90 के दशक का वो दौर था जब बॉलीवुड में जतिन-ललित और नदीम-श्रवण का बोलबाला था. उस दौर में रिलीज होने वाली ज्यादातर फिल्मों में उनका ही म्यूजिक हुआ करता था. उसी वक्त सलमान खान की एक फिल्म आई थी 'प्यार किया तो डरना क्या'. उस फिल्म में एक गाना था जिसने उस वक्त के युवाओं को झूमने पर मजबूर कर दिया था. ऐसी कोई बारात नहीं होती जिसमें वो गाना ना बजता. और वो गाना था 'तुम पर हम हैं अटके यारा...दिल भी मारे झटके'. तब हम में से शायद ही किसी को पता हो कि इस गाने का कंपोजर एक ऐसा शख्स है जिसका 'सुरूर' बहुत जल्द बॉलीवुड पर चढ़ने वाला है. किसी को ये नहीं पता था कि ये कंपोजर आने वाले वक्त में बॉलीवुड को कुछ ऐसे गाने देने वाला है जो संगीत की दुनिया में एक नई क्रांति ला देगी.
ये तुम थे हिमेश रेशमिया जिसने बॉलीवुड के संगीत में एक नएपन की शुरुआत की थी. फिल्म 'तेरे नाम' के गाने आज भी जुबान से नहीं उतरते जिसके लिए तुम्हे बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवॉर्ड भी मिला था और तुम ये अवॉर्ड डिजर्व भी करते थे. और इसी फिल्म से तुमने अपनी नई पहचान बनाई बॉलीवुड में. जल्द ही तुम फिल्म 'आशिक बनाया आपने' लेकर आए और सच मानो इस फिल्म के गाने सुनकर देश भर के संगीत प्रेमी पर तुम्हारे म्यूजिक का नशा चढ़ चुका था. युवा डिस्को में सिर्फ तुम्हारे ही गानों पर थिरकते थे. हमारी कार हो या मुहल्ले के चौराहे पर लगने वाला ठेला या पान की दुकान, हर जगह तुम्हारे ही गाने सुनाई देने लगे. बच्चे तुम्हारे नाक से गाने वाले अंदाज की नकल करने लगे, तुम्हारी तरह टोपी पहनने लगे. 'झलक दिख ला जा' गाने के बाद तो हर कोई तुम्हारी एक झलक पाने को आतुर दिखने लगा. वो तुम्हारा दौर था हिमेश. तुम्हारे हिट पर हिट गाने, फिल्मों को हिट कराने का माद्दा रखने लगे. टॉप 10 चार्टबस्टर में तुम्हारे कई गाने एक साथ होते थे. नाक से गाकर तुमने अपनी अलग ही पहचान बनाई जो काबिल-ए-तारीफ है. अगर मैं गलत नहीं हूं तो अपने करियर में तुमने सिर्फ एक गाने को नाक से नहीं गाया है और वो है फिल्म 'बनारस' का 'कितना प्यार करते हैं तुम्हे सनम'. तुम यूं ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते गए और पूरा देश तुम्हारे गानों पर झूमता रहा. फिर साल 2007 में पता चला कि तुम एक फिल्म में बतौर हीरो काम करने वाले हो. हम तुम्हारी फिल्म देखने के लिए आतुर थे. पहले फिल्म के गाने आए. सारे के सारे शानदार. आते ही लोगों के जुबान पर चढ़ गए.
फिल्म आई और हम तुरंत फिल्म देखने पहुंचे. फिल्म में तुम एक बेहद ही कम उम्र की लड़की जो कुछ साल पहले तक बाल कलाकार का रोल करती थी, उसके साथ इश्क लड़ाते नजर आए. हम बहुत उम्मीद लेकर थिएटर तक तुम्हें देखने गए, लेकिन तुमने इस बार सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. जो हिमेश संगीत की छोटी छोटी बारिकियों पर ध्यान रखता था उस हिमेश ने एक्टिंग की बारिकियों पर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया था. इस फिल्म और तुम्हारी एक्टिंग ने तुम्हारे फैंस का दिल छोटा कर दिया था.
हमने सोचा गलतियां सभी से होती हैं तुम भी समझ जाओगे लेकिन नहीं. तुम्हारे सिर से एक्टिंग के सुरूर ने उतरने का नाम नहीं लिया. साल 2008 में तुम फिर एक फिल्म लेकर आए. ये साल 1980 में सुभाष घई के निर्देशन में बनी कर्ज का रीमेक थी. लेकिन तुम सुभाष घई के उस कर्ज को इस तरह उतारोगे हमने सोचा नहीं था. सतीश कौशिक जैसे बेहतरीन डायरेक्टर भी तुमसे एक्टिंग नहीं करा पाए. हां एक बार फिर तुम्हारे गानों ने अपना जादू जरूर बिखेरा था. फिर तुम्हारी फिल्म कजरारे आई, वो तो मुंबई के दो सिनेमा हॉल को छोड़कर कहीं रिलीज ही नहीं की गई, हमने उस फिल्म को सीधा टीवी पर देखा. इस फिल्म की भी वही कहानी थी.
अब तुम फिर एक फिल्म ले कर आ रहे हो 'द एक्सपोज'. फिल्म के एक दो गाने तो निकल पड़े हैं लेकिन जनता तुम्हारे एक्टिंग का मजाक अभी से ही सोशल मीडिया पर उड़ाने लगी है. एक तरफ तुम अपने म्यूजिक से लोगों के दिल में उतर जाते हो तो वहीं दूसरी तरफ अपनी एक्टिंग से सभी को दुखी कर देते हो. अब बस भी करो भाई. क्यों अपने स्टारडम को बर्बाद करना चाहते हो. तुम्हारा म्यूजिक बेशक शानदार होता है लेकिन एक्टिंग तो बिल्कुल नहीं. तुम्हारी एक्टिंग से दुखी लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि देश के लोग कई तरह की समस्याओं से परेशान हैं और ऊपर से हिमेश रेशमिया फिल्म लेकर आ जाता है. लोगों को ऐसा बोलने का मौका मत दो हिमेश. ये मान लो कि अब जनता सिर्फतुम्हारे संगीत की कायल है, एक्टिंग की नहीं. उन्हें अपनी एक्टिंग से और दुखी मत करो. एक कहावत है कि 'जिसका काम उसी को साजे और करे तो डंका बाजे.' बाकी तुम खुद समझदार हो..
अंत में तुम्हारे आने वाली फिल्म के एक गाने के अंदाज में ही तुमसे एक अपील करना चाहूंगा. 'हमारे दुख थोड़े और कम हो जाते, हिमेश अगर तुम एक्टिंग छोड़ सिर्फ गाने ही बनाते.'