देश के बेहतरीन म्यूजिक कंपोजर, प्ले राइटर और कवि, सलिल चौधरी का आज जन्मदिन है. बेस्ट बंगाल के गाजिपुर में 19 नवंबर 1923 में पैदा हुए इस महान शख्सियत को लोग प्यार से सलिल दा के नाम से बुलाते थे. आइए इस कलाकार की जिंदगी के बारे जाने 10 बातें और उनके द्वारा कंपोज किए हुए 10 गाने सुनें.
सलिल दा के बारे जानिए 10 बात और उनके 10 ऐसे गाने जिसे सुनकर दिन को यादगार बना लीजिए.
1 सलिल चौधरी का जन्म 19 नवंबर 1923 को असम के गुवाहाटी में हुआ था.और मृत्यु 5 सितंबर 1995 को कलकत्ता में. उन्होंने हिंदी के अलावा बंगाली और मलयालम सिनेमा के लिए भी संगीत दिया. वह संगीतकार के अलावा कवि और नाटककार भी थे. इसके अलावा वह बांसुरी, पियानो और एसराज बहुत उम्दा बजाते थे. बंगाली साहित्य समाज में उनका कवि के तौर पर भी बड़ा मान है.
गंगा और जमुना की गहरी है धार, आगे या पीछे, सबको जाना है पार,धरती कहे पुकार के, बीज बिछा ले प्यार के. मौसम बीता जाए.
फिल्मः दो बीघा जमीन (1953)
स्वरः मन्ना डे
2.सलिल का जन्म गाजीपुर नाम के गांव में हुआ था. पं. बंगाल के इलाके में पड़ता था ये गांव. मगर उनका ज्यादातर बचपन पिता की डॉक्टरी की नौकरी के चलते असम के चाय बागानों में बीता.
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुलहन बदन चुराए, चुपके से आए. मेरे ख्यालों के आंगन में, कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
फिल्मः आनंद
स्वरः मुकेश
ये आस्था का गीत है. मृत्यु पर्व के ठीक पहले ये आभास और आश्वस्ति है कि उस अंधेरे में ही किनारे से ही सही रौशनी गुम नहीं होगी.
3. संगीत में उनकी बुनियादी तालीम अपने पिता के वेस्टर्न क्लासिकल के रेकॉर्ड्स को सुनकर. सलिल दा के पिता नाटकों में खासी दिलचस्पी रखते थे. वह अकसर कुली और चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के साथ मिलकर नाटक खेला करते थे.
कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारोंफिल्म मेरे अपने (1971)
स्वरः किशोर कुमार
ये गुलजार की फिल्म थी. तो इसे सिनेमा के चालू मुहावरे से कुछ ठिठका अलग तो होना ही था. इसी में मेरे फेवरिट विलेन शत्रुघ्न सिन्हा का वह डायलॉग भी है. मां जी, श्याम से कह देना कि छेनू आया था. अब जरा इस पंक्ति को गले पर हाथ घुमाते हुए पढ़ें. असर कुछ बढ़ जाएगा. बहरहाल, ये गाना हमारे अब्बा के वक्त के दिलजलों के काम आता रहा होगा. फिर किशोर की आवाज तो है ही मन की लता के चढ़ने के लिए.
4. सलिल दा ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कलकत्ता यूनिवर्सिटी के बंगबासी कॉलेज से की. इस दौरान उन्होंने संगीत का रियाज तो जारी रखा ही, अपनी राजनीतिक चेतना को भी मांजा. इसी दौर में उन्होंने भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से भी खुद को जोड़ा. यह संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सांस्कृतिक शाखा के तौर पर काम करता है.
न जिया लागे न
फिल्मः आनंद
स्वरः लता मंगेशकर
5. सलिल चौधरी ने इप्टा के लिए गाने लिखे. उनकी धुनें बनाईं. इस दौरान इप्टा की नाटक मंडली के साथ वह शहरों और गांवों में घूमे. इस दौर में उनका लिखा गाना गायेर बोधू बहुत चर्चित हुआ. उस दौर के तकरीबन हर नामचीन गायक ने उनके मूलतः इप्टा के लिए लिखे किसी गाने को अपना स्वर दिया.
रजनीगंधा फूल तुम्हारे
फिल्मः रजनीगंधा (1974)
स्वरः लता मंगेशकर
इस गाने को सुनिए लता जी के शुरुआती आलाप के लिए. या फिर गौर करिए. गाना मुखड़े के बीच से शुरू होता है. यूं ही महके प्रीत पिया की, मेरे अनुरागी मन में. और फिर इस पंक्ति के बाद मुखड़े की पहली लाइन. रजनीगंधा फूल तुम्हारे
6.आज के बंगाल में पोरिबर्तन (परिवर्तन) शब्द ममता बनर्जी ब्रैंड राजनीति के साथ जोड़ दिया गया है. मगर यहां बात सलिल दा की हो रही है. उनकी पहली बंगाली फिल्म थी परिबोर्तन, जो 1949 में रिलीज हुई थी. उनका कंपोज किया पहला गाना गाया था देवव्रत विस्वास ने. परिबोर्तन से शुरू हुआ बंगाली सिनेमा का सफर मौत से एक बरस पहले यानी 1994 तक चलता रहा. कुल जमा 41 फिल्में कीं इस भाषा में सलिल दा ने.
ए मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछड़े चमन, तुझ पे दिल कुर्बां, तू ही मेरी आरजू, तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जां
फिल्मः काबुलीवाला (1961)
स्वरः मन्ना डे
जो आंख ही से न टपका तो लहू क्या है. गालिब के शेर की ये पंक्ति. या कि कोरों के किनारे उग आई नमी. इस गाने को सुनते देखते ही आपको बलराज साहनी की जगह अपने मां-बाप नजर आने लगते हैं. उनके जर्द सांवरे चेहरे पर मुल्क और सियासत के नक्शे बन जाते हैं. फफक के बीच रूमानियत का गान है ये.
