नजारा दिल्ली के एक मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर से निकलते दर्शकों की भीड़ का है, जहां एक ही समय में, एक साथ चार परदों पर चार फिल्में दिखाई जाती हैं. 'दबंग' देख कर निकले प्रतीक और 'रेजिडेंट ईविल-4: मौत के बाद' भी देख कर निकले कार्तिक की फिल्मों के हर पहलू पर एक स्पष्ट राय है.
दोनों के पैसे वसूल हो गए हैं. दोनों रह-रह कर अपने-अपने हिस्से की फिल्म के डायलॉग सुना रहे हैं, हीरो-हीरोइनों के जलवों की चर्चा कर रहे हैं और ऐसा लगता है, मौका मिलते ही इनकी एक बार फिर यहीं मुलाकात होने वाली है.
प्रतीक और कार्तिक दरअसल दो अलग-अलग किस्म के दर्शकों का प्रतिनिधित्व करते हैं. जी हां, कार्तिक उस एक बहुत बड़े दर्शक वर्ग का प्रतीक है, जो हॉलीवुड की फिल्में देखना तो चाहता है लेकिन भाषा की समस्या के चलते चूक जाया करता था. अब ऐसा नहीं रहा.
इन दिनों हॉलीवुड की अधिकतर फिल्में एक साथ कई भारतीय भाषाओं में डब होकर आ रही हैं. कार्तिक कहते हैं, ''अब मैं अंग्रेजी फिल्मों की कहानी से अनजान नहीं रह पाता. अंग्रेजी अच्छी न होने के कारण डायलॉग ऊपर से निकल जाते थे, सिर्फ ऐक्शन और तकनीकी का ही मजा ले पाता था, लेकिन अब तो सीन ही बदल गया है.''
हॉलीवुड की इन डब फिल्मों का इंतजार बिल्कुल उसी तरह होता है जैसे बॉलीवुड की फिल्मों का. तभी तो अमिताभ बच्चन, आमिर खान, शाहरुख खान, सलमान खान, कैटरीना कैफ, करीना कपूर, ऐश्वर्य राय और प्रियंका चोपड़ा की ही तरह ब्रैड पिट, टॉम क्रूज, सिल्विस्टर स्टॉलन, गेरार्ड बटलर, एंजेलिना जोली, जेनिफर एनिस्टन, मेगन फॉक्स और जो सल्डाना जैसे हॉलीवुड कलाकार दिल के रास्ते भारतीय आम आदमी की जबां पर पहुंच गए हैं. हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में डब हुई ये फिल्में एक ग्लोबल विलेज की आवाज बन जाती हैं.{mospagebreak}
यही कारण है जिससे 2009 में भारत में हॉलीवुड की 60 फिल्में रिलीज हुईं जिन्होंने कुल 380 करोड़ रु. का कारोबार किया. 2009 की तीन सबसे बड़ी हिट फिल्मों में हॉलीवुड की दो फिल्में 2012 और अवतार शामिल थीं. 2012 ने भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 90 करोड़ रु. का कारोबार किया था जिसमें 70 फीसदी इसके डब संस्करणों से आया था. अगर 2010 की बात करें तो इनसेप्शन, नाइट ऐंड डे, साल्ट, द ए-टीम, क्लैश ऑफ द टाइटंस और प्रिंस ऑफ पर्सिया ने अच्छा बिजनेस किया है.
हॉलीवुड के आम लोगों तक पहुंचने और उसे पसंद करने के इस नए रुझान पर रोशनी डालते हुए केपीएमजी के एक्जक्यूटिव डायरेक्टर जेहिल ठक्कर बताते हैं, ''हॉलीवुड की फिल्मों में वैश्विक नजरिया होता है, साइंस फिक्शन, प्राकृतिक आपदाओं का बेहतरीन विजुआलाइजेशन और अव्वल दर्जे की टेक्नोलॉजी होती है जो दर्शकों को खींचने का काम करती हैं.''
हॉलीवुड की डब फिल्मों का बाजार
देश में सालाना लगभग तीन अरब टिकटें बिकती हैं और इस मामले में हमारे और अमेरिका के बीच आधे-आधे का अंतर है. देश की आबादी एक अरब से ऊपर है, और उसमें विभिन्न भाषा के लोग हैं, इतने बड़े बाजार और उसकी जरूरतों को देखते हुए हॉलीवुड के वितरकों ने डबिंग के कारोबार की दिशा में कदम रखा है.
