इस साल की ‘माइ नेज इज खान’ और ‘हाउसफुल’ हो या पिछले साल की ‘थ्री इडियट्स’ और ‘वांटेड’, इन सभी फिल्मों में समानता यह है कि इनके टाइटल अंग्रेजी शब्दों पर आधारित हैं.
इस शुक्रवार को रिलीज हुई रितिक रोशन अभिनीत बहुप्रतीक्षित ‘काइट्स’ भी ऐसा ही उदाहरण है जिसका फिल्म समीक्षकों के साथ दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था.
जनवरी 2010 से अब तक बॉलीवुड की 59 हिन्दी फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें 34 फिल्मों के नाम अंग्रेजी टाइटल पर हैं. वैसे वर्ष 2009 में भी 84 फिल्मों में से 50 फिल्मों के नाम अंग्रेजी के थे. पिछले कुछ सालों में भी अंग्रेजी टाइटल के साथ आई हिन्दी फिल्मों की लंबी फेहरिस्त है.
जहां 2008 में ‘सिंह इज किंग’, ‘रेस’ और ‘फैशन’ जैसी फिल्मों ने बाक्स आफिस पर खूब धूम मचाई थी तो उसी तरह 2007 में भी ‘वेलकम’, ‘चक दे इंडिया’ ‘हे बेबी’ और ‘पार्टनर’ ने भी जमकर कमाई की.
फिल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश इस बारे में कहते हैं कि ‘ग्लोबल एप्रोच’ ही बॉलीवुड फिल्मों में बढ़ते अंग्रेजी टाइटलों का कारण है और देश के साथ विदेशों में भी रिलीज होने पर इन फिल्मों को फायदा होता है क्योंकि निर्माता और निर्देशक का ध्यान ‘टारगेल व्यूअर’ पर होता है.
वेंकटेश ने कहा, ‘ये (अंग्रेजी टाइटल) ग्लोबल एप्रोच का एक बढ़िया उदाहरण है. ऐसी फिल्में अगर उड़ीसा या तमिलनाडु में भी रिलीज होती हैं तो लोग समझ जाते हैं. इसके साथ बालीवुड फिल्में अब विदेशों में भी रिलीज होने लगी हैं.’ आने वाले दिनों में ‘काइट्स’ के अलावा ‘वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई’ और ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी अंग्रेजी टाइटल वाली कई फिल्में कतार में हैं जिनसे बॉलीवुड को बहुत उम्मीदें हैं.
{mospagebreak}इस फिल्म समीक्षक ने कहा, ‘निर्माताओं का ‘टारगेट व्यूअर’ पर भी ध्यान होता है क्योंकि एक समय फिल्म पांच हजार में बन जाती थी और अब 50-60 करोड़ में बनती है. इस लिहाज से यह बेहतर है कि कठिन हिन्दी की जगह फिल्म का शीषर्क आम बोलचाल वाला हो, फिर चाहे वह अंग्रेजी पर ही आधारित हो.’ ‘स्ट्राइकर’, ‘राइट या रॉन्ग’ और ‘लव, सेक्स और धोखा’ जैसी कई अन्य फिल्में भी इसी साल आयीं और बुरी तरह फ्लाप रहीं. यानी इससे एक बात स्पष्ट है कि अंग्रेजी टाइटल सफलता की गारंटी नहीं हैं.
वेंकटेश ने कहा, ‘केवल अंग्रेजी टाइटल हिट होने की गारंटी नहीं हैं, फिल्म का कंटेंट (सामग्री) सबसे बड़ी चीज है. हालांकि फिर भी लोग इसे हिट फार्मूला मानकर चलते हैं.’ लेकिन सवाल है कि बॉलीवुड फिल्मों में अंग्रेजी के बढ़ते दबदबे के लिए क्या हिन्दी खुद भी जिम्मेदार है.
नार्दर्न रीजनल लेंग्वेज सेंटर के प्रिंसिपल और भाषा विज्ञानी डाक्टर रूप कृष्ण भट्ट का कहना है कि संचार के माध्यमों में अंग्रेजी के बढते स्तर के लिए हिन्दी भी जिम्मेदार है क्योंकि हिन्दी की शब्दावली कई मामलों में बहुत कठिन है इसलिए लोग प्राय: कठिन हिन्दी शब्दों का प्रयोग करने से बचते हैं और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग शुरू कर देते हैं.
भट्ट ने कहा, ‘हिन्दी की शब्दावली कई विषयों पर अंग्रेजी के मुकाबले कठिन है. इस वजह से लोग आम बोलचाल में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं. साथ ही मीडिया भी इस मामले में अहम भूमिका निभाता है.’ यह भाषा विज्ञानी हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्दों के इस्तेमाल का स्वागत करते हैं लेकिन उनका कहना है कि इसका असर संस्कृति पर नहीं पड़ना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘कोई भाषा बुरी नहीं होती है. इसी तरह अंग्रेजी के कुछ शब्दों का प्रयोग करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन उनकी संस्कृति को नहीं अपनाया जा सकता.’