प्रियंका चोपड़ा आज एक इंटरनेशनल स्टार बन चुकी हैं. कई इंटरनेशनल हिट्स देने के बाद प्रियंका ने अब अमेरिकी टीवी पर भी अपनी एक खास पहचान बना ली है. अमेरिका की टॉप 10 हॉट टीवी एक्ट्रेस की लिस्ट में शामिल होने वाली इस अदाकारा के बर्थ डे पर इनकी कामयाबी की कहानी पर डालते हैं एक नजर.
यह मॉन्ट्रियल के भीड़भाड़ भरे व्यस्त इलाके में हाड़ कंपकंपा देने वाली ठंडी सुबह है. पत्थर की विशाल इमारतों के बीच सेंट जाक मार्ग पर भोर से पहले की नीरव खामोशी अचानक सधी हुई हलचलों की गहमागहमी से टूट जाती है. गहरे काले, कनटोपधारी शख्स टोह लेते हुए चारों तरफ घूम रहे हैं, तमाशबीनों पर नजरें गड़ाए और हेडसेट पर हुक्म फटकारते. दक्षिण से चार एनवाइपीडी कारें दाखिल होती हैं. पूरब से सर्र से एक काली वैन आती है जिस पर एफबीआइ का निशान लगा है. कुछ बड़ा घट रहा है. कुछेक मिनटों के भीतर. वह बड़ा घट गया.एक फोर्ड एक्सपीडिशन एसयूवी तूफान की तरह उस सड़क पर दाखिल होती है. हर कोई अवाक् रह जाता है और अपनी नजरें घुमाता है. होठों पर हल्की हंसी. तनी हुई भौंहें. मुस्कान. प्रियंका चोपड़ा क्वांटिको के सेट पर आ गई हैं. बिल्कुल वैसे ही जैसे वे उत्तरी अमेरिका में आई थीं—न रिरियाहट, न फुस्स-फुस्स, बल्कि एक गरजदार धमाके के साथ, जिससे न्यूयॉर्क सिटी का ग्रैंड सेंट्रल स्टेशन हिला उठा और नेटवर्क टेलीविजन के लिए एक नए दौर के आगाज का ऐलान कर गया. विविधताओं का दौर. आरपार का दौर. और कौन जाने, हर साल 900 फिल्में बनाने वाले भारतीय फिल्म उद्योग के पश्चिम के साथ बेधड़क जुडऩे की शुरुआत का दौर.
अमेरिका को अब भी पक्का पता नहीं है कि वह क्या है जो उसे प्रियंका की तरफ खींच रहा है. लेकिन कुछ तो है जो उनके हक में काम कर रहा है. यह एक नई सीरीज है और इसमें किरदार भी गिनती के हैं. मगर क्वांटिको की रेटिंग लंबी छलांगें लगा रही है. इसे एबीसी के सबसे बड़े संडे शो में पहले ही शुमार किया जाने लगा है. रात 10 बजे के मुश्किल स्लॉट में यह देश भर के सबसे लोकप्रिय शो में है. डीवीआर प्लेबैक की बिक्री भी ऊंचे आंकड़े छू रही है. 44 भाषाओं में 196 इलाकों में इसके लाइसेंस दिए गए हैं और डब किए हुए संस्करण महादेश यूरोप में भेजे जा रहे हैं.
ज्यादा अहम बात यह है कि 33 बरस की प्रियंका, जो भारत में 'दिग्गज' और अमेरिका में 'नवोदित' अभिनेत्री हैं, अमेरिका को, और शायद टेलीविजन के इस स्वर्ण युग में दुनियाभर के ज्यादा बड़े दर्शकवर्ग को, पूरी तरह से एक नए भारत को समझने का मौका दे रही हैं. यह नया भारत टैक्सी ड्राइवरों, दुकानदारों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों के घिसे-पिटे भारत से कोसों दूर है. अमेरिकी लंबे समय से हिंदुस्तानियों को काबिल, व्यावहारिक, वफादार, अक्लमंद, काम को अंजाम देने में अच्छा और रोकड़ा कमाने में और भी माहिर मानते आए हैं. लेकिन उन्होंने कभी भी उन्हें मर्दानगी, दिलेरी और गुस्ताखी से जोड़कर नहीं देखा. प्रियंका का किरदार एक भारतीय नागरिक है, जिसकी पहले की एक हिंदुस्तानी कहानी है. वह देसी होते हुए भी एलेक्स पैरिश है, अंजलि पाराशर नहीं. वह एफबीआइ में है, जहां वह फील्ड एजेंट है, एनालिस्ट नहीं. वह मादक, कमनीय, कामुक, स्वच्छंद, स्ट्रीट स्मार्ट है और पिछवाड़े लात भी मार सकती है. अमेरिकी पॉप कल्चर की मुख्यधारा में एक हिंदुस्तानी में ये खूबियां नई हैं. तिस पर वह औरत है. एक भारतीय नारी, जिसकी अच्छी बात यह है कि वह सदाचारी है, सही नहीं.
