फिल्मों के लिए मुझमें दीवानगी नहीं है. हर फिल्म देखूं यह जरूरी भी नहीं. लेकिन वो फिल्में देखने की कोशिश करता हूं जो चर्चा में हों या किसी और वजह से हिट-सुपरहिट हों. 'दिल बेचारा' केवल इसलिए देखी कि अब तुम इस दुनिया में नहीं हो सुशांत सिंह राजपूत. आखिर इतनी डिप्रेसिव फिल्म कोई क्यों देखेगा जिसके सारे प्रमुख पात्र कैंसर से मरने वाले हों.
इमैनुएल राजकुमार जूनियर की कहानी तुम्हारी खुद की जिंदगी से इतना मेल क्यों खा गई सुशांत? तुम भी अच्छे परिवार से आते थे. पिता सरकारी अफसर रहे. कई बहनों के इकलौते भाई थे. लालन-पालन भी राजकुमार की तरह ही हुआ होगा. तुम्हें कुत्तों से प्यार था शायद उन पर ज्यादा भरोसा रहा होगा. दिल बेचारा में तुमने काम भी शानदार किया. लेकिन यह मेरा पूर्वाग्रह भी हो सकता है कि तुम्हारे अंदर की उदासी मसखरी पर हमेशा भारी रही.
इस फिल्म में तुम्हारा साथी जेपी आंख के कैंसर से जूझ रहा है और बाद में अंधा हो जाता है. जो लड़की तुम्हें चाहती है उसे थायराइड कैंसर है. उसकी जिंदगी 'पुष्पेंदर' (ऑक्सीजन सिलिंडर) पर टिकी है. तुम हड्डी के कैंसर से जूझ रहे हो. तुम्हारा जाना तय है. अब तुम्हारे न रहने पर ये सारी चीजें लिंक सी हो जाती हैं सुशांत. कई डायरेक्टर्स ने कहा है कि तुम किरदार में पूरी तरह डूब जाते थे. अभिनय से पहले किरदार को जीने की पूरी कोशिश करते थे. क्या तुम जूनियर के किरदार में इतना डूब गए कि उससे बाहर ही नहीं आ पाए?.
तुम तो रजनीकांत की तरह बनना चाहते थे. हिरोइन को बचाना चाहते थे. तुम्हें तो किसी से डर लगता ही नहीं था. लेकिन तुम्हारी हिरोइन कहती है कि हीरो होने के लिए पॉपुलर होना जरूरी नहीं है. क्या यह गुमनामी में जाने का संदेश था? दिल बेचारा मसखरी करता रह गया और जिंदगी की डोर हाथ से निकल गई? क्या तुम्हें जिंदगी में प्यार नहीं मिला? दिल बेचारा का ही डॉयलाग है कि प्यार तो नींद की तरह है. आता है और एकदम आगोश में ले लेता है. लेकिन नींद खुलती भी तो है. वह खुली क्यों नहीं?
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इमैनुएल राजकुमार जूनियर कहता है कि मैं बड़े-बड़े सपने देखता हूं लेकिन उन्हें पूरा करने का मन नहीं करता. यह उदासी दिल चीर कर रख देती है. वह आगे कहता है कि अब छोटे सपने देखता हूं और उसे पूरा करना चाहता हूं. जीने का सपना तो वैसे भी बहुत बड़ा होता है सुशांत. जीवन को पूरा करना आसान भी नहीं होता. जीवन की हैप्पी एंडिंग भी नहीं होती. फिल्म देखते समय ये सारी बातें कौंधती रहती हैं. लेकिन मरने का सपना छोटा भी है और पूरा करना भी आसान.
तुम किजी बासु के साथ अभिमन्यु वीर से मिलने पेरिस चले जाते हो. किजी वीर से जानना चाहती है कि उसने अपना एक गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया. वीर पूरा फलसफा ही सामने रख देता है. उसमें जीने की तमन्ना कम मरने की जिद ज्यादा दिखती है. तुम्हारे न रहने पर ये बातें एकदम तुम्हारी निजी जिंदगी से जुड़ सी जाती हैं. वीर कहता है कि 'गाना पूरा इसलिए नहीं किया कि पूरा करने की वजह टूट गई'. उसका सवाल है कि 'जब कोई मर जाता है तो क्या उसकी यादों के सहारे जिया जा सकता है'?. और आखिर में गाना अधूरा रह गया 'क्योंकि लाइफ ही अधूरी है'. तो क्या ये आखिरी वाक्य तुम्हारे दिल से निकले ही नहीं?
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जिंदगी 'पीड़ा हारी बाम' क्यों नहीं हो पाई सुशांत?. 'दिल बेचारा' हमें यह बताती है कि कब जन्म लेना है, कब मरना है, यह हम तय नहीं कर सकते. लेकिन जीवन को जीना कैसे है, यह हम तय कर सकते हैं. लेकिन तुम तय क्यों नहीं कर पाए?. 'दिल बेचारा' के पात्रों को पता है कि उनका जीवन थोड़ा लेकिन उसे वो भरपूर जी लेना चाहते हैं. लेकिन डोर सबकी टूट जाती है. 'हमेशा-हमेशा' वाली प्रेमिका जेपी के अंधा होने के बाद उसे छोड़कर चली जाती है. किजी को छोड़कर तुम चले जाते हो. किजी अपने दिन गिन रही है. लेकिन मरना तिल-तिलकर मरना नहीं है. 'दिल बेचारा' बताती है कि जितना जीवन है, उसे उत्साह से जीना है. जीवन को साथ की जरूरत है, दया की नहीं. जीवन कितना भी छोटा हो सपने देखे जा सकते हैं और उसे पूरा भी किया जा सकता है. जितनी देर जान में जान रहे उसमें जीवन भरपूर हो.
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मैं यह पूरी फिल्म इसलिए देख गया कि अब तुम नहीं हो सुशांत. और लाखों लोगों की तरह मैं भी तुम्हें उम्मीद से देखता था. क्योंकि तुमने जो पाया था वह खुद से पाया था, विरासत से नहीं. यही बातें तुम्हें औरों से अलग करती थीं. युवाओं को इस बात का एहसास दिलाती थीं कि मायानगरी उनके लिए भी है जिनका कोई गॉडफादर नहीं है. लेकिन दिल बेचारा ही रह गया. तुम जहां रहो, खुश रहो सुशांत...