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CHOKED REVIEW : पैसों के अभाव में घुटती जिंदगी में दिखा नोटबंदी का तड़का

चोक्ड पैसा बोलता है एक ऐसी ही फिल्म है जिसमें मोदी सरकार के विवादित फैसले नोटबंदी से उपजे हालातों को दिखाया गया है. फिल्म मिर्जिया से अपने करियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस सयामी खेर अपने रोल के साथ न्याय करने में कामयाब रही हैं.

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फिल्म चोक्ड से एक स्टिल
फिल्म चोक्ड से एक स्टिल
फिल्म:चोक्ड: पैसा बोलता है
3/5
  • कलाकार :
  • निर्देशक :अनुराग कश्यप

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अनुराग कश्यप बॉलीवुड के उन गिने-चुने फिल्ममेकर्स में से हैं जो विवादित पॉलिटिकल फिल्मों को बनाने से भी पीछे नहीं हटते. साल 2004 में उन्होंने ब्लैक फ्राइडे का निर्देशन किया था जिसमें बाल ठाकरे से लेकर दाऊद इब्राहिम तक का नाम मेंशन किया गया था और 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट पर बनी इस फिल्म को रिलीज होने में ही तीन साल लग गए थे. हालांकि नेटफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म ने अनुराग जैसे निर्देशकों की राह आसान की है. चोक्ड: पैसा बोलता है एक ऐसी ही फिल्म है जिसमें मोदी सरकार के विवादित फैसले नोटबंदी से उपजे हालातों को दिखाया गया है. हालांकि देव डी, अग्ली, गुलाल, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन करने वाले कश्यप की फिल्मोग्राफी में चोक्ड उतनी प्रभावशाली नहीं दिखाई पड़ती है.

कहानी

एक लोअर मिडिल क्लास महिला सरिता बैंक की बोरिंग नौकरी के सहारे अपना घर चलाती है जिसका एक भूला-बिछड़ा सपना है कि वो सिंगर बनना चाहती है. पति सुशांत म्यूजिशियन बनने के लिए स्ट्रगल कर रहा है, कई जगह काम करने के बाद खाली बैठा है. सुशांत पर एक रेस्टोरेंट के मालिक रेड्डी का कर्ज भी है, जहां सुशांत गिटारिस्ट के तौर पर काम कर चुका था. रेड्डी सरिता पर इस कर्ज को चुकाने का दबाव बनाता है और ज्यादातर निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों की तरह इस फैमिली की सबसे बड़ी चिंता भी पैसा ही है. अचानक एक दिन सरिता के घर में किचन के ड्रेनेज से नोट निकलने लगते हैं. इसके बाद से ही सरिता की जिंदगी बेहतर होने लगती है लेकिन इस बीच पीएम मोदी नोटबंदी का ऐलान कर देते हैं और इसके बाद एक बार फिर सरिता की जिंदगी में यू-टर्न आता है.

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एक्टिंग

फिल्म मिर्जिया से अपने करियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस सयामी खेर अपने रोल के साथ न्याय करने में कामयाब रही हैं. तमाम परेशानियों से जूझती लेकिन बिना किसी शिकवा-शिकायत के अपने काम में तल्लीन रहने वाली खेर के चेहरे की मासूमियत, शांत आचरण और स्क्रीन प्रेजेंस साबित करता है कि वे भविष्य की भरोसेमंद कलाकार हो सकती है. वही फिल्म मुथौन में अपने रोल से प्रभावित करने वाले एक्टर रोशन मैथ्यू की ये पहली हिंदी फिल्म है और वे एक कम-महत्वाकांक्षी और आलसी पति के तौर पर प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं.