इस किरदार को हासिल करके, और फिर इसे लोकप्रिय बनाकर, प्रियंका ने जो कमाया है, उसमें पहली बार मिली उपलद्ब्रिधयां इतनी सारी हैं कि उनकी सबसे जाहिर कशिश को नजरअंदाज कर दिया जाता है. अमेरिका को लगता है कि प्रियंका हॉट हैं. वे सांवली, लंबे पैरों वाली, लोचदार हैं. उनकी पतली कमर और घने लहराते बाल हैं. मूढ़ लगने का जोखिम उठाकर भी उनकी इन दैहिक खूबियों के बारे में बताना जरूरी है, क्योंकि यह उनके किरदार की फितरत और उनकी देह ही है, जिसने मिलकर प्रियंका को इतना लुभावना बनाकर पेश किया है. अमेरिका में लुभावना होना शायद कामयाब होने से भी ज्यादा मुश्किल है. और प्रियंका बखूबी जानती हैं कि अमेरिका जो देख रहा है, उसे पसंद कर रहा है. उनसे पूछें कि वे कितनी लंबी हैं, तो वे जवाब देती हैं, ''पांच-छह और तीन चौथाई.'' इसे पांच और साढ़े छह कहें तो कैसा रहेगा. हम पूछते हैं. वे फौरन पलटकर कहती हैं, ''नहीं, मुझे अपना चौथाई चाहिए.'' उन्हें हमेशा चाहिए होता है.
एक चौथाई भी नहीं छोडऩे का यह फलसफा ही है, जो उन्हें समंदर पार कामयाबी के झंडे गाड़ रहे अपने कई दूसरे हिंदुस्तानी हमवतनों से अलहदा करता है. इरफान खान अब अपने दम पर दुनियाभर में जाने जाने वाले अभिनेता हैं. लाइफ ऑफ पाई और होमलैंड से शोहरत हासिल करने के बाद सूरज शर्मा ने भी खासा नाम कमाया है. स्लमडॉग मिलियनेयर से चर्चा में आईं फ्रीडा पिंटो भी तब से बड़े से बड़े डायरेक्टर और अच्छे से अच्छे सह-अभिनेताओं के साथ काम कर चुकी हैं. राहुल खन्ना ने द अमेरिकंस में थोड़े समय काम किया. और स्लमडॉग में निभाई भूमिका ने 24 और चौथी मिशन इंपासिबल के किरदार अनिल कपूर की झोली में डाल दिए. लेकिन प्रियंका ने जो हासिल किया, वह इन सबसे कहीं बड़ा है, क्योंकि वे भारत में 'अव्वल अदाकारा' होने की अपनी हैसियत को सीधे अमेरिकी नेटवर्क शो की मुख्यधारा में स्थापित करने में सफल रही हैं. अगर वे पोस्टर में मुख्य किरदार न होकर क्वांटिको के पांच रंगरूटों में से होतीं, तो भी यह बड़ी बात होती.
मॉन्ट्रियल की एक पुरानी बैंक की इमारत में, जिसे क्वांटिको में एफबीआइ के न्यूयॉर्क अड्डे के तौर पर काम में लिया जा रहा है, उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''अब वक्त आ गया है जब हम अफसोस की मुद्रा से बाहर से आ जाएं.'' वे कहती हैं, ''हमारे देश में, हमारे पास जोश और रोमांच से भरी एक फिल्म इंडस्ट्री है. हम हर साल सैकड़ों फिल्में बनाते हैं. हमारे पास शानदार टेक्नीशियन, अव्वल दर्जे के अदाकार, बड़े बजट और विजनरी डायरेक्टर हैं. बॉलीवुड सारी दुनिया में छाया है. यह अमेरिका की मुख्यधारा में भले न हो, क्योंकि यह अंग्रेजी में नहीं है, लेकिन फिर भी यह ग्लोबल फिल्म इंडस्ट्री है.'' भारत में बनाई जाने वाली फिल्मों, खासकर हमारी कुछ ब्लॉकबस्टर फिल्मों और कुछ खुद उनकी अदाकारी की फिल्मों के स्तर को लेकर प्रियंका साफ तौर पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखा रही हैं, लेकिन उनकी बात में दम है, ''अगर एक इंडस्ट्री में मेरी एक निश्चित हैसियत है, तो दूसरी इंडस्ट्री में मैं ऐसा किरदार क्यों न चाहूं जो मेरे तुजर्बे और मेरी हैसियत के माकूल हो? मुझे जरा भी कम पर समझौता क्यों करना चाहिए?''
