करती है कि कोई भी उसकी गुजरिया को ना तो छेड़ें और ना ही गलत तरीके से पेश आएं.

पढि़ए हरिवंश राय बच्‍चन की यह कविता 'खोई गुजरिया'.

मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये,

उसका मुखड़ा
चाँद का टुकड़ा,
कोई नज़र न लगाये
जिसे मिले मुझसे मिलाये.
मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये.

खोये-से नैना,
तोतरे बैना,
कोई न उसको चिढ़ाए.
जिसे मिले मुझसे मिलाये.
मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये.

मटमैली सारी,
बिना किनारी,
कोई न उसको लजाये.
जिसे मिले मुझसे मिलाये.
मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये.

तन की गोली,
मन की भोली,
कोई न उसे बहकाए.
जिसे मिले मुझसे मिलाये.
मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये.

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दूँगी चवन्नी,
जो मेरी मुन्नी,
को लाये कनिया उठाये.
जिसे मिले मुझसे मिलाये.
मेले में खोयी गुजरिया, जिसे मिले मुझसे मिलाये.

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