सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 में परिवर्तन की पहल की है. ऐसा फिल्म पायरेसी से लड़ने और इस ड्राफ्ट बिल के बारे में जनता का मत लेने के लिए किया गया है. फिल्मों की रिलीज के बाद होने वाली पायरेसी और उन्हें इंटरनेट पर अपलोड किए जाने से फिल्म इंडस्ट्री को बहुत नुकसान होता है और सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से बढ़ाया जा रहा ये कदम इसी उद्देश्य से है. बता दें कि पब्लिक के लिए बनाई जाने वाली फिल्मों के सर्टिफिकेशन हेतु बनाए गए प्रावधानों के उल्लंघन पर मिलने वाली सजाओं को सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 के सेक्शन-7 के तहत रखा गया है.
सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमैटोग्राफ एक्ट में परिवर्तन के बिल को सेक्शन-7 के नए सब सेक्शन (4) के तहत रखा है. सिनेमैटोग्राफ एक्ट परिवर्तन बिल के ड्राफ्ट में मंत्रालय फिल्म पायरेसी को दंडनीय अपराध बनाया है जिसमें तीन साल की जेल और 10 लाख रुपये तक का फाइन या दोनों रखा गया है. कोई भी शख्स यदि बिना कॉपीराइट ओनर की लिखित अनुमति के किसी रिकॉर्डिंग डिवाइस का इस्तेमाल करके विजुअल रिकॉर्डिंग की कॉपी करता है या उसकी साउंड रिकॉर्डिंग करता है या उसे लीक करने की कोशिश करता है तो वह इस तरह की सजा का हकदार होगा.
नहीं थम रही है फिल्मों की पायरेसी-
फिल्मों की पायरेसी करने वाली तमाम वेबसाइटों को बैन किए जाने के बावजूद फिल्मों की पायरेसी रुकने का नाम नहीं ली रही है. करोड़ों रुपये की लागत से बनने वाली इन फिल्मों को सोशल मीडिया पर लीक किए जाने से फिल्म मेकर्स और इंडस्ट्री का नुकसान होता है. मेकर्स और सरकार की इतनी सख्ती के बावजूद फिल्में रिलीज के दूसरे या तीसरे ही दिन सोशल मीडिया पर फ्लोट होती और पायरेटेड डीवीडी के मार्केट में साफ दिखाई देती हैं. सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 में किए जा रहे बदलाव के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इस तरह के अपराधों को रोका जा सकेगा.