उनके समझौता नहीं करने का ही नतीजा है कि अब अमेरिकी प्रियंका के बारे में नई चीजें खोज रहे हैं. वे उनके बारे में गूगल कर रहे हैं और उन्हें पता चल रहा है कि वे आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा की रिश्तेदार नहीं हैं. उन्हें पता चल रहा कि वे आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा की रिश्तेदार नहीं हैं. उन्हें पता चल रहा है कि वे अपने देश में बड़ी स्टार हैं, कि वे एक विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता की पूर्व विजेता हैं, वे कपडों के ग्लोबल ब्रांड गेस के लिए मॉडलिंग कर चुकी हैं. वे संगीतकार हैं, जिसने ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब पिटबुल और विल.आइ.एम. के साथ मिलकर काम किया था.
क्वांटिको के प्रमोशन के लिए उन्होंने जितने भी इंटरव्यू दिए हैं—जिमी किमेल से लेकर केली ऐंड माइकेल और गुड मॉर्निंग अमेरिका तक—सभी में होस्ट ने हैरानी के साथ इसका जिक्र किया कि वे तकरीबन 50 फिल्मों में अदाकारी कर चुकी हैं. इनमें से हरेक किरदार में, उन्हें बखूबी जानने वाले हिंदुस्तानी दर्शकों के लिए वे चंचल, चुलबुली, आत्मविश्वास से लबरेज और कुछ ज्यादा ही नखरीली होने की कोशिश करती दिखाई पड़ती हैं. लेकिन उनकी कशिश के फेर में अभी नए आए अमेरिकियों के लिए अपने हर इंटरव्यू में वे झंडे गाड़ रही हैं. गुड मॉर्निंग अमेरिका में उन्होंने अपने दर्शकों को सिखाया कि बॉलीवुड के डांस कैसे करते हैं —उन्होंने कहा, अपने हाथों को अपने नितंबों के बगल में रखें, ठीक वैसे ही जैसे मानो आपने चमड़े की खोली में बंदूक रखी है, अब अपनी बंदूक निकालें, नितंबों को हिलाएं, और गोली चला दें. उनका संदेश सीधा-सादा है, ''मैं जानती हूं कि मैं कौन हूं. अपनी तस्दीक के लिए मुझे अमेरिका की जरूरत नहीं है.''क्या वे वाकई जानती हैं?
पश्चिमी से किए वादे
प्रियंका जितना स्वीकार करती हैं, या शायद जितना उन्हें एहसास है, अमेरिका में कामयाबी के झंडे गाडऩे की उनकी इच्छा उससे कहीं ज्यादा गहरी हो सकती है. प्रियंका 1982 में एक फौजी परिवार में जमशेदपुर में पैदा हुई थीं. उनके माता-पिता बार-बार शहर दर शहर बदलते रहे. उनके पिता, अशोक, मिलनसार, नेकनीयत और हल्के-से परंपरावादी इंसान थे. उन्हें संगीत से लगाव था और वे मोहम्मद रफी के दीवाने थे, खासकर तब जब उनकी आवाज संगीतकार एस.डी. बर्मन की प्रतिभा के साथ मिलकर जादू जगाती थी. उनकी मां, मधु, ज्यादा 'हिप' थीं, और एल्विस प्रेसली और बीटल्स की दीवानी थीं. चोपड़ा परिवार में हमेशा संगीत बजता रहता और सुबह जागने पर जो भी संगीत उनके कानों में पड़ता, उसे सुनकर प्रियंका जान जाती थीं कि उस दिन कौन 'जीतने वाला' था—मॉम या डैड.
प्रियंका शुरू से ही थोड़ी-सी मनमौजी थीं. वे बताती हैं कि वे जब तीसरी कक्षा में थीं, उन्होंने एक 'बड़ों जैसी' बातचीत में अपने मॉम-डैड को राजी कर लिया कि वे उन्हें बोर्डिंग स्कूल में भेज दें. उनका भाई सिद्धार्थ अभी नन्हा बच्चा ही था, जब वे लखनऊ के लामार्टिनियर गल्र्स कॉलेज में आ गईं. स्कूल के बारे में तो प्रियंका को अब ज्यादा कुछ याद नहीं है, लेकिन '90 के दशक तक स्कूल की प्रिंसपल क्रलोरेंस कीलर का नाम सुनते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है —''हम उन्हें किलर कहते थे!''
अभी वे लामार्टिनियर में ही थीं, और 12 साल की हो चुकी थीं, जब उनकी मॉम के साथ एक और 'बड़ों जैसी' बातचीत में यह तय पाया गया कि प्रियंका उत्तर प्रदेश की राजधानी से निकलकर सबसे बड़े शहर न्यूयॉर्क जाएंगी. उन्होंने पहले अपनी मॉम को भरोसा दिलाया, जिन्होंने फिर उनके डैड को भरोसा दिलाया, कि 'पक्ष में' दलीलें 'विपक्ष में' दलीलों से कहीं ज्यादा वजनदार हैं और इस तरह फैसला हो गया कि वे जाएंगी और अपनी आंटी के साथ रहेंगी.
