इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट, 2017 के दूसरे दिन 'आर्ट्स एंड एक्सप्रेशन-द क्रिएटिव लाइसेंस' विषय पर सेशन आयोजित किया गया. इस सेशन में बंगाली अभिनेता धृतिमान चटर्जी, फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री, फिल्मकार अनिक दत्ता और कॉमेडियन अनुवब पाल ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन पद्ममजा जोशी ने किया.
इस दौरान कॉमेडियन अनुवब पाल ने पद्मावती मामले में कटाक्ष करते हुए कहा, सेंसर बोर्ड के साथ समस्या ये है कि उसके पास अपनी आर्मी नहीं है. उसे विरोध का सामना करने के लिए आर्मी की जरूरत है. वह अभी पुलिस का सहारा लेती है. भारत में हर मामले में अलग-अलग नजरिए होते हैं.
अनिक दत्ता ने कहा, मुझे आश्चर्य होता कि यदि इस फिल्म पर तब इतना हंगामा होता, जब ये देश के किसी खास क्षेत्र में बनी होती. एक्टर भी स्टार नहीं होते. कला को हर समय में अलग तरह से परिभाषित किया गया है. तथाकथित सेंसरशिप लंबे समय से चली आ रही है. मुझे नहीं लगता कि हमारा देश ही इस लिस्ट में अकेला है. ये मुद्दा बहुत हास्यास्पद है. फ्रीडम वह है, जो आप परिभाषित कर रहे हैं.
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इस दौरान धृतिमान चटर्जी ने कहा, पद्मावती एक नॉन इश्यू है, लेकिन आज हर कोई इसकी चर्चा कर रहा है. मैंने संजय लीला भंसाली के साथ किया है, वह काफी समर्पित और मेहनती फिल्मकार हैं, काफी बारीकियों पर काम करते हैं, मुझे नहीं लगता कि संजय लीला भंसाली जानबूझकर ऐसा कुछ करेंगे जिससे लोगों की भावना को चोट पहुंचे. जो लोग सेंटिमेंट पर चोट पहुंचने की बात कर रहे हैं, उन्होंने अभी फिल्म देखी ही नहीं है.विवेक अग्निहोत्री ने कहा, पद्मावती जैसे मुद्दे का फायदा हर कोई उठाना चाहता है. सबको इससे फायदा हो रहा है. राजनेता, राजपूत समाज, मीडिया सब इसे अपने-अपने तरीके से भुना रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि फिल्म अभी तक सेंसर बोर्ड के पास आई नहीं है, फिर इतना बवाल क्यों मचा है. इसका लंबा इतिहास है. 'किस्सा कुर्सी का', मधुर भंडारकर की इंदु सरकार व अन्य फिल्में भी इस तरह के विरोध का शिकार हुईं. लोगों को इसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए. करण जौहर इंडस्ट्री के नरेंद्र मोदी है, उन्हें बोलना चाहिए.
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इस देश में हर दिन किसी न किसी को पुतला जल रहा है. एक तरह नरेंद्र मोदी का जलाया जाता है तो दूसरी ओर राहुल गांधी. दरअसल, मुद्दा पद्मावती नहीं है, मुद्दा है अलाउद्दीन खिलजी. लोगों को इस बात से परेशानी है कि अलाउद्दीन खिलजी का फिल्म में महिमा मंडन किया जा रहा है. समस्या ये है कि हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया है. अपनी फिल्म के दौरान मैंने रिसर्च में पाया कि 90 फीसदी लोगों कहा कि उन्हें गलत हिस्ट्री पढ़ाई गई.
धृतिमान चटर्जी ने यदि इतिहास को देखा जाए विवेक अग्निहोत्री की फिल्म बुद्धा इन ट्रेफिक जाम को भी यह कर बैन किया जा सकता था कि बुद्धा कभी ट्रेफिक जाम में नहीं रहे. इस पर अग्निहोत्री ने कहा, उनकी फिल्म बैन हुई है. जाधवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों ने उन्हें बुलाया था कि वे अपनी फिल्म का यूनिर्विटी में प्रदर्शन करें. इस दौरान उनकी फिल्म का इतना विरोध हुआ उनकी कार तोड़ दी, उनका कंधा तोड़कर उन्हें घायल कर दिया. यहां तक कि कॉलेज के रजिस्टार ने भी इसका विरोध किया. कहा कि वे फिल्म में वामपंथियों को गलत तरीके से दिखा रहे हैं.
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धृतिमान ने इस डिबेट में कहा कि समस्या यह है कि हमारे यहां ऐसे मामले में दंड का कोई प्रावधान नहीं है. गोवा फिल्म फेस्टिवल से एस दुर्गा फिल्म को स्क्रीनिंग से हटाया जाना भी इसी का नतीजा है. किसी को अधिकार नहीं कि फिल्म को स्क्रीनिंग से रोकने का. यदि राजनेताओं को दंड मुक्ति को एंजॉय करने का अधिकार है तो हर किसी को हो सकता है.