बॉलीवुड में हीरोइन प्रधान फिल्मों का दौर लाने वाली विद्या बालन की फिल्म 'हमारी अधूरी कहानी' इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है.
फिल्म में वह इमरान हाशमी और राजकुमार राव के साथ इंटेंस कैरेक्टर में नजर आ रही है. हाल ही में विद्या ने फिल्म इंडस्ट्री में एक दशक भी पूरा कर लिया है. उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंशः
महेश भट्ट अलग किस्म के कैरेक्टर रचते हैं, उनके साथ काम का एक्सपीरियंस कैसा रहा?
महेश भट्ट के साथ 'हमारी अधूरी कहानी' में काम करना मेरे लिए अधूरे सपने का पूरा होना था. जैसा उनके बारे में सोचा था, वह बिल्कुल वैसे ही हैं. हर चीज को लेकर उनका नजरिया एकदम अलग है. वह फिल्म के साथ बतौर राइटर जुड़े हैं लेकिन उन्होंने मेरी हर डिटेल में मदद की है. वह अक्सर मेरे कैरेक्टर से जुड़े कोट भेजते थे ताकि मैं और गहराई के साथ उसमें उतर सकूं. उन्होंने अपनी लिखी एक किताब मुझे पढ़ने के लिए दी. उन्होंने बताया कि फिल्म की कैरेक्टर शुरू में सीता है, फिर वह राधा बनती है और फिर दुर्गा बन जाती है. उनका तुलना करने का नजरिया बेमिसाल है.
वसुधा के कैरेक्टर के लिए आपने किस तरह की तैयारियां की?
ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ा. फिल्म में फ्लॉरिस्ट बनी हूं तो मैंने असल जिंदगी में फ्लॉरिस्ट के साथ थोड़ा समय गुजारा. देखा वह फूलों पर कैसे पानी छिड़कती है, कैसे उन्हें तराशती है.
यह तो ठीक है, लेकिन वसुधा इससे भी ज्यादा कुछ और है?
वसुधा आज की लड़की है. पढ़ी लिखी है. शादी-शुदा है. उसके बाद भी उसकी सोच पुरानी है. वह मानती है कि उसे किसी भी कीमत पर इस शादी को निभाना है. जैसे हिंदुस्तानी लड़कियों से कहा जाता है कि उनकी डोली पति के घर गई है तो उसकी अर्थी ही वहां से उठनी चाहिए. ऐसी ही है वसुधा भी...
क्या वाकई इस तरह के कैरेक्टर होते हैं?
हां. मेरी एक सहेली की बात करूं तो मैं उससे मिली. छह साल की शादी के बाद उसका डिवोर्स हो गया था. उसने काफी सहा, उसका पति उसे मारता था. लेकिन वह बोल्ड थी, इसलिए उसने आवाज उठाई. उस दिन यह बात समझ आ गई कि इस तरह की बातें सिर्फ अनपढ़ परिवारों तक ही सीमित नहीं है, यह वर्ग और सीमाओं से परे है. यानी ऐसी चीजें हमारे आसपास हो रही हैं. इसी चीज को परदे पर उतारना वाकई चैलेंज भरा था.
आपने हमेशा मजबूत औरत के कैरेक्टर निभाए हैं, ऐसे में एक ऐसा किरदार निभाना जिसमें उसका पति उसे मारता है, कितना मुश्किल रहा?
मैंने मान लिया कि ऐसा होता है. इसलिए इसे कर सकी. लेकिन फिर भी सीन के दौरान उससे गुजरना होता है. अब जैसे राजकुमार को मुझे मारना था. वह मक्खन की तरह छूकर मुझे निकल गए. लेकिन मैंने कहा कि ऐसे नहीं चलेगा. थोड़ा जोर से ताकि फीलिंग आए और उन्होंने ऐसा ही किया. यह सीन चुनौतीपूर्ण था. शादीशुदा जोड़ों में झगड़ा होता है. बस, इसी तरह सीन को भी करना था, चैलेंजिंग था, उसमें उतरना.
आप सामाजिक जागरूकता फैलाने में भी काफी सक्रिय रही हैं, क्या वाकई इन कोशिशों को फायदा या नतीजा निकलता दिख रहा है?
हां, इनके नतीजे सामने आते हैं और अच्छा लगता है. जैसे कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र में एक लड़की की शादी हो रही थी और उसके माता-पिता ने उसे पोर्टेबल टॉयलेट गिफ्ट में दी. यानी जहां सोच वहीं शौचालय...