क्वींस, न्यूयॉर्क अलग ही दुनिया थी और नए रोमांचक अध्याय की शुरुआत भी. वे कजिंस में सबसे बड़ी थीं और उस छोटी-सी मंडली की अगुआई करने लगीं. वे पॉप कल्चर से कुछ निकालकर लातीं और दूसरों की तरफ बढ़ा देतीं. टुपाक शकूर के ईस्ट साइड रैप और आइस-टी और द नोटोरिअस बी.आइ.जी. सरीखी चीजों ने जल्दी ही प्रियंका को मोह लिया. उस वक्त उनकी शुरुआत हुई, 'गैंगस्टार' की तरह-चमक-दमक, तिरछी टोपी, कदकाठी से बड़े कपड़े, हिप-हॉप गुनगुनाते हुए बोलना. वे हंसकर कहती हैं, 'मैंने भी क्या किया! आज तक मुझे शर्म आती है.'
यह जुनून तब भी जारी रहा, जब वे अपनी आंटी के परिवार के साथ हाइस्कूल के लिए न्यूटन, मैसाचुसेट्स आ गईं. यह उस हाइस्कूल का अजीबोगरीब फिल्मी नजारा था, जिसमें क्लास के बंटवारे के हिसाब से खाने के वक्त अलग-अलग खेमे बन जाते थे. उनमें खिलाड़ी, मूर्ख, चीअरलीडर, भली लड़कियां और घटिया लड़कियां थीं. ठीक यहीं एक हिंदुस्तानी लड़की के लिए अभी तक जो सपनों से भरा अमेरिकी बचपन था, उसकी भद्दी बदरंग परतें खुलने लगीं.
स्कूल की एक लड़की ने प्रियंका को निशाना बनाना शुरू कर दिया. प्रियंका कहती हैं कि उसका नाम न दिया जाए, क्योंकि ''अब यह उसके लिए उचित नहीं होगा'', फिर हंसी से दोहरी होकर यह भी कहती हैं, ''इसलिए भी कि हो सकता है, मैं उससे अब भी डरती हूं.'' नस्ली इशारों के साथ वह उन पर लगातार हमले करती. स्कूल जाने में प्रियंका का मजा किरकिरा हो गया. आखिर थक-हारकर अब 16 साल की हो चुकी प्रियंका ने अपनी मां से बात की और कहा कि वे वापस आना चाहती हैं.
बिखरे सिरों को जोडऩा
एक नन्ही बच्ची की शक्ल में अमेरिका गई और फिर एक युवती बनकर भारत लौटी प्रियंका को संभाल पाना न तो चोपड़ा परिवार के लिए आसान था और न बरेली के लिए. अब वे अपने 'अमेरिका रिटर्न' होने और थोड़े-बहुत लहजे के कारण आकर्षण का केंद्र बन गईं. लड़कों से लेकर नौजवान तक इस कदर उनके पीछे पड़े रहते कि अनचाहे कद्रदानों को बाहर रखने के लिए उनके पिता को घर को किले में बदलना पड़ा.
इसके बाद ज्यादा वक्त नहीं लगा जब उनकी मॉम ने मिस इंडिया प्रतियोगिता के लिए उनका नाम भेज दिया. इसके लिए भी उनके भाई ने जिद की, जो तब 10 साल का हो चुका था, कि 'दीदी' सौंदर्य प्रतियोगिता जीत सकती है. प्रियंका जब फस्र्ट रनरअप रहीं और 2000 की मिस वल्र्ड सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका उन्हें मिला, तब वे 17 बरस की थीं. यही वह जगह थी, जहां प्रियंका को मशहूर होने के शुरुआती खतरे समझ में आए. उनसे पूछा गया था कि सबसे ज्यादा प्रेरक जीवित महिला आइकन कौन है. जवाब में प्रियंका ने एक भीषण गलती कर दी और कहा कि 'मदर टेरेसा', जबकि उनकी मृत्यु तीन साल पहले हो चुकी थी. वे कहती हैं कि उस गलती के लिए उनके पास कोई बहाना नहीं है. हालांकि मिस वल्र्ड का ताज उन्हें इसलिए पहनाया गया था क्योंकि उन्होंने अच्छी तरह सवालों के जवाब दिए थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपने देश में तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. एक प्रतिष्ठित स्तंभकार ने तो उन्हें 'मूर्खों में भी मूर्खतम' कह डाला. वे कंधे झटककर कहती हैं, 'मैंने जीत हासिल की थी, लेकिन लोग कितने चहककर मेरी खिंचाई कर रहे थे. अब पीछे मुड़कर देखने पर लगता है कि ये प्रतिक्रियाएं थोड़ी संयमित हो सकती थीं.'