इसी का नतीजा है जो दिल्ली के कॉलेज के छात्र अंकुश अवतार फिल्म को तीन बार देख चुके हैं. अंकुश बताते हैं, ''फिल्म की 3डी टेक्नीक और एक नए ग्रह की संकल्पना मजेदार है. असली मजा तब आया जब मैंने हीरोइन को हिंदी बोलते देखा.'' जब अवतार दिसंबर 2009 में दुनिया भर के सिनेमाघरों में पहुंची थी तो अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और दक्षिण कोरिया के बाद भारत सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय ओपनिंग के मामले में पांचवें स्थान पर था. जेम्स कैमरून की यह फिल्म लगभग 130 करोड़ रु. कमाने के साथ भारतीय फिल्म इतिहास में सर्वाधिक कारोबार करने वाली तीसरी बड़ी फिल्म बन चुकी है. {mospagebreak}
ये भारतीय दर्शक ही हैं, जिन्होंने अंग्रेजी स्पाइडरमैन को भोजपुरी में मकड़मैन बना दिया, जो कहता है, ''हम मकड़ मानव हैं, उड़ कर आब और तोहार टेटुवा दबा देब.'' स्पाइडरमैन-3 भोजपुरी भाषा में डब होने वाली हॉलीवुड की पहली फिल्म थी और देसी मकड़मैन को अपनी आवाज देने वाले भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार रवि किशन थे.
इसी कड़ी में यह भी अहम है कि डब हिंदी फिल्मों का हिंदी पट्टी के द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में अच्छा कारोबार देखने को मिल रहा है. जिसका कारण उनका स्थानीयता के रंग में रंगा जाना माना जाता है.
बॉक्स ऑफिस इंडिया के संपादक वजीर सिंह बताते हैं, ''उत्तर भारत में लखनऊ, बरेली, मुरादाबाद, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, गाजियाबाद, अमृतसर, पटियाला, लुधियाना, चंडीगढ़, जम्मू, देहरादून, सहारनपुर, दिल्ली-एनसीआर, मध्य प्रदेश, और राजस्थान में इन फिल्मों की अच्छी-खासी मांग है.'' उत्तरी भारत के इन इलाकों में हिंदी मुख्य भाषा है, इसी के चलते ए-टीम, नाइट ऐंड डे और प्रिडेटर्स के डब संस्करणों को छोटे शहरों में अच्छी ओपनिंग मिली है.
हॉलीवुड के बढ़ते कदम
हॉलीवुड का वैश्विक दर्शकों को ध्यान में रखकर फिल्मों का निर्माण करना उसकी पहुंच को बढ़ाता है. उदाहरण के लिए फिल्म 2012 में भारत, चीन, तिब्बत, रूस और जापान को प्रमुखता के साथ दिखाया गया है. इससे लोगों को फिल्मों से खुद को जोड़ने का मौका मिलता है.
यही नहीं, डब फिल्मों को किस भाषा में लाना है, इसमें फिल्म का विषय काफी महत्व रखता है. इसका उदाहरण देते हुए सोनी पिक्चर्स इंडिया के एमडी कर्सी दारूवाला बताते हैं, ''हमने केरल के ईसाई दर्शकों को ध्यान में रखते हुए फिल्म द विंची कोड को मलयालम भाषा में डब किया था.'' इस तरह स्थानीय कारक हॉलीवुड को अपनी पहुंच में विस्तार के लिए नए तरीके अपनाने को प्रेरित कर रहे हैं. {mospagebreak}
हॉलीवुड की डब फिल्मों के भारत में प्रसार का एक अन्य कारक मल्टीप्लेक्सेस में जबरदस्त उछाल भी माना जा सकता है. फिक्की-केपीएमजी इंडिया मीडिया ऐंड एंटरटेनमेंट रिपोर्ट 2010 के मुताबिक, ''देश का पहली मल्टीप्लेक्स 1997 में दिल्ली में खुला था और आज देश भर में 800 मल्टीप्लेक्सेस हैं.''
मल्टीप्लेक्सेस में फिल्मों के साथ अन्य मनोरंजन का सामान मौजूद होने के चलते दर्शकों की संख्या में इजाफा हुआ है. अब गाजियाबाद की गृहिणी मीनू शर्मा को ही ले, उन्हें हॉलीवुड की फिल्मों का शौक है, ट्वाइलाइट को अपनी पसंदीदा फिल्म और खुद को रॉबर्ट पैटिंसन का फैन बताने वाली शर्मा कहती हैं, ''मल्टीप्लेक्स पर मैं शॉपिंग करने के साथ ही फिल्म का मजा भी ले सकती हूं''
यही नहीं, वितरक दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने के लिए विदेशों की तर्ज पर भारत में भी मौसम और मौकों के मुताबिक फिल्में उतार रहें हैं. तभी गर्मियों की छुट्टियों के मौके पर हैरी पॉटर और नाइट ऐट द म्यूजियम फिल्में रिलीज की गई थीं. इसका एक कारण, बॉलीवुड के डायरेक्टरों का बच्चों के लिए स्तरीय फिल्में बनाने में सफल नहीं रहना है, जिसका फायदा हॉलीवुड ले रहा है.
