थियेटर एवं यथार्थवादी सिनेमा से लेकर मुख्यधारा की फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले अमरीश पुरी ने मिस्टर इंडिया, नगीना, शहंशाह और हीरो जैसी अनगिनत फिल्मों में नकारात्मक किरदारों को नया आयाम प्रदान किया था.
अभिनय और आवाज पहचान थी
बेजोड़ आवाज के स्वामी और रोबीले व्यक्तित्व के धनी अमरीश पुरी ने अपने बेहतरीन हावभाव से खलनायकों की भूमिका को हीरो के समकक्ष बना दिया और आखिरी दृश्यों को छोड़कर पूरी फिल्म में उनका खौफ साफ दिखता रहा. वह उन अभिनेताओं में थे जिन्होंने साबित कर दिया कि कला फिल्मों के कलाकार भी मुख्यधारा में आकर सितारा बन सकते हैं और दर्शकों को सिनेमाघर तक जुटाने की क्षमता रखते हैं.
उल्लेखनीय है कि अमरीश पुरी के लिए फिल्मी माहौल अपरिचित नहीं था और उनके बड़े भाई मदन पुरी हिंदी फिल्मों के स्थापित अभिनेता थे. लेकिन उनके लिए फिल्मों में प्रवेश आसान नहीं रहा. सही मायनों में मुख्यधारा की फिल्मों में उनका पदार्पण करीब 40 साल की उम्र में हुआ.
यथार्थवादी फिल्मों में नाम
इसके पहले उन्होंने थियेटर और यथार्थवादी फिल्मों की दुनिया में अच्छा खासा नाम कमाया. इसके लिए उन्होंने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मानों से नवाजा गया. मुख्यधारा में आने के पहले अमरीश पुरी ने श्याम बेनेगल की कई फिल्मों में बेहतरीन काम किया. इन फिल्मों में निशांत, मंथन, भूमिका, सूरज का सातवां घोड़ा आदि शामिल हैं.