मिस वल्र्ड के खिताब ने उन्हें सीधे बॉलीवुड की दुनिया में पहुंचा दिया, ठीक उसी तरह जैसे उस दौर की कई दूसरी विश्व सौंदर्य खिताब विजेताओं के साथ हुआ था. वे 'इंडस्ट्री में किसी मम्मा या पापा के बगैर' मुंबई आ गईं और खुद अपना रास्ता तलाशने लगीं. उनकी शुरुआती कुछ भूमिकाओं में उनका इस्तेमाल या तो दिखावटी चीज की तरह किया गया या सेक्सी बिल्ली की तरह. एक प्रोड्यूसर ने तो उनसे कह दिया कि वे किसी भी दूसरी लड़की के साथ उनकी 'अदला-बदली' कर सकता था. लेकिन धीरे-धीरे ब्लफमास्टर! (2005) में अभिषेक बच्चन के साथ-साथ एक रैप सांग से प्रियंका ने अपने लिए जगह बनानी शुरू की, जिसने उन्हें 'कूल' के तौर पर स्थापित कर दिया. फिर अगले साल डॉन में उन्होंने ऐक्शन स्टार के तौर पर नई पहचान बनाई. आखिरकार 2008 में उन्हें फैशन के किरदार से कामयाबी मिली. इस फिल्म के लिए उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. इसे मुख्यधारा की एक अदाकारा के लिए भारी जोखिम की तरह देखा गया था, क्योंकि इसमें कोई बड़ा पुरुष किरदार नहीं था और इसलिए भी कि उनके किरदार को एक शोषण करने वाले और औरतों के प्रति तकरीबन नफरत से भरे सफर से गुजरना पड़ता है. दूसरी चीजों के अलावा इसमें उन्हें नशे में धुत होना था और एक सुबह एक अश्वेत आदमी की बगल में जागना था. यह नस्ली कतरब्यौंत से पाक-साफ भारत में बिल्कुल गर्त में गिर जाने के बराबर था. यह किरदार उन अच्छी 'संस्कारों में पली-बढ़ी' और 'नैतिक तौर पर सदाचारी' हीरोइनों से कोसों दूर था, जिनके चरित्र में तमाम भारतीय अदाकारा स्वीकार्य होने की जुगत में रहती हैं. फैशन की बदौलत उन्हें कमीने, 7 खून माफ, बर्फी! और मैरी कॉम सरीखे दमदार किरदार मिले. बाकी, जैसा कि कहा जाता है, केमिस्ट्री है.
प्रियंका यह कबूल करने से झिझकती नहीं है कि वे इंडस्ट्री में अपने शुरुआती दिनों से कितनी दूर आ चुकी हैं. वे अपनी किसी भी फिल्म को खारिज नहीं करना चाहतीं, लेकिन कुछ फिल्में उन्हें 'मुंह छिपाने' को मजबूर कर देती हैं. कुछ अन्य फिल्मों के बारे में उन्हें हैरानी होती है कि वे क्या सोचकर इनमें काम करने को तैयार हुई थीं. अदाकारा के तौर पर उनका सोचने का तरीका भी बेहतर हुआ है. हालांकि जानकार उनकी अभिनय कला को 'काफी' मानते हैं, 'मजबूत' नहीं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि उनमें बेहतर करने की खासी संभावनाएं हैं.
उनसे पूछें कि वे भूमिका की तैयारी कैसे करती हैं, तो जवाब देती हैं, ''पंकज कपूर ने एक बार मुझसे कहा था कि किरदार के बारे में आप जो भी जानना चाहते हो, वह सब स्क्रिप्ट में है. लेखक, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर ने आपके लिए सारा गोला-बारूद जुटा दिया है. बाहर प्रेरणा तलाशने की बजाए आपको उसे स्क्रिप्ट या पटकथा में खोजना चाहिए.'' उनसे मेथड ऐक्टिंग के बारे में बात करें, तो वे कहती हैं कि हालांकि कुछ लोगों के लिए यह कारगर हो सकती है, लेकिन उनके लिए नहीं है. वे एक किस्सा सुनाती हैं—जब लॉरेंस ओलिवियर और डस्टिन हॉफमैन मैराथन मैन (1976) में काम कर रहे थे, तब उसमें एक दृश्य था, जिसमें हॉफमैन को जोर-जोर से सांस लेनी थी. उन्होंने तय किया कि कुछ मील दौड़ लेने से अभिनय में असलियत आ जाएगी. जब वे दृश्य शुरू करने के लिए लौटकर आए, तो ओलिवियर ने उनकी पीठ थपथपाई और कहा, ''अगली बार, ऐक्टिंग आजमाना, बेटे.''
प्रियंका की निजी जिंदगी के बारे में इन वर्षों में काफी अटकलें लगाई जाती रही हैं. टैब्लॉइड अखबारों ने करियर के शुरुआती वर्षों में उन्हें अक्षय कुमार के साथ जोड़ा. 2000 के दशक के बाद के वर्षों में कुछ वक्त के लिए उनका नाम शाहिद कपूर के साथ जुड़ा. और 2010 के दशक के ज्यादातर शुरुआती वर्षों में उन्हें काफी बदनाम करने वाले तरीके से शाहरुख खान के साथ जोड़ा गया. वे इन कहानियों की न तस्दीक करती हैं, न खंडन. इसके पीछे जो दलील वे देती हैं, उसको काटा नहीं जा सकता—''बहुत लंबे वक्त से भारत में अभिनेत्रियों को उनके काम की बजाए उनके रिश्तों में तब्दील कर दिया जाता है. क्या अब इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए?''