वैसे भी इन फिल्मों की प्रोडक्शन लागत तो उठानी नहीं पड़ती, सिर्फ डबिंग पर खर्च होता है, जो प्रति फिल्म लगभग 8-10 लाख रु. होता है.{mospagebreak}
संभावनाओं से लबरेज भविष्य की राह
भारत चीन के बाद सर्वाधिक आबादी वाला दुनिया का दूसरा देश है. देश की कुल आबादी का 50 फीसदी हिस्सा 25 साल से कम उम्र का है और 65 फीसदी से अधिक 35 साल से कम हैं. ऐसे में भारत को रहस्य, रोमांच, सेक्स, विजुअल इफेक्ट्स और साइंस फिक्शन से जुड़ी हॉलीवुड की स्तरीय फिल्मों के एक बड़े संभावनाशील बाजार के रूप में देखा जाता है. इसलिए सभी फिल्म स्टूडियो भारतीय मनोरंजन बाजार को भुनाने के नए-नए प्रयासों में जुटे हैं.
फॉक्स स्टार स्टूडियोज के वितरण, मार्केटिंग और सिंडिकेशन प्रमुख विवेक कृष्णानी बताते हैं, ''डबिंग के अलावा हमने द ए-टीम से अपनी फिल्मों में सबटाइटल शुरू किए हैं. कई बार फिल्म की भाषा या बोलने का स्टाइल दर्शक समझ नहीं पाते. हमें उम्मीद है, इससे अधिक संख्या में दर्शक हॉलीवुड की फिल्मों का रुख करेंगे.''
हॉलीवुड का टेक्नोलॉजी पर खासा ध्यान देना भी भारत में उसके प्रसार की मुख्य वजह है. अवतार की सफलता के पीछे उसका 3डी होना माना जाता है. इस पर सोनी पिक्चर्स इंडिया की पीआर ऐंड प्रोमोशन मैनेजर अंजलि मल्होत्रा बताती हैं, ''10 सिंतबर को रिलीज हुई रेजीडेंट ईविल-4: आफ्टरलाइफ ऐक्शन से भरपूर एक 3डी फिल्म है, जिसे जेम्स कैमरून और विलसेंट पेस के पेटेंट फ्यूजन कैमरा सिस्टम से शूट किया गया है.'' यानी दर्शकों को लुभाने के लिए पूरा मसाला मौजूद है.{mospagebreak}
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स की इंडियन एंटरटेनमेंट ऐंड मीडिया आउटलुक, 2010 पर नजर डालें तो पता चलता है कि एडलैब्स ने न्यू मुंबई में एडलैब सिनेमा में बिग डिजिटल 3डी लांच किया है. उसने आगरा में इज्रायली कंपनी सिनेमा पार्क नेटवर्क के साथ आगरा में अपने तरह की पहली 6डी स्क्रीन की शुरुआत भी की है. कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी आगे आई हैं. मेक्सिको के वैश्विक मल्टीप्लेक्स ऑपरेटर सिनेपॉलिस ने भारत में अगले 7 साल में एग्जीबिशन बिजनेस में 1700 करोड़ रु. निवेश करने की घोषणा की है.
अब वह समय दूर नहीं है जब हॉलीवुड की भारत में आने वाली हर फिल्म हिंदी के अलावा तेलुगु, तमिल, मलयालम, भोजपुरी में भी आया करेगी. सिनेमैक्स इंडिया लिमिटेड के सीईओ सुनील पंजाबी कहते हैं, ''अगर संभावित ब्लॉकबस्टर फिल्मों को 700-800 प्रिंट्स के साथ रिलीज किया जाता है, तो उन्हें जबरदस्त रिस्पॉन्स मिल सकता है.'' अगर देखें तो अब बॉलीवुड को थोड़ा सावधान हो ही जाना चाहिए, क्योंकि आने वाले समय में उसे हॉलीवुड की डब फिल्में टक्कर दे सकती हैं.