निर्देशकः मोहित सूरी
कलाकारः इमरान हाशमी, जैकलिन
यह अपराध, सेक्स और सस्पेंस के अलावा मनोविकारों की मिलवां कथा है. रंग काला और लाल. मर्डर-2 में ऊंच-नीच तो तमाम हैं पर इसमें एक शायराना रवानी है. खूबसूरत संवाद और गीत इसके विजुअल सौंदर्य से घुल-मिलकर एक गजल-सी बनाते हैं.
लेकिन इस गजल में विचार की कोई बड़ी आत्मा नहीं है. पैसे के लिए औरत की दलाली छोड़ दुनिया का हर काम करता पुराना पुलिस वाला अर्जुन (हाशमी) लड़कियों के एक रहस्यमय हत्यारे की तलाश में है. मॉडल प्रिया (जैकलिन) से नित नत्थी होना भी उसके एक काम जैसा है.
''मोहब्बत या जरूरत?'' यहां सिर्फ एक संवाद है. वरना जैकलिन की लंबी-नंगी टांगें, न्यौतते नेत्र, खुला-खिला बदन और अर्जुन से अंगसंग होते रबर-सी लचकती देह सब कुछ कह देते हैं. गायब होती लड़कियों की अपराध कथा यहां एक सलियत के नुक्ते की तरह है.
हालांकि इसी पाले से जुड़े एक हिजड़ा खल चरित्र सुधीर के किरदार में प्रशांत नारायण कम स्पेस में भी कहर बरपा कर गए हैं. उभरी-गहरी, तराशी, मेलोडियस संवाद अदायगी, पैनी आंखें और दूसरे बारीक आंगिक झ्टके. अभिनय के लिहाज से नितांत कमजोर और पंच के लिए संवाद के आखिर में सवालिया 'हां?' कहने की तरकीब निकाल लेने वाले हाशमी को साझ दृश्यों में उन्होंने ठिकाने लगा दिया है.