दुनियाभर में चर्चा
क्वांटिको के सेट पर प्रियंका अमेरिकी मनोरंजन उद्योग में नौसिखुआ नजर नहीं आतीं. इसके विपरीत, शूटिंग का माहौल तय करने वाले रहस्यमय रसायन साफ तौर पर उन्हीं से निकलकर आते हैं. वे हमेशा सेट पर मंडराती रहती हैं, जिसके उस ''वीडियो विलेज' में कई चलते-फिरते हिस्से हैं, जहां डायरेक्टर और लेखक लिए जाने के समय साथ-साथ ही फुटेज देखते हैं. वे यहां दिल्लगी करती हैं, वहां हंसी-ठट्ठा करती हैं, तो कहीं और अचानक उछल-उछलकर नाचने लगती हैं. अगर कहीं कोई संकोच है (उनकी मां हमें बताती हैं कि वे वाकई शर्मीली हैं), तो उसे बखूबी नकाब में छिपा लिया गया है.
शायद इस बात से उन्हें मदद मिलती है कि क्वांटिको ऐसा शो है, जिसमें प्रियंका आसानी से फिट हो जाती हैं. यह नेटवर्क का सस्ता चाट मसाला है. यह ब्रेकिंग बैड की तरह न तो कलात्मक और गहरा है और न ही हाउस ऑफ काड्र्स की तरह पेचदार और भावनात्मक है, या यहां तक कि होमलैंड की तरह विस्तृत और तकलीफजदा भी नहीं है. अदाकारों पर हमेशा रंगरोगन किया जाता है, वे हमेशा अच्छे दिखते हैं और कहानी में इस कदर मोड़ आते रहते हैं कि जिससे यह असलियत कम और नाटकीय ज्यादा लगती है. दूसरे शब्दों में, यह बेधड़क पॉपकॉर्न मनोरंजन है, बहुत कुछ बॉलीवुड सरीखा ही, और यही बात प्रियंका ने अच्छी तरह भांप ली. वे कहती हैं, ''मनोरंजन को व्यावसायिक ही होना चाहिए, लोकप्रिय ही होना चाहिए. यही क्वांटिको है. यह जोशो-खरोश और पागलपन से भरा शो है. यह 'कला' नहीं है, यह मुख्यधारा का नेटवर्क टेलीविजन है. आप कह सकते हैं, जैसे बॉलीवुड के बारे में कहते ही हैं, कि ''देखो आइलाइनर लगा के रो रही है'. लेकिन व्यावसायिक फिल्मों में भी अभिनेता, टेक्नीशियन, डायरेक्टर, लेखक अपनी कला को पेश कर सकते हैं.''
प्रियंका को यह किरदार एबीसी के साथ टैलेंट-होल्डिंग यानी प्रतिभा को संभालने वाले समझौते पर दस्तखत करने के बाद उसकी एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसीडेंट केली ली के आग्रह पर मिला. यह मुख्य तौर पर इस विचार से पैदा हुआ था कि किसी एक इलाके के स्टार को लाकर अमेरिका की जमीन पर रोपा जा सकता है और वहां भी उसे स्टार बनाया जा सकता है. इसके पीछ सोच यह थी कि एक निश्चित सामाजिक समूह में उनके कद्रदानों की फौज उनके साथ चली आएगी. यह वित्तीय और रचनात्मक प्रयोग था और क्वांटिको की शुरुआती सफलता बताती है कि यह प्रयोग कामयाब हो रहा है. पहले इसके छह एपिसोड को मंजूरी मिली थी, जिसे 13 तक, फिर 19 तक और फिर आखिरकार 22 एपिसोड तक बढ़ा दिया गया, बावजूद इसके कि इसका प्रोडक्शन बजट 60 लाख डॉलर प्रति एपिसोड के दायरे में है, जो ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों की लागत से ज्यादा है. अगर इसकी मौजूदा रेटिंग बनी रहती है, तो जल्दी ही दूसरे सीजन की भी पूरी उम्मीद है.
इसके बावजूद प्रियंका को इस भूमिका के लिए ऑडिशन देना पड़ा था. भारत में ऐसा उन्होंने कई वर्षों से नहीं किया था. उस सुबह जब वे लॉस एंजिलिस में एबीसी स्टुडियो जा रही थीं, तब उन्होंने खुद को नई हालत के लिए तैयार किया और खारिज कर दिए जाने के डर को भी. उन्होंने अपने आप से कहा कि मैं यही काम करती आई हूं. अगर भारत में कर सकती हूं, तो कहीं भी कर सकती हूं. वे कहती हैं, ''जब मैंने कमरे में कदम रखा, वहां करीब सात लोग थे. मैं एक कुर्सी पर बैठ गई, मैंने लाइनें पढ़ीं (वह क्वांटिको के पहले एपिसोड का दृश्य था, जिसमें वे थोड़ी देर यौन संबंध के बाद जेक मैकलॉगलिन के किरदार को पस्त कर देती है) और बाहर आ गई.''
