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Film review: रजनीकांत के फैंस के लिए है 'कबाली'

साउथ के डायरेक्टर पा रंजीत ने 'अटकत्ती' और 'मद्रास' जैसी बेहतरीन तमिल फिल्मों के निर्माण के बाद इस बार सुपर-डुपर स्टार रजनीकांत के साथ फिल्म 'कबाली' बनाई है. जिसकी रिलीज से पहले ही चारो तरफ धूम है. तमिल के साथ-साथ इस फिल्म को हिंदी, तेलुगु और मलयालम में भी डब करके रिलीज किया गया है, आइए जानते हैं आखिर कैसी है यह फिल्म.

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फिल्म 'कबाली'
फिल्म 'कबाली'

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फिल्म का नाम: कबाली
डायरेक्टर: पीए रंजीत
स्टार कास्ट: रजनीकांत , राधिका आप्टे, विंस्टन चाव ,धंसिका, दिनेश रवि, किशोर , जॉन विजय ,
अवधि: 2 घंटा 30 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 3 स्टार

साउथ के डायरेक्टर पा रंजीत ने 'अटकत्ती' और 'मद्रास' जैसी बेहतरीन तमिल फिल्मों के निर्माण के बाद इस बार सुपर-डुपर स्टार रजनीकांत के साथ फिल्म 'कबाली' बनाई है. जिसकी रिलीज से पहले ही चारो तरफ धूम है. तमिल के साथ-साथ इस फिल्म को हिंदी, तेलुगु और मलयालम में भी डब करके रिलीज किया गया है, आइए जानते हैं आखिर कैसी है यह फिल्म:

कहानी
फिल्म की कहानी कबालीश्वरन (रजनीकांत) की है जो मलेशिया में 'कबाली' के नाम से फेमस है. अपनी पत्नी रूपा (राधिका आप्टे) के साथ उसकी जिंदगी अच्छी गुजर रही थी फिर अचानक किन्हीं कारणों से उसे गैंगस्टर बनना पड़ता है, और 43 नामक गैंग की वजह से 25 साल के लिए जेल जाना पड़ता है, जेल से वापस आने पर कबाली से '43 गैंग' के सदस्य डरने लगते है और उन्हें धंधा खराब होने का डर सताने लगता है. फिर कहानी में कई ट्विस्ट टर्न्स आते है. कहानी मलेशिया से होते हुए भारत आती है और आखिरकार टिपिकल रजनीकांत की फिल्मों जैसा अंजाम मिलता है.

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स्क्रिप्ट
फिल्म की स्क्रिप्ट तो रेगुलर है लेकिन शूटिंग के तरीके और रजनीकांत की मौजूदगी ने इसे एक विजुअल ट्रीट की तरह पेश किया है. मलेशिया की लोकेशंस बेहतरीन हैं और साथ ही फिल्म की सिनेमेटोग्रफी कमाल की है. वैसे कहानी काफी लंबी लगती है जिसे थोड़ा छोटा किया जा सकता था. वैसे कुछ सीन ऐसे भी हैं जो आपको इमोशनल भी कर जाते हैं.

अभिनय
रजनीकांत ने फिल्म में अपन-अलग अलग रूपों को हमेशा की तरह बखूबी निभाया है, रजनीकांत के लुक अपने आप में ही आकर्षण का केंद्र हैं, वहीं एक्ट्रेस राधिका आप्टे ने एक बार फिर से अच्छा अभिनय किया है खास तौर से एक अरसे बाद जब वो रजनीकांत से फिल्म में मिलती है तो वो सीन काफी उम्दा है. दिनेश रवि, धंसिका और बाकी सह कलाकारों का काम भी सराहनीय है.

कमजोर कड़ी
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लेंथ है. बहुत सारे लेयर्स की वजह से बहुत बड़ी कहानी लगती है जिसे और भी क्रिस्प किया जा सकता था, हालांकि इसे साऊथ के सिंगल थियेटर्स में दर्शक काफी सराहेंगे.

संगीत
फिल्म का संगीत संतोष नारायण ने अच्छा दिया है और आपको बांधें रखने में सक्षम भी है.

क्यों देखें
रजनीकांत की फिल्मों को पसंद करते हैं तो बिल्कुल भी इस फिल्म को मिस मत करिए.

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