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बॉलीवुड पुरस्कार समारोह, मतलब जो आएगा वह पाएगा

बॉलीवुड में पुरस्कार समारोहों की संख्या अब हाथ की अंगुलियों से पार पा गई है. उनमें पुरस्कार श्रेणि‍यों की बात करें तो समारोह दर समारोह ऐसी वृद्धि‍ होती है कि ब्रम्हा भी भविष्यवाणी न कर सकें.

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अवॉर्ड शो अब एंटरटेनमेंट शो बनकर रह गए हैं!
अवॉर्ड शो अब एंटरटेनमेंट शो बनकर रह गए हैं!

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हॉलीवुड के मशहूर अभि‍नेता लियोनार्डो डीकैप्रियो पिछले कई वर्षों से लगातार हिट फिल्म दे रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि वे ऑस्कर पुरस्कार पाने में सफल नहीं हो पाते. हालांकि वह कई दफा गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड जरूर जीत चुके हैं. लेकिन जरा सोचिए अगर लियोनार्डो भारत में होते तो कितनी बार अवॉर्ड पाते. वैसे बहुत संभव है कि सिर्फ उन्हें अवॉर्ड देने के लिए ही कोई पुरस्कार समारोह शुरू कर दिया जाता.

बॉलीवुड में पुरस्कार समारोहों की संख्या अब हाथ की अंगुलियों से पार पा गई है. उनमें पुरस्कार श्रेणि‍यों की बात करें तो समारोह दर समारोह ऐसी वृद्धि‍ होती है कि ब्रम्हा भी भविष्यवाणी न कर सकें. नतीजा यह कि न तो एक्टर्स और न ही उनके प्रशंसक अब इन पुरस्कारों को अहमियत देते हैं. आलम यह है कि कभी हिंदी सिनेमा में जो एक्टर्स 'ब्लैक लेडी' को छूने के लिए तरसते थे, वहीं अब खुलेआम ऐसे समारोहों की धज्जि‍यां उड़ाने से नहीं चूकते .

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हर साल के साथ कुछ सितारे इन पुरस्कारों से पल्ला झाड़ते नजर आते हैं. आमिर खान और अजय देवगन जैसे सितारे अतीत में यह कारनामा कर चुके हैं तो बॉलीवुड की 'क्वीन' कंगना रनोट ने भी कहा वह जानती हैं कि ये कॉमर्शियल समारोह हैं और इनका उद्देश्य टीआरपी और पैसा कमाना है. यही नहीं, वह इन्हें जलसा मात्र ही मानती हैं. हाल ही में अक्षय कुमार भी पुरस्कारों के लिए लॉबिंग की बात को खुलेआम कह चुके हैं.

अजब-गजब पुरस्कारों का दौर
हाल ही एक पुरस्कार समारोह में बेस्ट सपॉर्टिंग एक्टर कटेगरी में मजेदार चीज देखने को मिली. इस कटैगरी में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी थे, जिन्हें 'बदलापुर' के लिए नॉमिनेट किया गया था. हालांकि 'बरजरंगी भाईजान' में भी उनकी एक्टिंग कमाल थी, लेकिन आन-बान और शान के साथ पुरस्कार मिला अनिल कपूर (दिल धड़कने दो) को. एक ऐसी फिल्म जो बॉक्स ऑफिस पर औसत रही थी और दर्शकों के बीच अपनी जगह नहीं बना सकी थी. खैर, चलिए जो ज्यूरी की मर्जी.

सिंगर लोकप्रिय, लेकिन अवॉर्ड के 'सुर' में खामी
संगीत हिंदी सिनेमा की पहचान रही है. इस साल की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्मों में शुमार 'रॉय' के संगीत को हर फिल्म समारोह मेें सराहा जा रहा है. शायद इसकी वजह इसकी म्यूजिक कंपनी भी हो सकती है, क्योंकि जितना बड़ा नाम, उतना बड़ा ईनाम. यही नहीं, सभी को संतुष्ट करने के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर से लेकर बेस्ट म्यूजिक एल्बम जैसी कटैगरी भी बना दी गई हैं. आलम यह है बेस्ट सिंगर का अवॉर्ड सबसे चहेते को तो मिलता है, लेकिन जिस सॉन्ग के लिए मिलता है वह लोगों की प्लेलिस्ट से काफी पहले गायब हो चुका होता है.

