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Bulbbul Review: दर्द, दहशत, खूनी खेल के बीच महिला सशक्त‍िकरण का संदेश देती है बुलबुल

24 जून को अनुष्का शर्मा प्रोड्क्शन हाउस 'क्लीन स्लेट' के बैनर तले 'बुलबुल' नेटफ्ल‍िक्स फिल्म रिलीज हो गई. अन्व‍िता दत्त निर्देश‍ित इस हॉरर ड्रामा से लोगों ने डर और अच्छे कंटेंट की उम्मीद की. देखा जाए तो यह फिल्म कहानी के मामले में किसी महिला सशक्त परीकथा से कम नहीं है.

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Bulbbul Review
Bulbbul Review
फिल्म:Bulbbul
2.5/5
  • कलाकार :
  • निर्देशक :Anvita Dutt

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जंगल में रहने वाली, पेड़ों से उल्टा लटकने वाली, खून की प्यासी चुड़ैल है बुलबुल. अगर आप ये सोच रहे हैं तो आप गलत हैं. 24 जून को अनुष्का शर्मा प्रोड्क्शन हाउस 'क्लीन स्लेट' के बैनर तले 'बुलबुल' नेटफ्ल‍िक्स फिल्म रिलीज हो गई. अन्व‍िता दत्त निर्देश‍ित इस हॉरर ड्रामा से लोगों ने डर और अच्छे कंटेंट की उम्मीद की. देखा जाए तो यह फिल्म कहानी के मामले में किसी महिला सशक्त परीकथा से कम नहीं है.

कहानी

18वीं शताब्दी के बैकग्राउंड में बनी बुलबुल की कहानी हवेली में रहने वाली 'बुलबुल' (तृप्त‍ि डिमरी) के ही इर्द-गिर्द घूमती है. बुलबुल की शादी बचपन में ही एक राजघराने के बड़े ठाकुर (राहुल बोस) से कर दी जाती है. शादी के वक्त बुलबुल की मुलाकात अपने पति बड़े ठाकुर, उनके जुड़वां भाई महेंद्र जो क‍ि पागल हैं और उनके छोटे भाई सत्या (अव‍िनाश तिवारी) से होती है. चूंकि वह छोटी है तो उसे सात फेरों का मतलब तो नहीं पता पर उसे लगता है कि उसकी शादी बड़े ठाकुर से नहीं सत्या जो क‍ि उसका हम उम्र है, उससे हुई है. शादी के बाद घर लौटते वक्त सत्या अपनी भाभी बुलबुल को एक कहानी सुनाता है. सत्या कहता है 'एक चुड़ैल थी, वह जंगलों में रहती थी, उसके उल्टे पैर थे, वह उड़ती थी'. बुलबुल का लगाव अपने देवर सत्या के प्रति होने लगता है.

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दोनों एक दूसरे से हर बात साझा करते हैं. धीरे-धीरे वक्त गुजरता है और बुलबुल, सत्या अब बड़े हो चुके हैं. लेक‍िन अब भी बुलबुल के मन में बड़े ठाकुर नहीं बल्क‍ि सत्या के लिए ही लगाव है. देवर-भाभी का यह लगाव अब बुलबुल के पति यानी बड़े ठाकुर को रास नहीं आ रहा है. वे सत्या को लंदन वकालत की पढ़ाई के लिए भेज देते हैं. अचानक सत्या के जाने से बुलबुल बेहद दुखी हो जाती है. वह रोती है सत्या के लिए लिखी किताब जला देती है. मगर, बड़े ठाकुर की नजर उन जलते पन्नों पर पड़ जाती है जिन पर बुलबुल ने लिखा था- 'सत्या बुलबुल'. सत्या के प्रति अपनी पत्नी बुलबुल का लगाव देखकर बड़े ठाकुर अपना आपा खो बैठते हैं. वे बुलबुल को खूब मारते हैं और उसके दोनों पैर तोड़ देते हैं. बेहोशी की हालत में पड़ी बुलबुल के पास छोटे ठाकुर पागल महेंद्र आते हैं और वह उसका बलात्कार कर देता है. इसके बाद कुछ ऐसा होता है क‍ि बुलबुल घटना को अपने अंदर समेट लेती है. महेंद्र की पत्नी बिनोदिनी (पाओली दाम) को सब पता है पर वह भी बुलबुल को चुप रहने को कहती है. कहती है- 'बड़ी हवेलियों में बड़े राज रहते हैं, इसल‍िए चुप रहना'. वहीं बड़े ठाकुर घर छोड़कर चले जाते हैं.