उस कमरे में मौजूद लोगों में एक शख्स शो के सृजनहार जोशुआ सैफरन भी थे. वे बताते हैं, जब प्रियंका अंदर आई तो उन्हें लगा कि वे ग्लैमरस और खूबसूरत हैं, मगर इस किरदार के लिए शायद माकूल नहीं हैं. वे कहते हैं, ''फिर वे बैठ गईं और उन्होंने पढऩा शुरू किया. यह एक रहस्योदघाटन था, क्योंकि मैंने सोचा था कि एलेक्स सांवली, खुद में खोई रहने वाली है. मगर प्रियंका ने उसे इस तरह निभाया कि मन में ढेरों संघर्ष छिड़े होने के बाद भी एलेक्स में एक चुंबकीय खूबी आ गई, जिसकी मैंने पहले कल्पना नहीं की थी. मुझे लगा, एलेक्स पैरिश कूल और चुलबुली भी हो सकती है.'' एक हफ्ते बाद प्रियंका को पता चला कि यह किरदार उन्हें मिल गया है. एलेक्स की भारतीय पृष्ठभूमि की कहानी उन्हें शामिल करने के लिए स्क्रिप्ट में बाद में जोड़ी गई.
उसके बाद उन्हें किरदार के हिसाब से सही दिखना और उन क्षणों को जीना था. उन्हें एक बोली और लहजा सिखाने वाले कोच हैं, जो उनके लहजे को पक्का अमेरिकी बनाते हैं, जिसकी जातीयता अब भी पहचान में नहीं आती, लेकिन फिर भी उनके किरदार से मेल खाती है, क्योंकि एलेक्स पैरिश ने अपने पिता की मौत के बाद एक दशक मुंबई में बिताया था.
प्रियंका कहती हैं कि उन्हें 'अपना वक्त देने के लिए काफी' मेहनताना मिल रहा है. अनुमानों के हिसाब से उन्हें प्रति एपिसोड 1,50,000 डॉलर तो नहीं मिल रहा है, जो बताते हैं कि स्कैंडल के लिए केरी वाशिंगटन को दिया गया था. लेकिन यह 1.2 लाख डॉलर से ज्यादा दूर भी नहीं है, जो वे अनुमान के मुताबिक एक हिंदी फिल्म के लिए लेती हैं. यह शूटिंग के दिनों के हिसाब से समानुपातिक आधार पर दिया जाता है. क्वांटिको को रॉटन टमाटोज पर 83 फीसदी और आइएमडीबी पर 7.4 फीसदी रेटिंग मिली हैं, जिनसे पता चलता है कि एक रोचक, भावुक थ्रिलर के तौर पर इसे आलोचकों और आम लोगों ने भी पसंद किया है. असल में एलेक्स पैरिश को जिस तरह प्रियंका के लिए मांजा गया है, वह अब अमेरिका में और भी ज्यादा काम की बुनियाद बन सकता है. वे कहती हैं, ''अपने आसपास देखो, बगल वाली लड़की अब किसी भी रंग की हो सकती है. हम उस दौर में हैं जब विविधता को गले लगाया जा रहा है. बेशक अपनी त्वचा के रंग की वजह से मैं दो श्वेत लोगों के घर में पैदा नहीं हो सकती. लेकिन अब इसकी कोई अहमियत नहीं रह गई है.''
पते की बात यह है कि अब उन्हें अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त घर से दूर बिताना पड़ सकता है. हालांकि वे जोर देकर कहती हैं कि बॉलीवुड में अभी भी उनकी दिलचस्पी और भविष्य है, जो आज भी उनकी प्राथमिक कर्मभूमि है. उनकी अगली फिल्म बाजीराव मस्तानी दिसंबर में रिलीज होगी. इसका निर्देशन संजय लीला भंसाली ने किया है, जो अनुराग बसु और विशाल भारद्वाज के साथ उनके सबसे पसंदीदा निर्देशक हैं. लेकिन इसमें वे टाइटल किरदार नहीं निभा रही हैं, मस्तानी दीपिका पदुकोण बनी हैं. एक बार 30 की उम्र को पार करने के बाद भारत में अदाकाराओं को नायिका के किरदार मिलने में वैसे भी मुश्किलें आती हैं. पर 33 साल की उम्र में अमेरिका में आप अब भी जवान हैं. हम उन्हें उकसाते हुए कहते हैं. वे जवाब देती हैं, ''हां, 33 की उम्र में आप बियॉन्सी हैं.''
अपने हिस्से की कमाई करते और अपने गुर सीखते हुए प्रियंका एक ऐसी शख्सियत बन गई हैं, जिसे भारत के बड़े हिस्से में या तो समझा नहीं जाता या बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया जाता है. शायद वे इतने लंबे वक्त से आंखों के सामने हैं और इतनी तफसील से उन्हें देखा जाता रहा है कि गलती से उनकी परदे की छवि को ही उनकी शख्सियत मान लिया जाता है.
