फिल्मः वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई
निर्देशकः मिलन लुथरिया
कलाकारः अजय देवगन, कंगना रणौत, इमरान हाशमी
बहुत दिनों बाद डायलॉग्स के लिहाज से इतनी खूबसूरत फिल्म देखने को मिली है. संवाद लेखक रजत अरोड़ा पर जैसे कोई रूह उतर आई हो. कमोबेश हर लाइन फिल्म की पूरी कहानी का साया ओढ़े हुए. दिलोदिमाग को छूकर निकलती हुई.
सत्तर के दशक के हाजी मस्तान और दाउद इब्राहिम के मुंबई का आईना मानी जाने वाली यह फिल्म उस वक्त की तमाम हरकतों को तो पकड़ती ही है, उस दौर के संवाद प्रधान सिनेमा की भी याद दिलाती है. बचपन काली रातों में और जवानी काले कामों में गुजारने वाले मुंबई के अपराध जगत के अगुआ सुल्तान मिर्जा (देवगन) का यह स्टेटमेंट सुनिएः ‘समंदर पर कब्जा कर लिया तो हमारा जहाज कभी नहीं डूबेगा.’
लालबत्ती पर मिर्जा को बेटे का हाल बताती भिखारिन का अंदाजः ‘महंगाई के साथ-साथ वह भी बढ़ रहा है.’ या फिर अपनी कार्यशैली का खुलासा करता मिर्जा का ही गुर्गा शोएब (हाशमी): ‘सुपारी ली है तो चूना नहीं लगाऊंगा.’
चटख लिपस्टिक, उस दौर के कपड़ों, बालों के साथ मिर्जा की माशूका रेहाना के किरदार में कंगना एक करिश्माई ताजगी के साथ नुमायां होती हैं. बाद में उन्हें गुड़िया बना दिया जाता है. मिर्जा के मुकाबले शोएब थोड़ा कमजोर किरदार है. हालांकि संवाद उसके हिस्से में भी बढ़िया हैं लेकिन अभिनय में कमजोर हाशमी उसके लहजे को पकड़ने में लोच खा गए हैं. पर फिल्म बनाई गई है तबीयत से.