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आओ और पाओ की कवायद
पुरस्कारों का मजा यह है कि अगर आपको लगे कि कोई संतुष्ट नहीं हो रहा है तो उसके लिए नई कटैगरी बना दीजिए. जैसे अक्सर होता है. अलग-अलग एक्टर्स को अब पॉपुलर च्वॉइस से लेकर, बेस्ट एक्टर, क्रिटिक च्वॉइस तक हर अवॉर्ड दे दिया जाता है. फिर भी अगर कहीं कसर रह जाती है या कोई नाराज होता है तो इससे इतर फिटनेस से लेकर और दूसरे अवॉर्ड ऑप्शन भी तलाश लिए जाते हैं. एक्टर न सही तो कई बार उसकी फिल्मों को प्रमोशन कैंपेन के लिए भी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. और अगर इतने से बात न बने तो 'एंटरटेनर ऑफ द ईयर' या फिर 'पॉवर पैक्ड परफॉर्मेंस ऑफ द ईयर' तो है ही.

कुर्सी और कैमरे पर रखिए नजर
वैसे भी यह पुरस्कार काफी ऑब्वियस होते जा रहे हैं. आपको थोड़ी-सी पारखी नजर चाहिए. पारखी नजर यूं कि जब कैमरा जलसे में मौजूद लोगों पर डाला जाए तो आप देखिए कौन-कौन आया है. कितना तैयार होकर आया है. कहां बिठाया गया है. बस समझ आ जाएगा कि कौन विजेता है. इस बार भी एक पुरस्कार समारोह में ऐसा ही हुआ. सितारों को देख-देखकर अंदाजा लग गया. नजर सामने परिणीति चोपड़ा पर पड़ी. वो सजधज कर पोज में बैठी हुई थीं. लगा परफॉर्मेंस देनी होगी. लेकिन ये क्या, बिना बड़े पर्दे पर छाप छोड़े ही उन्हें 'स्टाइल आइकन ऑफ द ईयर' बना दिया गया. अब इसे अवॉर्ड कहें, किस्मत कहें या फिर कुछ और मर्जी आपकी है.

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टीआरपी का खेल
बॉलीवुड के पुरस्कार समारोह ऑस्कर की तरह लाइव नहीं आते हैं. इनकी रिकॉर्डिंग ही दिखाई जाती है. वजह टीवी के लिए मोटे स्पॉन्सर ढूंढे जाते हैं और प्राइमटाइम पर इनको लाया जाता है. जिससे टीआरपी में तो उछाल आता ही है, कमाई भी होती है. अब जब इतना कुछ दांव पर लगा हो तो कदम तो फूंक-फूंककर उठाने बनते ही हैं.

दर्शकों की आंखों को सुख मिले, इसलिए दिग्गज सुपरस्टार ढूंढे जाते हैं ताकि वे स्टेज पर परफॉर्मेंस दे सकें. यही परफॉर्मेंस पुरस्कार समारोहों से जुड़े प्रोमो के दौरान दिखाई जाती है. लोगों को खूब लुभाया जाता है ताकि टीआरपी अच्छी हो सके. ऐसे में अगर कुछ सितारों को खुश करने के लिए एक दो कैटगरी शुरू भी कर दीं तो क्या फर्क पड़ता है. बस इसी वजह से यह अवॉर्ड समारोह अपना महत्व खोते जा रहे हैं और एंटरटेनमेंट संबधी प्रोग्राम में तब्दील होते जा रहे हैं.

 

यहां कॉपीकैट क्यों नहीं बनते
हर कदम पर हॉलीवुड को कॉपी करने वाले बॉलीवुड को फिल्मों और आइडियाज के अलावा अब अवॉर्ड समारोह आयोजित करना भी सीखना चाहिए. हिंदी सिनेमा के लिए शायद यह संभलने का दौर है कि वह अपनी गरिमा को बनाए रखे, क्योंकि सब कुछ एंटरटेनमेंट-एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट ही नहीं होता. और अगर भारतीय सिनेमा के कथि‍त साधक इतने ही लापरवाह हैं तो वह दिन दूर नहीं जब गंभीर सितारे अवॉर्ड समारोहों से नदारद हो जाएंगे.

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