7. हिंदी सिनेमा में उनका डेब्यू हुआ टैगोर की गद्य कविता से प्रेरित फिल्म दो बीघा जमीन से. इसकी कहानी लिखी थी खुद सलिल चौधरी ने. निर्देशन था बिमल रॉय का. यह फिल्म कई मायनों में ऐतिहासिक थी. अपनी प्रगतिशील विचारधारा के अलावा इसके हिस्से एक खास उपलब्धि और भी है. यह पहली फिल्म है, जिसने फिल्मफेयर बेस्ट मूवी अवॉर्ड जीता. इसके अलावा इसे कान फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिला.
एंवे दुनिया देवे दुहाई, झूठा पौंदी शोर, ते अपने दिल पूछ के देखो, कौन नहीं है चोर, ते कि मैं झूठ बोल्या, कोई न
फिल्मः जागते रहो (1956)
स्वरः मन्ना डे, बलबीर
जोगीरा शारारा की तर्ज पर गढ़ा गया गाना. इसे सुनिए और आज की राजनीति पर ठठ्टा मारकर हंसिए. दुनियादारी का बलगम बाहर निकल जाए.
8. सलिल चौधरी की पहली शादी हुई ज्योति चौधरी से. इन दोनों की दो बेटियां हुईं. बाद में सलिल ने सबिता चौधरी से शादी की. सबिता और सलिल की तीन संतानें हुईं. दो बेटियां अंतरा और संचारी और बेटा संजय. सबिता चौधरी पेशे से गायक थीं. उनका बेटी अंतरे ने सुधीर मिश्र की फिल्म खोया खोया चांद के लिए गाना गाया था सोनू निगम के साथ.
लागी छूटे न, चाहे जिया जाए
फिल्मः मुसाफिर, 1957
गाना सुनने से पहले कुछ और बातें गुन लें. हिंदी सिनेमा के संत ऋषिकेश मुखर्जी की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म थी. गाना शैलेंद्र ने लिखा. और हां. गाने के पूर्वार्ध में शैलेंद्र ने अभिनय भी किया. यूं समझ लीजिए कि कुछ सेकंड के लिए पर्दे पर हारमोनियम थाने नजर आए. मगर आए और ये खास है. क्योंकि और कभी नहीं आए.यह गाना खास है क्योंकि इसे लता जी के साथ यूसुफ साहब ने गाया है. दिलीप कुमार का गाते हुए अभिनय औंठे हुए दूध से उठते धुंए में बसी खुशबू सा महसूस होता है. सलिल दा ने गाने की शुरुआत वायलिन के एक पीस से की है. नायक यह बजा रहा है. फिर नायिका आ जाती है. सुचित्रा सेन. वे बात करते हैं. फिर गाते हैं. नायक याद करते हुए गाता है. नायिका बस याद में ही ठिठक जाती है और पृष्ठभूमि से उसका गाना सुनाई देता है. इस गाने को आप आंख मूंद सुनें. आत्मा में उजास छीजता हुआ गिरेगा. लता जी का बीच का आलाप इसे संगति देगा.
9. सलिल दा का संगीत पूर्व और पश्चिम की सहगति का रूपक था. उन्होंने एक बार कहा था. मैं ऐसा संगीत बनाना चाहता हूं जो संगीत के स्कूलों की किसी हद में महदूद न रहे. जो सीमाओं के पार पसरे. जो अपना सा लगे, मांजा हुआ लगे, मगर उसमें नवाचार के लिए भरपूर गुंजाइश हो. इस बेहतरीन गाने के लिए सलिल को फिल्मफेयर के अवॉड्र्स से भी नवाजा गया.
सुहाना सफर और ये मौसम हंसी
फिल्मः मधुमती (1958)
स्वरः मुकेश कुमार
बहुत पैरोडी हुई इस गाने की. मगर जब
दिलीप मुस्कुराती आंखों से वो गर्दन को जरा सा खम दे ऊपर देखते हैं. तो वाकई लगता है कि खुशी से लदा आसमां बस झुकने को ही है चेहरे पर. बहुत ही खुशमिजाज
गाना है ये.
10. सलिल दा मोत्जार्ट के बड़े मुरीद थे. लोक की धुनों और स्वरों का भरपूर इस्तेमाल हुआ. वह प्रायः भारतीय शास्त्रीय धुनों को पाश्चात्य उपकरणों के सहारे नए सिरे से साधने की कोशिश करते थे. सलिल दा अकसर मजाक में अपनी इस शैली का जिक्र करते हुए कहते थे कि मोत्जार्ट दोबारा पैदा हुआ है, मेरी शकल में. जाते जाते एक बात और. सलिल दा ने मशहूर साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों के लिए जमकर संगीत दिया. दो बीघा जमीन का जिक्र तो पहले ही हो चुका है. इसके अलावा गुलेरी की अमर कहानी पर आधारित फिल्म उसने कहा था, राजेंद्र यादव का उपन्यास सारा आकाश, टैगोर की कहानी काबुलीवाला पर बनी फिल्मों में संगीत दिया.
जानेमन जानेमन, तेरे दो नयन
फिल्मः छोटी सी बात (1975)
स्वरः येशुदास और आशा भोंसले
मिडल क्लास के रोमैंस का आख्यान. जहां हीरो हीरोइन नाचने के लिए पेड़ और झरने नहीं तलाशते. वहीं मूंगफली के छिलकों के बीच ट्रेन की सीटों पर सट गुनगुना लेते हैं.