मिसाल के लिए, उनके बारे में यह जानकर हैरानी होगी कि गणित से उन्हें जुनून की हद तक प्यार है. क्वांटिको के सेट पर जब वे अगले शॉट के बारे में लेखकों या निर्देशक के विचारों को समझ रही होती हैं, तब भी प्रियंका आइफोन पर मैथ 42 में खो जाती हैं. यह एक पेचीदा ऐप है, जो त्रिकोणमिति से लेकर फैक्टोरियल्स और पूर्णांक और कैलकुलस तक तमाम किस्म के सवाल उछालता रहता है, जिन्हें वह लगातार कई मिनटों तक हल करने में जुटी रहती हैं.
दूसरी हैरानी की बात यह है कि वे पढ़ाकू हैं. उनका स्पॉट ब्वॉय हमेशा उनके बैग में तीन या चार किताबें लेकर चलता है. इन दिनों वे एंडी वेइर की द मार्शियन पढ़ रही हैं और इसके बाद रिडले स्कॉट की इसी नाम की फिल्म देखेंगी, जिसमें मैट डेमन और जेसिका चैस्टेन ने प्रमुख किरदार अदा किए हैं. वे कहती हैं कि उनकी सबसे पसंदीदा किताब जवाहरलाल नेहरू की लेटर्स फ्रॉम ए फादर टू हिज डॉटर्स है. यह बरसों पहले उनके पिता ने उन्हें दी थी. प्रियंका के पिता 2013 में गुजर गए और उनकी कलाई पर उकेरा वह टैटू खासा मशहूर है, जिसमें उन्होंने अपनी लिखावट में श्डैडीज लिटिल गर्ल्य खुदवा रखा है.वे खाने की भी बहुत शौकीन हैं. मॉन्ट्रियल में फिलहाल उनका पसंदीदा स्थानीय पकवान पॉउटिन है, जिसमें फ्रेंच फ्राइज और चीज को ग्रेवी से ढककर ऊपर से मीट डाल दिया जाता है. हम उनसे पूछते हैं कि वे इतने चिकनाई वाले व्यंजन कैसे खा लेती हैं और वे जवाब देती हैं, ''ओह हां, मेरा मेटाबॉलिज्म बहुत अच्छा है.''
घर से दूर प्रियंका का घर मॉन्ट्रियल के उपनगर हैंपस्टीड में एक बड़ा, धूपदार, छह बेडरूम का मकान है, जो उन्होंने अपने शूट की मियाद के लिए मध्य दिसंबर तक किराए पर लिया है. इसमें बंटे हुए तल हैं, एक हवादार आंगन और बेसमेंट में एक स्विमिंग पूल भी. यह वह एकांत जगह है, जहां सेट के बाद जितना भी वक्त उन्हें मिलता है, प्रियंका यहीं बिताती हैं. मुंबई से उनके सहयोगी मोहनीश और बसंती देखभाल के लिए यहां आ गए हैं. उनके बार-बार आने वाले मेहमान हैं क्वांटिको की टीम के साथी, उनकी स्टाइलिस्ट और हेयरड्रेसर. भारत से उनके भाई और मां भी गाहे-ब-गाहे आते रहते हैं.
यह दीवाली है. घर को रोशनी और दीयों से सजाया गया है और शाम को छोटी-सी लक्ष्मी पूजा का आयोजन है. प्रियंका के लिए आज भी काम पर जाने का दिन है. उनकी सह-स्टार यास्मीन अल मसरी, अनाबेली एकोस्टा और जोहाना ब्रैडी ने, जो क्वांटिको में एफबीआइ के साथी रंगरूट निमा अमीन, नताली वासक्वेज और शेल्बी वॉट के किरदार निभा रही हैं, उन्हें बगैर बताए सेट पर एक सरप्राइज पार्टी आयोजित की है. उन्होंने सड़क के उस पार केटरिंग रूम को सुनहरी प्रतिमाओं से सजाया, खुद अपने लिए पारंपरिक भारतीय परिधान मंगवाए, और गाने-बजाने के लिए एक स्थानीय बॉलीवुड मंडली भी जुटा ली. एक एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर प्रियंका को फुसलाकर इमारत के भीतर ले जाता, उससे पहले मंच सज चुका था. 'सरप्राइज!' और 'हैप्पी दीवाली!' की गूंज के बीच वे अंदर आईं, और आंसू नहीं रोक सकीं. संस्कृतियों के इतने बेजोड़ मेलजोल पर हैरानी ही जाहिर की जा सकती है. बरेली की बाला प्रियंका चोपड़ा ने यह पक्का कर दिया कि अमेरिकन नेटवर्क टेलीविजन लाइट्स, कैमरा, ऐक्शन के हिंदुस्तानी त्योहार को आखिरकार अपने गले लगाए.