हालांकि एक बार फिर अमृता सुभाष अपनी पावरफुल परफॉर्मेंस से सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही हैं. अमृता मराठी सिनेमा की शानदार अभिनेत्रियों में शुमार की जाती हैं. वे कश्यप के साथ रमन राघव 2.0 और सेक्रेड गेम्स में भी काम कर चुकी हैं. रमन राघव 2.0 में उन्होंने साइको रमन की बहन का किरदार निभाया था और उस फिल्म में जो एक सीन दर्शकों के जहन में रह गया था वो था उनका डर और घबराहट के मारे रोना. इस दौरान उनके अद्भुत एक्सप्रेशन्स देखने को मिले थे.

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इस फिल्म में भी जब पीएम मोदी नोटबंदी का ऐलान करते हैं तो उनकी नर्वस कर देने वाली हंसी आपको हैरान कर देगी कि ये हंस रही हैं या रो रही हैं. इसके अलावा सेक्रेड गेम्स में नजर आ चुकीं राजश्री देशपांडे भी अमृता और खेर के साथ अच्छी बॉन्डिंग करती दिखती हैं और गॉसिप और छोटी मोटी पार्टियों के सहारे इस सोसाइटी की प्रासंगिकता को दिखाने की कोशिश की गई है. गैंग्स ऑफ वासेपुर के परपेन्डिक्युलर का भी इस फिल्म में छोटा लेकिन प्रभावशाली रोल है.

डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक

इसे निहित भावे की स्क्रिप्ट की कमी ही कहा जाएगा कि ये फिल्म क्लाइमैक्स में दर्शकों को उस स्तर का क्लोजर देने में नाकाम रहती है जिसकी आप उम्मीद लगाए बैठे रहते है और ना ही मुख्य किरदारों का कैरेक्टर आर्क इतना स्ट्रॉन्ग होता है कि आप इन किरदारों के साथ इमोशनल स्तर पर बहुत जुड़ाव महसूस करते हैं हालांकि अनुराग हमेशा की तरह अपने कलाकारों से अच्छी परफॉर्मेंस निकलवाने में कामयाब रहे हैं और यही वजह है कि इस फिल्म से जुड़ाव बना रहता है.

सिनेमाटोग्राफर राजीव रवि के बाद फ्लोरेंस डिसूजा अनुराग के नए सिनेमाटोग्राफर हैं और मुंबई की मिडिल क्लास कॉलोनी को उन्होंने जिस तरीके से दिखाया है, उससे लगता है कि अनुराग को राजीव रवि की कमी नहीं खल रही होगी. हालांकि इस फिल्म का सबसे खास पहलू इस फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक है. इस फिल्म के लिए अनुराग ने इलेक्ट्रॉनिक और क्लासिक म्यूजिशियन कर्श काले के साथ हाथ मिलाया है और कई मौकों पर उनका म्यूजिक इतना पावरफुल लगता है कि उसके आगे सामने चल रहा सीन फीका लगने लगता है.

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इस फिल्म में भी पीएम मोदी से जुड़े व्हाट्सएप किस्से, मीडिया में होता मोदी का महिमामंडन, वोट को लेकर तंज कसने जैसे तमाम उदाहरण है जो फिल्म में दिखाए गए हैं लेकिन चूंकि फिल्म प्रधानमंत्री के फैसले से जुड़ी है, ऐसे में ये सीन्स जबरदस्ती ठूंसे हुए नहीं लगते.

कश्यप खुद भी कह चुके हैं कि फिल्म के राइटर भावे ने पूरी कोशिश की कि इस फिल्म में मेरी पॉलिटिकल आइडोयोलॉजी कम से कम दिखाई दे और फिल्म के किरदारों को अपनी स्वतंत्र सोच दिखाने का मौका मिले ताकि ये फिल्म भी ट्विटर का महासंग्राम ना बन जाए. हालांकि ऐसा नहीं हुआ लेकिन फिल्म कहीं ना कहीं चूक सी गई इसके बावजूद मनी माइंडेड पूंजीवादी समाज में कैसे पैसा लोगों को चोक्ड यानि दम घोंटता है, इसके लिए फिल्म को एक बार तो देखा जा सकता है.

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