घर के सामने पार्क में रोज कुछ बच्चे खेलने आते हैं. खुश होते हैं तो 'मिथुन दा' की तरह नाचने की कोशिश करते हैं. या कोई दूसरा कुछ अच्छा कर जाए तो दादा की ही तरह उसे ग्रैंड सैल्यूट भी देते हैं. पर पूछो तो ज्यादा कुछ नहीं जानते दादा के बारे में, बस उनके फैन हैं. उन्हें मतलब नहीं कि मिथुन दा की परफॉरमेंस कैसी होती है, आलोचक क्या कहते हैं, या मिथुन दा की जिंदगी में कितना स्ट्रगल रहा. वो बच्चे तो बस मिथुन दा के नाम और उनके ऐटिट्यूड के कायल हैं. आज दादा के 66वें जन्मदिन पर उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं.
जिंदगी के लिए पॉजिटिव रवैया
कहते हैं कि 'ऐल्टिट्यूड' हो तो माउंट एवरेस्ट जैसा, और ऐटिट्यूड हो तो मिथुन दा जैसा'. एक डाकू वाल्मीकि बन गया था, और एक
नक्सलवादी गौरांग था जो सुपरस्टार मिथुन दा बन गया. जी हां, फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले मिथुन दा एक नक्सलवादी थे. पर
अपने भाई की मौत के बाद उन्होंने अपने जीवन को एक सही दिशा देनी शुरू की.
फिर दौर शुरु हुआ रेसलिंग का. कोई नहीं जानता था कि 1967 में 'वेस्ट बंगाल स्टेट रेसलिंग चैंपियनशिप' जीतने वाला शख्स एक दिन बॉलीवुड का डिस्को किंग बन जाएगा. उसके बाद तो समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि मिथुन दा को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया. फिर वो एक सामाजिक कार्यकर्ता, उद्यमी और राज्यसभा के सांसद भी बने.
एक अच्छे अभिनेता, एक अच्छे इंसान
कोलकाता से उभरे इस सुपरस्टार ने 1976 से फिल्मों में आना शुरू किया. पिछले करीब साढ़े चार दशकों में उन्होंने कुल मिलाकर
बॉलीवुड की 350 से अधिक फिल्मों में अभिनय के अलावा बांग्ला, उड़िया और भोजपुरी में भी बहुत सारी फिल्में कीं. म्यूजिकल फिल्म
डिस्को डांसर (1982) से तो उनकी इमेज ही बदल गई. उसके बाद दूसरी म्यूजिकल फिल्मों, कसम पैदा करनेवाले की (1984) और डांस
डांस (1987) ने उन्हें एक बेहतरीन डांसर के रूप में प्रतिष्ठित किया. अवॉर्ड्स तो इतने कि गिने भी न जाएं.
लेकिन फिल्म जगत से बाहर भी उनके काम की चर्चाएं कम नहीं हैं. जो बच्चे घर के सामने खेलते मिलते हैं उनके टीवी शो 'डांस इंडिया डांस' के चुलबुले और प्यारे मिथुन दा भी पसंद हैं और 90 के दशक के 'एंग्री यंग मैन' की इमेज वाले मिथुन दा भी भाते हैं.
- मिथुन मोनार्क ग्रुप के मालिक भी हैं जो हॉस्पिटेलिटी सेक्टर में कार्यरत है.
- डांस के दीवानों के लिए वो 'डांस इंडिया डांस' और 'डांस बांग्ला डांस' जैसे टीवी शो लेकर आए.
- अपनी मातृभूमि बंगाल में फुटबॉल को बढ़ावा देनें में भी लगे हुए हैं. बंगाल फुटबॉल अकादमी उन्हीं की दिमागी उपज है और उन्होंने
ही इस अकादमी की स्थापना के लिए जरूरी रकम जुटाई.
- मिथुन चक्रवर्ती इंडियन क्रिकेट लीग में रॉयल बंगाल टाइगर्सटीम के को-ओनर भी हैं.
उनकी जिंदगी में रोमांच और बढ़ गया जब उन पर आधारित एक कॉमिक बुक 'जिमी झिंगचक' लॉन्च की गई. लेकिन एक बात तो
माननी पड़ेगी कि उम्र चाहे जो हो, अगर दिल में बचपना है तो आप बूढ़े नहीं होते. यह बात मिथुन दा पर बिलकुल फिट बैठती है. वो
डांसर्स के साथ आज भी डांसर बन जाते हैं, बच्चों के साथ मसखरी करते हैं और समाजसेवा के नाम पर कभी पीछे नहीं हटते. ऐसे
महानायक आपको विरले ही देखने को मिलेंगे. आपके जन्मदिन पर आपको भी एक 'ग्रैंड सैल्यूट' तो बनता है दादा!!