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अब पांच साल बाद जब सत्या विदेश से लौटता है, तो उसे मालूम पड़ता है क‍ि उसके गांव में लोगों का खून हो रहा है. लोगों का कहना है कि कोई चुड़ैल उन्हें मार देती है. छोटे ठाकुर महेंद्र का भी चुड़ैल ने ही खून कर दिया था. सत्या अपनी भाभी बुलबुल को देखकर हैरान रह जाता है. बुलबुल अब लोगों से खासकर डॉ. सुदीप (परमब्रत चटोपाध्याय) से काफी घुलने मिलने लगी है. सत्या की नजर अब डॉ सुदीप पर भी है और खूनी का पता लगाने पर भी.

फिर एक दिन जब गांव में खून होता है तो उस खून के शक में सत्या, डॉ. सुदीप को पकड़कर शहर की ओर जाने लगते हैं. जंगल से गुजरने के दौरान जब असली खूनी का राज उसके सामने आता है तो उसके पैरों तले जमीन ख‍िसक जाती है. अब यह खूनी असल में है कौन, चुड़ैल कौन है. यह जानने के लिए तो फिल्म ही देखनी होगी.

डायरेक्शन

अन्व‍िता दत्त द्वारा निर्देश‍ित बुलबुल एक महिला केंद्र‍ित फिल्म है. कहानी का सार ऐसी महिला का है जो प्रताड़‍ित है, वह बिना अपना दर्द बताए चेहरे पर मुस्कान लिए नजर आती है. जो उसका दर्द समझता है वो या तो दूर है (सत्या) या तो उसे दूर भेज दिया जाता है (डॉ. सुदीप). अन्व‍िता दत्त ने महिलाओं के अलावा इस कहानी में जमींदार पर‍िवार का भी अच्छा प्लॉट पेश किया है.

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एक्ट‍िंग

बुलबुल में एक बात जो बहुत अच्छी है वो है एक्टर्स का चुनाव. तृप्त‍ि डिमरी और पाओली दाम ने सच में कमाल का काम किया है. बुलबुल के किरदार में तृप्त‍ि डिमरी सटीक नजर आईं. उनके चेहरे की मासूमियत, प्रेमिका की भांति प्यार भरी नजरें, गुस्सा और दर्द सब कुछ शानदार रहा. बड़े ठाकुर और उनके जुड़वां भाई महेंद्र के रोल में राहुल बोस जम गए. समझदार पति, पागल देवर, बेकाबू आदमी हर किरदार को राहुल ने बखूबी निभाया है. एक प्यारे देवर सत्या के रोल के साथ अव‍िनाश तिवारी ने भी न्याय किया है.

बुलबुल में इन सभी के अलावा एक और एक्टर जिसके बिना फिल्म अधूरी है वो है छोटी बहू बिनोदिनी. बिनोदिनी के किरदार में पाओली दाम देखते ही बन रही हैं. उनका काम काबिले-तारीफ है. छोटी बहू होने के बावजूद अपने से उम्र में छोटी, बड़ी बहू बुलबुल पर रौब दिखाना यह सब पाओली दाम ने क्या खूब निभाया है. परमब्रत चटोपाध्याय की बात करें तो उन्हें स्क्रीन स्पेस कम मिला है पर जहां भी वे नजर आए, उनकी एक्ट‍िंग ने ध्यान खींच लिया.

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फिल्म में क्या कमी रह गई?

बुलबुल में जो सबसे बड़ी चूक नजर आई वह था डर का गायब होना. हॉरर कहानी होने के बाद भी इसमें कहीं भी आपको डर की हवा नहीं लगेगी. थोड़ा सस्पेंस है थोड़ी सी दादी-नानी वाली परीकथा का मिश्रण, पर वो होता है ना क‍ि जब हम दादी-नानी से भी कोई डरावनी कहानी सुनते हैं तो हमारी सांसे अटक जाती है, वो यहां मिसिंग नजर आया. चुड़ैल की कल्पना हम एक डरावनी सूरत से करते हैं, पर बुलबुल में डर कम प्यार ज्यादा नजर आया.

ओवरऑल

कुल मिलाकर कहा जाए तो अन्व‍िता दत्त ने फिल्म में किसी परीकथा को जमीनी रूप दिया है. किरदार अच्छे हैं, हर किरदार एक मैसेज देती है, हरेक घटना एक दूसरे से जुड़ी है, शानदार एक्टर्स हैं. इतना है कि फिल्म आपको बोर नहीं करेगी.

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