राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम (Triveni Kala Sangam) में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिज़ाइन (WUD) के स्कूल ऑफ परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स डिपार्टमेंट के बैनर तले इंटरनेशनल परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. दो दिनों (9 और 10 मई) के इस प्रोग्राम को 'अन्वेषण' नाम दिया गया था. इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य इंडियन नॉलेज सिस्टम के अंदर परंपरा और आधुनिकता के बीच चल रहे संवाद में योगदान देने वाली चर्चाओं, एकेडमिक प्रज़ेंटेशन और आर्टिस्टिक कॉन्ट्रिब्यूशन को बढ़ावा देना है, जिससे परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स के क्षेत्र में शिक्षा से जुड़ी कोशिशों को अहमियत मिल सके.
कॉन्फ्रेंस का फ्रे़मवर्क आर्किटेक्चर, टेक्नोलॉजी, विज़ुअल आर्ट्स और फै़शन के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता, विरासत का संरक्षण और इंटरनेशनल जियोपॉलिटिक्स के पहलुओं सहित डिज़ाइन के तमाम रचनात्मक विषयों के अंदर परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स के एकीकरण पर जोर देता है.
प्रोग्राम के आख़िरी हिस्से में चार तरह के नृत्यों ने दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित किया. इसमें रश्मि खन्ना के नेतृत्व में समयांतरति, पार्थ मंडल के नेतृत्व में रेखांगिका, पुनराकृति ग्रुप के नेतृत्व में दशकृति कृतः और अनुकृति विश्वकर्मा के नेतृत्व में कथक नृत्य प्रस्तुत किया गया.
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'परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स के परंपरागत रूप को मौजूदा दौर से जोड़ने का उद्देश्य'
WUD के स्कूल ऑफ परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स की डीन प्रोफे़सर पारुल पुरोहित वत्स, परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स की अहमियत और प्रोग्राम के उद्देश्य पर बात करते हुए कहती हैं कि नृत्य और संगीत एक बहुत अहम सब्जेक्ट है और सब्जेक्ट बनने के बाद इसके लिए डिग्री की ज़रूरत होती है, क्योंकि अगर डिग्री नहीं है, तो आप यूजीसी के मानदंडो पर खरे नहीं उतरेंगे. हमारे प्रोग्राम 'अन्वेषण' का आइडिया परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स ट्रेडिशनल फ़ॉर्म को लेकर चलते हुए, उसे मौजूदा दौर से जोड़ने का है. इसके पढ़ाई करने और डिग्री प्राप्त करने की जरूरत है, हम इसी को लेकर काम कर रहे हैं. हम लोगों को यह यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ट्रेडिशन और इनोवेशन को कैसे साथ लेकर चल सकते हैं.
'करियर के तौर पर चुन सकते हैं परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स...'
प्रोफे़सर पारुल पुरोहित वत्स कहती हैं कि बीते दशकों में परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स के साथ यह बहुत ही तकलीफ़देह बात रही है कि लोग परंपरागत सांस्कृतिक नृत्य कलाओं को परफ़ॉर्म करके ठीक-ठाक कमाई नहीं कर सकते थे. हमारा बेसिक आइडिया है कि लोगों में यह समझ होना ज़रूरी है कि मौजूदा वक़्त में हम इसको करियर के तौर पर चुन सकते हैं क्योंकि आज हमारे सामने OTT प्लेटफ़ॉर्म जैसे कई साधन हैं. इस सफर में हमारे साथ नई पीढ़ी के लोग भी जुड़ रहे हैं.
उन्होंने आगे बताया कि हमारी नृत्य और संगीत कलाओं में हमेशा से थेरेपी रही है. हम उसको एक्सप्लोर नहीं कर पाए. इस तरह की एक्टिविटीज़ के होने से नृत्य और संगीत के क्षेत्र में करियर की संभावनाएं ज़्यादा बढे़ंगी. जब इससे जुड़ी ट्रेंनिंग होंगी, तो प्रदर्शन कला को व्यावसायिक रूप से चुनने का रास्ता खुल जाता है. हम इस पर आधारित रिसर्च कर रहे हैं, टेक्नोलॉजी और एआई का इस्तेमाल करके उसका डॉक्यूमेंटेशन और प्रोडक्शन भी कर रहे हैं.
'परंपरा के साथ इनोवेशन जरूरी...'
कथक नृत्य की शिक्षिका और 'पुनराकृति परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स' संस्था चलाने वाली अनुकृति विश्वकर्मा कहती हैं कि परंपरा में अगर इनोवेशन नहीं होता है, तो उसमें ज़ंग लगती जाती है. इसीलिए परंपरा के साथ इनोवेशन भी लेकर चलने की ज़रूरत है, जिससे हम ग्लोबलाइजे़शन का हिस्सा बन सकें. वो आगे कहती हैं कि इसके साथ ही हमें इस बात पर ग़ौर करने की ज़रूरत है कि इनोवेशन का सहारा उतना ही होना चाहिए, जिससे हमारी परंपरा को नुक़सान ना हो.