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फिक्शन का सहारा नहीं लियाः राम गोपाल वर्मा

शिवा, रंगीला, सत्या, भूत और सरकार जैसी हिट फिल्में बनाने वाले रामगोपाल वर्मा अब 26/11 के मुंबई हमलों पर अपनी फिल्म 'द अटैक्स आफ 26/11' लेकर आ रहे हैं. इंडिया टुडे के कॉपी एडिटर नरेंद्र सैनी से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंशः

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राम गोपाल वर्मा
राम गोपाल वर्मा

शिवा, रंगीला, सत्या, भूत और सरकार जैसी हिट फिल्में बनाने वाले रामगोपाल वर्मा अब 26/11 के मुंबई हमलों पर अपनी फिल्म 'द अटैक्स आफ 26/11' लेकर आ रहे हैं. इंडिया टुडे के कॉपी एडिटर नरेंद्र सैनी से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंशः

मुंबई हमलों को ही फिल्म बनाने के लिए क्यों चुना?
यह आजादी के बाद के भारत का सबसे बड़ा हमला था. इसने हमें बुरी तरह हिलाकर रख दिया था. इसी बात ने मुझे अपील किया.

इस घटना को तो सबने टीवी पर लाइव देखा है, आप नया क्या दिखाएंगे?
आपका कहना सही है, लेकिन कई ऐसी बातें हैं, जिनसे लोग रू-ब-रू नहीं हैं. जैसे बोट के अंदर क्या हुआ. हम लोग यही जानते हैं कि वे बोट से पहुंचे. ऐसी कई नई बातें हैं जो फिल्म मे दिखाई गई हैं.

इस सेंसिटिव टॉपिक को डील करने में किस तरह की दिक्कतें आईं?
सबसे बड़ी प्रॉब्लम सीन्स क्रिएट करने की है. उस दिन जो भी हुआ और जहां भी हुआ उसे हमने देखा था. इसलिए रियल लोकेशंस का ख्याल रखना बेहद जरूरी था. हमने परमीशन लेकर रियल लोकेशंस पर शूटिंग भी की और ताज कॉम्प्लेक्स का पूरा सेट तैयार किया था.

फिल्म में फिक्शन का भी सहारा लिया गया है?
बिल्कुल नहीं. फिल्म में कुछ भी फिक्शनल नहीं है.

फिल्म के लिए किस तरह की रिसर्च की थी?
इस घटना से जुड़े हमने सभी पहलुओं को खंगाला. लोगों से मिलकर विषय को समझा और रिसर्च के बाद ही कहानी तैयार की. शायद इसीलिए फिल्म सेंसर से बिना कट के क्लीयर हो गई है.

फिल्म के कैरेक्टर्स का सिलेक्शन कितना मुश्किल रहा?

यह एक टेंस और इटेंसिटी भरी फिल्म है. इसलिए कैरेक्टर्स भी उसी के मुताबिक होने चाहिए. नाना पाटेकर को ही लें उनकी आंखें और चेहरा फिल्म के एक्शन के साथ बखूबी फिट बैठते हैं. हमने फिल्म की इटेंसिटी और कहानी को ध्यान में रखकर ही कलाकार चुने हैं.

कसाब के कैरेक्टर के लिए संजीव जायसवाल ही क्यों?
हम ऐसा लड़का चाहते थे जिसकी उम्र कम हो और कद छोटा हो और दिखने में कसाब जैसा लगे और फिर बहुत अच्छा ऐक्टर होना भी जरूरी था. हमने 40-50 लड़कों का स्क्रीन टेस्ट लिया और संजीव जायसवाल चुने गए. संजीव इन सभी कसौटियों पर खरा उतरते थे.

अजमल कसाब को फांसी लग चुकी है और कई आतंकियों को भी सरकार फांसी की सजा दे रही है. इस पर क्या कहना है?

यह ज्यूडिशियल प्रोसेस है. इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता.

 



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